BHOPAL. सर्दियों के मौसम में कोहरा पड़ने के कारण अक्सर ट्रेनें घंटों देरी से चलती हैं। ट्रेनों के लेट चलने के कारण यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अब घने कोहरे में भी ट्रेन सरपट दौड़ती रहे, इसके लिए फॉग सेफ डिवाइस (fog safe device) का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस दौरान सुचारू रेल परिचालन सुनिश्चित करने के लिए भोपाल मंडल में लोको पायलटों को इंजन में इस्तेमाल के लिए 341 फॉग सेफ डिवाइस दिए गए हैं।
भोपाल मंडल में चल रहा विशेष अभियान
दरअसल, कोहरे के दौरान में सुरक्षित और सुचारू रेल परिचालन सुनिश्चित करने के लिए भोपाल मंडल रेल प्रबंधक (DRM) देवाशीष त्रिपाठी के मार्गदर्शन और वरिष्ठ मंडल विद्युत अभियंता (कर्षण परिचालन) सचिन शर्मा के नेतृत्व में विशेष अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के अंतर्गत रेल संचालन से जुड़े कर्मचारियों को विशेष निर्देश के साथ-साथ बाधा रहित ट्रेन संचालन में उपयोगी उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है। भोपाल मंडल में ट्रेन पायलटों को लोको (इंजन) में कोहरे के दौरान उपयोग करने के लिए 341 फॉग सेफ डिवाइस (FSD) दिए गए हैं।
फॉग सेफ डिवाइस की उपयोगिता
कोहरे पड़ने के कारण दृश्यता (visibility) बेहद कम हो जाती है, जिससे लोको पायलटों के लिए सिग्नल और ट्रैक की स्थिति का सही आंकलन करना मुश्किल हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों में लोको पायलटों की मदद के लिए फॉग सेफ डिवाइस बनाया गया है। यह डिवाइस सिग्नल की सटीक जानकारी देता है।
फॉग सेफ डिवाइस एक अत्याधुनिक तकनीकी उपकरण है जो रेलवे संचालन में सुरक्षा और दक्षता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, खासकर घने कोहरे (फॉग) के दौरान। इस डिवाइस में एक वायर एंटीना होता है, जो सिग्नल को रिसीव करने के लिए काम आता है। यह एंटीना डिवाइस में सिग्नल प्राप्त करने का मुख्य माध्यम होता है। इसमें एक मेमोरी चिप भी लगी होती है, जिसमें रेलवे का रूट और उससे संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी पहले से ही फीड की जाती है। इसमें रूट में पड़ने वाले लेवल क्रॉसिंग, जनरल क्रॉसिंग सिग्नल, और रेलवे स्टेशन जैसी जानकारी स्टोर होती है। इस डिवाइस का मुख्य उद्देश्य लोको पायलट को इन महत्वपूर्ण स्थलों के बारे में ऑन-बोर्ड, वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करना है। मुख्य रूप से, यह डिवाइस लोको पायलट को निम्नलिखित प्रकार की जानकारी प्रदान करता है:
सिग्नल: रूट पर स्थित सिग्नल का स्थिति और उससे संबंधित निर्देश।
लेवल क्रॉसिंग गेट: लेवल क्रॉसिंग गेट की स्थिति और सुरक्षा निर्देश।
न्यूट्रल सेक्शन: रेलवे की उन जगहों के बारे में जानकारी, जहां विद्युत आपूर्ति की स्थिति बदलती है।.
कैसे काम करता है फॉग सेफ डिवाइस?
फॉग सेफ डिवाइस एक जीपीएस पर आधारित नेविगेशन सिस्टम है, जो घना कोहरे होने पर लोको पायलट को ट्रेन चलाने में मदद करता है, यह यंत्र लोको पायलट को उनके मार्ग पर सिग्नलों और अन्य प्रमुख स्थानों की सटीक जानकारी देता है। इस पर सिग्नल की दूरी और ट्रेन की गति स्क्रीन पर दिखाई देती।
डिवाइस के उपयोग के लाभ
1. सुरक्षित संचालन: यह लोको पायलट को कोहरे के दौरान भी सिग्नल की स्पष्ट जानकारी प्रदान करता है, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना कम हो जाती है।
2. समय की बचत: उपकरण के निर्देशों पर ट्रेनें अपनी स्पीड और दिशा में चल सकती हैं, ऐसे में टाइम की बचत होती है।
3. पायलटों का आत्मविश्वास: फॉग सेफ डिवाइस लोको पायलटों को सही मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करता है, ऐसे में चालक का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे बेहतर तरीके ट्रेनों को संचालन कर सकते हैं।
4. यात्रियों की सुरक्षा: फॉग सेफ डिवाइस का उपयोग यात्रियों को सुरक्षित और सुविधाजनक यात्रा का अनुभव सुनिश्चित करता है।
स्टेशन मास्टरों और चालकों के लिए निर्देश
वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक सौरभ कटारिया ने जानकारी देते हुए बताया कि लोको पायलटों को कोहरे में फॉग सेफ डिवाइस के साथ ट्रेनों की स्पीड 75 किलोमीटर प्रति घंटे अथवा अपने विवेक के अनुसार बनाए रखने के निर्देश दिए गए हैं। सिग्नल सूचना वाले सभी बोर्ड को फिर पेंट किया जा रहा है, साथ ही बोर्ड पर चमकदार पट्टी लगाई जा रही है। कोहरे के समय दृश्यता में कमी आने पर पायलटों की सहायता के लिए स्टेशन मास्टरों द्वारा विजिबिलिटी टेस्ट ऑब्जेक्ट (वीटीओ) के इस्तेमाल के निर्देश दिए गए हैं। इससे चालकों को स्टेशन पास होने की सही जानकारी मिलेगी।
ट्रैकमैन द्वारा लोको पायलटों को रूट पर सिग्नल होने की चेतावनी देने के लिए पटाखे के इस्तेमाल के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही पर्याप्त मात्रा में पटाखे उपलब्ध कराए गए हैं। सर्दियों में पटरियों के फ्रैक्चर की संभावना के चलते अधिक सावधानियां बरतने के निर्देश जारी किए गए हैं। पटरियों की गंभीरता से जांच के लिए अत्याधुनिक अल्ट्रासाउंड मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। आवश्यकतानुसार रेल खंडों में गति प्रतिबंध लगाने के निर्देश जारी किए गए हैं। ऐसे क्षेत्रों में जहां पटरियों में फ्रैक्चर की संभावना रहती है, वहां विशेष कोल्ड वेदर पेट्रोलिंग की जा रही है।
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