सरस्वती नदी, भीमबेटका खोजने वाले विष्णु वाकणकर के नाम होगा रातापानी

मध्य प्रदेश का रातापानी टाइगर रिजर्व अब विश्व विख्यात पुरातत्वविद डॉ. विष्णु वाकणकर के नाम से जाना जाएगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने रातापानी टाइगर रिजर्व के लोकार्पण के दौरान यह बड़ी घोषणा की। 

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Vikram Jain
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Bhopal Ratapani Tiger Reserve will be named after renowned archaeologist Dr. Vishnu Wakankar
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BHOPAL. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पास स्थित रातापानी टाइगर रिजर्व (Ratapani Tiger Reserve) की अब एक नए पहचान से नाम होगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव (CM Mohan Yadav) ने कहा कि इस टाइगर रिजर्व का नाम डॉ.विष्णु श्रीधर वाकणकर (Dr. Vishnu Wakankar) के नाम पर रखा जाएगा। मूलत: ​नीमच में जन्मे डॉ. वाकणकर वही पुरातत्वविद हैं, जिन्होंने विश्व प्रसिद्ध भीमबेटका की गुफाओं की खोज कर इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिलाया है।

सीएम मोहन यादव ने कहा, भोपाल देश की इकलौती राजधानी है, जिसके करीब टाइगर रिजर्व है। यह केवल एक जंगल नहीं, बल्कि रोमांच, रहस्य, प्रकृति और संस्कृति का संगम है। इस घोषणा के साथ उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त किया है।

रातापानी टाइगर रिजर्व अब पर्यटन का नया केंद्र

मुख्यमंत्री ने कहा, टाइगर रिजर्व बनने से स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। होटल, होम-स्टे और अन्य पर्यटन सेवाओं से भोपाल और आसपास के जिलों की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। रातापानी टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल 1 हजार 272 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 763 वर्ग किलोमीटर को कोर क्षेत्र और 507 वर्ग किलोमीटर को बफर क्षेत्र घोषित किया गया है। कोर क्षेत्र में बाघ बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के स्वतंत्र रूप से विचरण कर सकेंगे, जबकि बफर क्षेत्र में स्थानीय लोग सीमित गतिविधियों के साथ काम कर सकेंगे।

स्थानीय लोगों और वन्यजीवों के लिए फायदेमंद

रातापानी क्षेत्र बाघों और अन्य वन्यजीवों का प्राकृतिक घर है। 1976 में इसे अभयारण्य का दर्जा दिया गया था। यहां टाइगर रिजर्व बनने से न केवल पर्यटन बढ़ेगा, बल्कि स्थानीय निवासियों को आजीविका के अधिक साधन भी मिलेंगे। मध्य प्रदेश टाइगर स्टेट है। सबसे अधिक बाघों की संख्या यहां है। सरकार इस रिजर्व को देश के सर्वश्रेष्ठ टाइगर रिजर्व के रूप में विकसित करेगी।

कौन थे डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर

डॉ.विष्णु श्रीधर वाकणकर (1919–1988) भारतीय पुरातत्वविद और रॉक आर्ट अध्ययन के अग्रदूत माने जाते हैं। उन्हें भारतीय शैल चित्र अध्ययन के पितामह के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने 1957 में मध्य प्रदेश के भीमबेटका शैलाश्रयों की खोज की, जो आज यूनेस्को विश्व धरोहर हैं। यह खोज मानव इतिहास और शैल कला के अध्ययन में मील का पत्थर साबित हुई है।

सरस्वती नदी का पता लगाया

1. भीमबेटका शैलाश्रयों की खोज: डॉ. वाकणकर ने भोपाल के पास पाए गए प्रागैतिहासिक चित्रों का अध्ययन और वर्गीकरण किया, जिससे प्राचीन मानव की रचनात्मकता और जीवनशैली पर प्रकाश पड़ा।

2. सरस्वती नदी की यात्रा: उन्होंने प्राचीन सरस्वती नदी के मार्ग का पता लगाने के लिए अभियान का नेतृत्व किया, जो भारतीय सभ्यता के कई रहस्यों को उजागर करता है।

3. अन्य खोज: डॉ.वाकणकर ने महेश्वर, इंद्रगढ़, मंदसौर और कयाथा जैसे कई स्थलों पर खुदाई कर महत्वपूर्ण पुरातात्विक खोजें कीं।

1975 में मिला पद्मश्री

डॉ.वाकणकर को 1975 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया था। वे एक कुशल कलाकार भी थे। उन्होंने शैलाश्रयों में पाए गए चित्रों को दोबारा चित्रित कर उनके शैलीगत और कालक्रम संबंधी विश्लेषण किए। उनकी सरल जीवनशैली और ज्ञान के प्रति समर्पण की आज भी प्रशंसा की जाती है​।

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