शाजापुर में 28 वोट से हार-जीत पर हाईकोर्ट में सुनवाई, वकील बने महापौर

मध्‍य प्रदेश की शाजापुर विधानसभा सीट के लिए चुनाव याचिका पर इंदौर हाईकोर्ट में 3 घंटे लंबी बहस हुई। इसमें भाजपा विधायक अरुण भीमावद की ओर से महापौर पुष्यमित्र भार्गव खुद वकील के तौर पर कोर्ट में पेश हुए।

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Sanjay gupta
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INDORE : इंदौर हाईकोर्ट में शाजापुर विधानसभा सीट को लेकर लगी इलेक्शन पिटीशन को लेकर करीब 3 घंटे लंबी बहस चली। इसमें बीजेपी विधायक अरूण भीमावद की ओर से खुद महापौर पुष्यमित्र भार्गव अधिवक्ता बनकर कोर्ट में उतरे। करीब डेढ़ घंटे तक उन्होंने तर्क रखे और बाद में याचिकाकर्ता कांग्रेस प्रत्याशी हुकुमसिंह कराड़ा की ओर से अधिवक्ता अभिवन धनोतकर ने भी इतनी देर तक तर्क पेश किए। हाईकोर्ट ने पक्ष सुनकर यह याचिका चलने योग्य है या नहीं इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया। फैसला कांग्रेस प्रत्याशी हुकुमसिंह कराड़ा के पक्ष में आने पर आगे हाईकोर्ट में पिटीशन पर आगे सुनवाई जारी रहेगी नहीं तो पिटीशन डिसमिस हो जाएगी।

यह है मामला

शाजापुर विधानसभा चुनाव दिसंबर 2023 में कांग्रेस प्रत्याशी कराड़ा की 28 वोट से हार हुई और बीजेपी के भीमावद चुनाव जीत गए। इसके बाद कराडा ने याचिका लगाई और इसमें भीमावद द्वारा नामाकंन पत्र में पूरी जानकारी नहीं देने और साथ ही चुनाव अधिकारी द्वारा पोस्टल बैलेट की गिनती नहीं करने का मुद्दा उठाया। इनका कहना था कि 158 पोस्टल बैलेट निरस्त किए गए, इनकी डिटेल जानकारी नहीं दी गई, यदि यह गिने जाते तो जीत होती, क्योंकि ईवीएम में भी वोट की गिनती में हम (कांग्रेस प्रत्याशी) जीते थे।

महापौर ने यह तर्क रखे

महापौर पुष्यमित्र भार्गव एक अधिवक्ता की तोर पर भीमावद की ओर से पेश हुए। उन्होंने लोकप्रतिनिधित्व एक्ट के नियम बताते हुए कहा कि सभी केस की जानकारी देना जरूरी नहीं है, एक साल से अधिक की सजा होना और अन्य नियम है इसके तहत ही जानकारी देना अनिवार्य है। वहीं 158 पोस्टल बैलेट को लेकर भी तर्क रखे कि इनके एजेंट द्वारा सही तरह से आपत्ति नहीं ली गई है। यह याचिका चलने योग्य ही नहीं है। एक वोट से हुई हार-जीत के सुप्रीम कोर्ट के एक केस को भी उन्होंने पेश किया।

कांग्रेस याचिकाकर्ता की ओर से रखे गए पक्ष

उधर अधिवक्ता धनोतकर ने भी पक्ष रखा और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लगातार अपने फैसलों में राइट टू नो को पुख्ता किया और आमजन को प्रत्याशी के बारे में सभी कुछ जानने का हक है, वह कुछ भी छिपा नहीं सकता है। वहीं उन्होंने बालमुकुंद गौतम के केस का उदाहरण दिया जिसमें एक वोट से हार-जीत का ही मुद्दा था और बाद में गौतम को विजयी घोषित किया गया था। वहीं पोस्टल बैलेट को लेकर मांग उठी कि 158 वोट की गिनती होती तो प्रत्याशी की जीत होती।

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