राहुल गांधी की यात्रा से कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी को फायदा कैसे ?

भारत जोड़ो यात्रा की तरह राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा भी मध्यप्रदेश से गुजरने वाली है। राहुल की यात्रा से कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी को फायदा होता है। विधानसभा चुनाव के नतीजे तो यही बता रहे हैं।

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Rahul Garhwal
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Rahul Gandhi Yatra
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हरीश दिवेकर, BHOPAL. भारत जोड़ो न्याय यात्रा के तहत राहुल गांधी ( Rahul Gandhi ) दिन-रात पैदल चल रहे हैं। कभी गाड़ी पर भी सवार होते हैं कभी आम लोगों से मुलाकात करते हैं। जिस शख्स पर कभी गांधी परिवार और कांग्रेस ( Congress ) का युवराज होने का टैग लगा था। वो शख्स कोसों लंबी सड़क नापकर ये साबित करने में जुटा है कि वो सिर्फ चांदी का चम्मच पकड़ने वालों में से नहीं है। जरूरत पड़ी तो संघर्ष की लाठी भी थाम सकता है। लेकिन क्या ये संघर्ष वाकई राहुल गांधी को वो फल दे रहा है, जिसकी उन्हें दरकार है। न्याय यात्रा से पहले राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले थे। उसका क्या नतीजा रहा। उसका आंकलन करेंगे तो शायद ये अंदाजा हो जाएगा कि इस यात्रा से फायदा किसका और नुकसान किसका।

मध्यप्रदेश से गुजरेगी भारत जोड़ो न्याय यात्रा

भारत जोड़ो यात्रा की तरह राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा ( Bharat Jodo Nyay Yatra ) भी मध्यप्रदेश से गुजरने वाली है। एक बार फिर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में ऊर्जा फूंकने के लिए इसी यात्रा के सहारे है। लोकसभा चुनाव में घटते-घटते कांग्रेस इस हाल में पहुंच गई है कि पार्टी के पास मध्यप्रदेश में फिलहाल सिर्फ एक सीट बची है और बीजेपी की रणनीति कामयाब रही तो ये सीट भी बीजेपी की होगी। वैसे तो प्रदेश के नेता जोरशोर से ये कह रहे हैं कि 100 दिन पहले से एक्टिव हो जाएं और पूरी ताकत झोंक दें। वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी की यात्रा का मुंह ताका जा रहा है।

जीतू पटवारी ने बनाई 22 कमेटियां

मध्यप्रदेश में राहुल गांधी की यात्रा धौलपुर के रास्ते से प्रवेश करेगी। जिन लोकसभा सीटों से होते हुए ये यात्रा गुजरेगी उन 6 सीटों में मुरैना, ग्वालियर, गुना-शिवपुरी, राजगढ़, उज्जैन और रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीटें शामिल हैं। इस पूरे रास्ते राहुल गांधी न सिर्फ पैदल रास्ता नापेंगे बल्कि लोगों से मिलेंगे, चर्चा करेंगे और सभाएं भी करेंगे। इस पूरी यात्रा का फोकस आदिवासी मतदाताओं पर होगा। जो कांग्रेस का कोर वोटर रहे हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव में इस वोटर ने भी शायद कांग्रेस का साथ नहीं दिया। खैर आदिवासी वोटर्स को रिझाने के लिए राहुल गांधी की बदनावर में बड़ी सभा कराने की भी प्लानिंग है। आका की रैली में कोई चूक न हो जाए इसलिए जीतू पटवारी ने 22 कमेटियां बनाई हैं। जो यात्रा के आने से लेकर जाने का तक का पूरा मैनेजमेंट संभालने वाली हैं, लेकिन इस यात्रा को कामयाब बनाने से पहले कांग्रेस को खुद से ही बड़ी लड़ाई लड़नी होगी।

कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती

कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती है उन कार्यकर्ताओं में उत्साह जगाना जो हार से बुरी तरह हताश हैं। ऐसे कार्यकर्ताओं के कान में राहुल गांधी कोई जादुई मंतर फूंक सकें तो ही कुछ बात बन सकती है। आबरा का डाबरा जैसे किसी आसान से मंत्र की जरूरत तो कांग्रेस के बड़े नेताओं को भी है। जिन्हें एकजुट रहने की जरूरत है। फिलहाल कांग्रेस का हाल सबके सामने है। कमलनाथ बस जाते-जाते लौटकर आए हैं और लौटकर आने के बाद वो पुरानी ठसक के साथ आलाकमान की तरह ही बर्ताव कर रहे हैं। ऐसे में जीतू पटवारी को होने न होने पर सवाल जरूर खड़े होंगे और हो रहे हैं। कांग्रेस में ही बने रहने के बाद कमलनाथ ने ये भी ऐलान कर दिया है कि वो पूरे 5 दिन राहुल गांधी की यात्रा में साथ रहेंगे। दिग्विजय सिंह, उमंग सिंगार, हेमंत कटारे भी मौके-बेमौके राहुल गांधी के अगल-बगल नजर आएंगे ही। इस दौरान सब एक नजर आएं तो भी कांग्रेस के लिए बेहतर ही होगा।

पिछली यात्रा से कांग्रेस को नहीं हुआ था फायदा

राहुल गांधी की यात्रा के जरिए कांग्रेस एक नई तस्वीर खींचने की कोशिश तो कर ही सकती है। हालांकि चुनौती बहुत तगड़ी है। फिलहाल तो कांग्रेस को अपनी एक ही सीट बचाए रखने की लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना है। बीजेपी को सिर्फ उसी सीट को हथियाने पर ताकत खर्च करना है। इस यात्रा से कितनी उम्मीद लगाई जाए ये भी कहना मुश्किल है। क्योंकि पिछली यात्रा से प्रदेश में कांग्रेस को कुछ खास फायदा नहीं हुआ था। विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 163 सीटें जीतीं। कांग्रेस पार्टी 66 सीटों में सिमट गई है। भारतीय आदिवासी पार्टी को एक सीट मिली। इन नतीजों से ये तो साफ हो गया था कि भारत जोड़ो यात्रा का कांग्रेस से ज्यादा फायदा बीजेपी को हुआ। प्रदेश की जिन-जिन सीटों से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा निकली, बीजेपी ने उन 21 सीटों में से 17 सीटें जीत लीं।

MP में 2023 के चुनावी नतीजे

23 नवंबर से 4 दिसंबर 2022 के बीच ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र के 6 जिलों बुरहानपुर, खंडवा, खरगोन, इंदौर, उज्जैन और आगर मालवा से होकर निकली। इस दरम्यान राहुल गांधी ने 380 किलोमीटर की दूरी तय की। इस पूरी यात्रा के दौरान राहुल गांधी 21 विधानसभा सीटों से गुजरे। बीजेपी ने 2018 में इनमें से 14 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस 7 सीटों पर विजयी रही। इस बार 2023 के चुनावों में बीजेपी ने इनमें से सीटों की संख्या बढ़ाकर 17 कर ली और कांग्रेस 4 सीटों पर सिमटकर रह गई। 

MP के लोकसभा नतीजों ने अब तक चौंकाया

मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजे हमेशा चौंकाने वाले रहे हैं। खासतौर से कांग्रेस कभी अपने परफॉर्मेंस से चौंकाती रही है तो कभी डराती रही है। थोड़ा पीछे चलते हुए साल 2009 के नतीजों की बात करें तो प्रदेश की 29 सीटों में से बीजेपी के पास 16 सीटें थीं और कांग्रेस के पास 12 सीटें थीं। 12 का आंकड़ा भी कोई छोटा आंकड़ा नहीं है, लेकिन साल 2014 में कांग्रेस ने सीधे-सीधे 10 सीटें गंवा दीं। कांग्रेस के खाते में बची थीं सिर्फ 2 सीटें। बाकी सारी सीटें बीजेपी की झोली में जा गिरी। 2019 में कांग्रेस के लिए हालात और बदतर हुए और एक सीट का भी नुकसान हो गया। कांग्रेस के पास सिर्फ छिंदवाड़ा सीट ही बच सकी।

क्या होगा राहुल गांधी की यात्रा का असर ?

अब देखना ये है कि राहुल गांधी की यात्रा का क्या असर होता है। क्या आदिवासी कांग्रेस के साथ वफादारी निभाता है। सवाल तो कई हैं। क्या कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीत सकेगी, ये सवाल तो बेमानी ही नजर आता है। दूसरा सवाल ये कि क्या कांग्रेस पिछली बार जितनी सीटें हासिल कर सकेगी। सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या कांग्रेस मध्यप्रदेस में अपनी इकलौती सीट बचा सकेगी। कांग्रेस ये एक सीट बचा भी लेती है तो इसका क्रेडिट राहुल गांधी की यात्रा को नहीं जाएगा, क्योंकि यात्रा के रूट में छिंदवाड़ा शामिल नहीं है। विधानसभा के आंकड़े तो यही बताते हैं कि पिछली यात्रा से कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिला। इस बार की यात्रा क्या बेनतीजा ही रहती है। ये भी चुनावी नतीजों के बाद ही समझा जा सकेगा। फिलहाल तो राहुल गांधी के लिए बस यही कहा जा सकता है कि

सोचने से कहां मिलते हैं तमन्नाओं के शहर, चलना भी जरूरी है मंजिल को पाने के लिए

राहुल गांधी यही कर भी रहे हैं, पर फिलहाल मंजिल बहुत दूर ही नजर आती है।

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