बोल हरि बोल : महक उठे एडीजी साहब के महुआ, हीरा की चमक सबसे अलग और नेताजी का दुख खत्म ही नहीं होता

मीडिया में गूंज रहा है बीजेपी का घोषणा पत्र। जी हां, आज पंत प्रधान ने देशवासियों को अपनी गारंटियों का गिफ्ट दिया है। 'अबकी बार, 400 पार' के टारगेट को पूरा करने के लिए अंबेडकर जयंती पर बीजेपी ने पिटारा खोल दिया है ... मगर

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BOL HARI BOL 14 APRIL 2024
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हरीश दिवेकर @ भोपाल
आज सब शुभ है। नववर्ष की बेला है। बंगाल में वैशाख मन रहा है। असम में बिहू, ओडिशा में पाना संक्रांति और केरल में बिशु की धूम है। तमिलनाडु में नववर्ष पुथांडु चल रहा है। मध्य एवं उत्तर दिशाओं में मां कात्यायनी के मंत्र गूंज रहे हैं। 
इसके इतर मीडिया में गूंज रहा है बीजेपी का घोषणा पत्र। जी हां, आज पंत प्रधान ने देशवासियों को अपनी गारंटियों का गिफ्ट दिया है। 'अबकी बार, 400 पार' के टारगेट को पूरा करने के लिए संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती पर बीजेपी ने पिटारा खोल दिया है। भाईसाहब ने गांव, गरीब पर सबसे ज्यादा फोकस किया है। 
खैर, ये तो हुई दिल्ली की बात। अपन तो आते हैं मोहन के मनमोहन एमपी पर। पीएम मोदी आज पिपरिया (होशंगाबाद) में चुनावी सभा करेंगे। सात दिन में यह उनका तीसरा दौरा है। अरे भई हो भी क्यों न मोदी के मन में एमपी जो बसा है। दूसरी खबर है कि बड़ी मैडम के बड़े कारनामे डॉक्टर साहब के कानों तक पहुंच गए हैं। लोकसभा चुनाव के बाद उनकी विदाई हो सकती है। एक एडीजी साहब के तीन करोड़ वाले महुओं की महक पूरे प्रदेश में महक रही है। उधर, बुंदेलखंड से दो खबरें निकली हैं। एक कलेक्टर साहब चुनाव की चिंता छोड़ कॉलोनी- कॉलोनी खेल रहे हैं और दूसरी चर्चा मंत्री जी के 'हीरा' की है। 
हमने भूमिका बना दी है। अब पूरी रिपोर्ट के लिए नीचे आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।

बड़ी मैडम के साढ़ेसाती शुरू...

बड़ी मैडम पर तारे- सितारों ने वक्र दृष्टि कर ली है। मानो उन्हें अब साढ़ेसाती लगने वाली है। हां गुरु, ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि मैडम के नेगेटिव वाले नवाचारों की खबर डॉक्टर साहब के कानों तक पहुंच गई है। दरअसल, क्या है कि मैडम की दलालों से दोस्ती है। वे खुलकर अपने नीचे वाले अधिकारियों को फोन करती हैं और उन्हें काम देने की सिफारिश करती हैं। पक्की खबर है कि मंडी बोर्ड, लघु उद्योग निगम, उच्च शिक्षा, खनिज और बिजली कंपनी में बैठे एमडी और आयुक्त स्तर के अफसरों को मैडम ने सीधे फोन लगाया है। दफ्तरों में मैडम और दलाल की खुली चर्चा है। लिहाजा, अब मैडम की माया की बात मोहन तक पहुंच गई है। ऐसे में संभावना है कि चुनाव के बाद मैडम को हॉट सीट से हटाकर कूल सीट पर बैठाया जा सकता है। 

महक उठे एडीजी साहब के महुआ 

एक एडीजी साहब दो दूनी, चार करने चले थे, लेकिन रह गए डेढ़। मसला महाकौशल से जुड़ा है। वहां अपनी पोस्टिंग के दौरान एडीजी साहब ने 3 करोड़ रुपए का महुआ खरीदा था। उन्हें बताया गया था कि यही महुआ 6 करोड़ रुपए में बिक जाएगा। अब ये तो वैसा ही था कि 'बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद'। साहब को पूरी गणित पता नहीं थी। महुआ रखा- रखा सूख गया। अब रुपए खड़े करने के लिए एडीजी साहब ने एक टीआई को पूरा माजरा बताया। फिर 3 करोड़ के महुए ढाई करोड़ रुपए में ठिकाने लगाए गए। यानी साहब को सीधे 50 लाख का घाटा हुआ। हालांकि अब साहब का ट्रांसफर हो गया है। मजे की बात यह है कि अब महुआ बिकवाने वाला टीआई ही रस ले- लेकर साहब के किस्से सुना रहा है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि साहब इन दिनों वाहनों का हिसाब- किताब देखने वाले महकमे में अहम पद पर हैं।  

अजी चुनाव में क्या रखा है...

किसी ने सही कहा है कि माया की लीला निराली होती है। हर कोई इसके पीछे हो लेता है। अब इसी माया के चक्कर में बुंदेलखंड के एक जिले में पदस्थ कलेक्टर साहब आ गए हैं। अपने आखिरी ओवर में हर बॉल पर छक्का मारने की तैयारी में हैं। वे चुनाव छोड़कर कॉलोनी- कॉलोनी खेल रहे हैं। दरअसल, क्या है कि साहब ने एक कॉलोनाईजर की 48 एकड़ जमीन पर से स्मार्ट सिटी का चौड़ा रोड निकालने का प्लान बनाया। इसके लिए बीच में आ रहे किसानों से कलेक्टर साहब खुद बात कर रहे थे। कुछ मामला जमता, इससे पहले ही एक किसान ने खेल बिगाड़ दिया। उसने बात लीक कर दी। अब कलेक्टर साहब के खेला में स्थानीय नेता भी कूदने को तैयार हैं। आपको बता दें कि ये जिला कद्दावर मंत्रियों की आपसी खींचतान के लिए चर्चा में बना रहा है। 

बाअदब, बामुलाहिजा, होशियार!

बाअदब, बामुलाहिजा, होशियार! मैडम तशरीफ ला रहे हैं। जी हां, एक आईपीएस मैडम लंबे समय बाद अपना 'वनवास' काटकर घर आ रही हैं। आपको बता दें कि एक तेजतर्रार एवं विवादित महिला आईपीएस अफसर लंबे समय से केन्द्रीय डेपुटेशन पर थीं। अब उनकी एमपी में वापसी हो रही है। उनके आने की खबर के सा​थ पीएचक्यू के अफसरों में चर्चा है कि मैडम जहां पदस्थ होंगी, वहां नीचे और ऊपर वालों का बीपी- शुगर बढ़ना तय है। दरअसल, मैडम के साथ काम करने वालों के पुराने अनुभव इतने ज्यादा खराब रहे हैं कि उससे उनका परसेप्शन बिगड़ गया है। बहरहाल, हम उम्मीद करते हैं कि दिल्ली की आबोहवा से शायद मैडम के व्यवहार में परिवर्तन आ गया हो।

भाईसाहब टेंशन, विरोधी बल्लेबाजी कर रहे 

ग्वालियर- चंबल में इस बार नरेन्द्र सिंह तोमर की साख दांव पर है। ग्वालियर और मुरैना के सांसद प्रत्याशी तोमर के कट्टर समर्थक हैं। ऐसे में तोमर विरोधी खेमा इस चुनाव में अंदरखाने बल्लेबाजी कर रहा है। हालात ये हैं कि ग्वालियर- चंबल के दूसरे दिग्गज नेता यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक अपना चुनाव छोड़कर गुना- शिवपुरी में डेरा डाले हुए हैं। वहीं गुटबाजी और प्रत्याशियों के विरोधी नेता चुनावी कार्यक्रम में मुंह दिखाई कर रहे हैं। हालात को समझते हुए तोमर ने पूरा फोकस केवल ग्वालियर- मुरैना सीट पर कर लिया है। हालांकि मोदी की गारंटी ने सबको ये भरोसा तो दे रखा है ​कैसे भी हो जीत तो जाएंगे ही। 

मंत्री से ज्यादा भाई का जलवा

बुंदेलखंड के एक जिले में मंत्री के भाई का जलवा मंत्री से ज्यादा दिखाई पड़ता है। स्थानीय राजनीति में भाई के बिना पत्ता नहीं हिलता, खासतौर से जिले के ग्रामीण क्षेत्र में। हालात यह हैं कि एक सरपंच ऐसा नहीं है, जो अपना काम मंत्री के भाई की सहमति के बिना करवा ले। फिर वो चाहे किसी भी कद्दावर नेता या मंत्री का समर्थक ही क्यों न हो। सीईओ- कलेक्टर- कमिश्नर को साफ हिदायत है कि जब तक भाई न बोलें, तब तक कोई काम नहीं होगा। हो भी क्यों न, मंत्री के लिए भाई तो हीरा हैं हीरा।

क्या करें हम समर्पित कार्यकर्ता जो ठहरे...

विक्रांत अच्छा कर रहा था, पर उसके कॅरियर पर ब्रेक लगा दिया। कांग्रेस का तो अब भगवान ही मालिक है। ऊपर से बीजेपी वाले अलग नहीं मान रहे। मैंने मना भी कर दिया था कि चुनाव नहीं लड़ना चाहता हूं। अब उम्र भी ज्यादा हो गई। अब क्या करें, हम तो समर्पित कार्यकर्ता हैं, जो पार्टी कहेगी उसे पूरा करेंगे। चाय पीते हुए कांग्रेस के एक बड़े नेताजी कुछ इसी अंदाज में अपनी पीड़ा बयां कर रहे थे। दरअसल, बीजेपी की चुनावी देखकर नेताजी हैरान हैं। पार्टी ने उन्हें टिकट तो दे दिया, लेकिन नेताजी के प्रचार ने अब तक जोर ही नहीं पकड़ा। 

राम की चिड़िया, राम के खेत, 
खाओ री चिड़िया, भर- भर पेट।
जिसे, जब, जहां और जैसे मौका मिलता है अपनी सेटिंग जमाने में जुट जाता है। ​विधानसभा का मामला ही ले लीजिए। सचिवालय में धड़ाधड़ नौकरियां दी गईं। शिकायत हुई तो कुछ कर्मचारियों को हटाया भी गया, लेकिन यह सब चलता ही रहा। आज भी कुछ कर्मचारी ऐसे हैं, जिन्हें 'सिफारिश' पर नौकरी मिली थी। खैर, अब विधानसभा सचिवालय 68 साल बाद नींद से जाग गया है। यहां अब लोक सेवा आयोग यानी पीएससी के जरिए ही लोगों को नौकरी पर रखा जाएगा। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि यह नियम कब तक बन पाता है। 

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