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भोपाल और इंदौर...ये दोनों शहर मध्यप्रदेश की जान हैं। एक राजधानी है तो दूसरा व्यावसायिक राजधानी। दोनों ही संसाधनों से लैस हैं। राजनीतिक संरक्षण से संपन्न हैं। प्रशासनिक दृष्टि से मजबूत हैं। फिर भी एक शहर लगातार आगे है और दूसरा पिछड़ता नजर आता है।
इंदौर स्मार्ट फैसलों, फटाफट एक्शन और मजबूत प्लानिंग के साथ 'नंबर वन सिटी' की पहचान बनाए हुए है। वहीं राजधानी भोपाल बार-बार योजनाओं की शुरुआत में तो दिखता है, लेकिन अंत तक पहुंचते-पहुंचते थक जाता है। पढ़िए ये खास रिपोर्ट...
1. मेट्रो प्रोजेक्ट : इंदौर पहुंचा मंजिल पर
भोपाल और इंदौर दोनों शहरों में मेट्रो परियोजना की नींव साल 2018 में एक साथ रखी गई थी। 2025 में खड़े होकर देखें तो तस्वीर साफ हो जाती है।
इंदौर मेट्रो के पहले चरण का काम पूरा हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 मई को इसका उद्घाटन भी कर दिया है। सुरक्षा निरीक्षण (CMRS) के तीन चक्र पूरे हो चुके हैं।
आज इंदौर मेट्रो सिटी के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। भोपाल मेट्रो अब भी अधूरी। न सिर्फ ट्रैक और स्टेशन आधे बने हैं, बल्कि अभी तक एक बार भी सुरक्षा निरीक्षण नहीं हुआ है। सुभाष नगर से एम्स तक की दूरी बढ़ाई गई, लेकिन साथ में बढ़ गईं तकनीकी बाधाएं, स्टेशन पर अपूर्ण सुविधाएं और नियंत्रण कक्ष की अनुपस्थिति।
यानी: शुरुआत एकसाथ, लेकिन इंदौर मेट्रो शहर बन गया और राजधानी अब भी मेट्रो के इंतजार में है। कहां जा रहा है कि सितंबर तक भोपाल में भी मेट्रो दौड़ने लगेगी, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए यह मुमकिन नहीं है।
2. मेट्रोपॉलिटन रीजन : इंदौर ने दिखाई दूरदृष्टि
प्रदेश सरकार ने दोनों शहरों को दिल्ली-एनसीआर की तर्ज पर मेट्रोपॉलिटन रीजन के रूप में विकसित करने का फैसला किया है। यहां भी इंदौर की बढ़त साफ नजर आती है। इंदौर ने मेट्रोपॉलिटन रीजन की प्रारंभिक डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) पहले ही तैयार कर ली है। इसमें इंदौर के साथ धार, देवास, उज्जैन और शाजापुर के हिस्से भी शामिल हैं।
भोपाल अभी तक एजेंसी तक तय नहीं कर पाया है, जो डीपीआर बनाए। महज एक कॉन्सेप्ट मैप तैयार है, जानकारी के मुताबिक, अभी सर्वे का काम भी शुरू नहीं हुआ है। तो इस तरह भोपाल यहां भी पीछे है, जबकि दोनों शहरों में एक साथ इस प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी दी गई है।
3. टाउन प्लानिंग व शहरी विकास : इंदौर बना रहा भविष्य
शहरी विकास के मामले में इंदौर ने टाउन प्लानिंग स्कीम (TPS) के जरिए शहरी विस्तार का प्रभावी मॉडल तैयार किया है। इंदौर में सात TPS पर एकसाथ काम चल रहा है। किसानों से जमीन लेकर व्यवस्थित प्लॉटिंग, चौड़ी सड़कें, हरियाली, पार्किंग और मिश्रित उपयोग वाली जमीन विकसित की जा रही है। इससे न केवल शहर व्यवस्थित हो रहा है, बल्कि किसानों को भी बेहतर दाम मिल रहे हैं।
भोपाल में इस स्तर की केवल एक योजना चल रही है, वह भी धीमी गति से। कटारा हिल्स क्षेत्र में सड़कों का विकास भी अधूरा है। इस तरह इंदौर में विकास 'विजन' और 'एक्शन' दोनों है, भोपाल में अब भी योजनाएं फाइलों में घूम रही हैं।
जब राजधानी ही पिछड़ जाए
भोपाल में खुद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रशासनिक अमला मौजूद है, मतलब यहां योजनाओं का पिछड़ जाना आश्चर्यजनक है। इससे ये सवाल खड़ा होता है कि क्या राजधानी होने मात्र से कोई शहर लीडर बन सकता है? इंदौर ने बार-बार साबित किया है कि नेतृत्व सिर्फ पद से नहीं, नजरिया, नजर, निर्णय और निष्पादन से आता है। इंदौर के लोग गर्व से इस बात को कहते भी हैं।
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