सूबे में अब सब सेट हो गया है। मतलब, मानसून भी और सियासत भी। दोनों तरफ मंद-मंद बयार चल रही है। हालांकि विपक्ष अब भी हार से नहीं उबर पाया। समीक्षाएं चल रही हैं। कांग्रेस प्रत्याशी कहते फिर रहे हैं कि उन्हें चुनाव में पोलिंग एजेंट तक नहीं मिले। सत्तारूढ़ दल पैराशूट से उतरे नेताओं को एडजेस्ट करने की तैयारी कर रहा है।
सियासत में दो मंत्रियों की लड़ाई खुल्लम- खुल्ला सामने आ गई है। विपक्ष की कैंटीन चहुंओर छाई हुई है। खैर, देश प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
कप्तान के फेर में निपटेंगे एडीजी- डीआईजी
खुलेआम बल्लेबाजी कर रहे एक जिले के कप्तान साहब पर वरदहस्त रखने वाले एडीजी और डीआईजी साहब अब संकट में आ गए हैं। डॉक्टर साहब तक इन साहब लोगों की करतूतें पहुंच गई हैं। उन्हें पता चल गया है कि किस तरह से लॉ एंड आर्डर की पुंगी बजाकर खदान माफिया का रैकेट चलाया जा रहा है। कप्तान साहब इस मामले को लीड कर रहे हैं और एडीजी- डीआईजी चुप बैठने की मलाई खा रहे हैं। मामला ऊपर तक पहुंचते ही अब इन सबकी सांसें ऊपर-नीचे होने लगी हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि डॉक्टर साहब इन साहबों का जल्द ही इलाज करने वाले हैं। हम तो यहीं कहेंगे कि बच के रहियो भैया...!!!
साहब की मंत्रालय में घुसपैठ की कोशिश...
आपने वो कहावत तो सुनी होगी कि 'बद से बदनाम बुरा...' फिलहाल यह कहावत प्रदेश के एक सीनियर आईएएस अफसर पर भारी पड़ रही है। साहब पर छोटे-छोटे लेन-देन के इतने आरोप लगे कि वे बदनाम हो गए। अब जैसे को तैसा तो होता ही है। लिहाजा, लेन-देन का खामियाजा उन्हें उठाना ही पड़ा। 'सरकार' ने उन्हें मंत्रालय से बाहर कर दिया है। साहब पहले भी मंत्रालय से बाहर किए गए थे, लेकिन सेटिंग करके एक पैर जमा लिया था। अब फिर साहब को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। हालांकि साहब मंत्रालय में फिर घुसपैठ करने के लिए संगठन में सेटिंग जमा रहे हैं।
मंत्रीजी और जमीन का चक्कर, पुलिस परेशान
जर, जोरू और जमीन के चक्कर क्या कुछ नहीं हो जाता। अब देखिए न जमीन के फेर में यहां सूबे के दो मंत्री आमने- सामने आ गए हैं। इनके झगड़े में बेचारे पुलिस वाले परेशान हैं। दरअसल, मामला ऐसा है कि एक प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री एक मंत्री जी के भतीजे ने कराई थी। इसी जमीन की दूसरी रजिस्ट्री दूसरे मंत्री जी के समर्थक ने करवा ली। मामला राजधानी भोपाल के थाने में पहुंचा। बेचारे पुलिस अधिकारी कोई एक्शन लेते, उससे पहले ही दोनों मंत्रियों ने फोन ठोक दिए। अब पुलिस अफसर चाहकर भी सही का साथ नहीं दे पा रहे। दोनों मंत्रियों की आपसी खींचतान और भारी दबाव से परेशान होकर एक पुलिस अधिकारी ने तो क्षेत्र से तबादला कराने की जुगाड़ लगाना शुरू कर दी है।
कलेक्टर बनने के लिए टोटका
पद, पावर और प्रतिष्ठा… ये तीन भले ही हिन्दी के अक्षरों से ज्यादा कुछ नहीं, लेकिन जिसके पास होते हैं, वह हवा से बातें करता है। इन्हें पाने के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते। फिर चाहे वह साइंटिफिक हो अथवा नहीं। अब इसी मामले को देख लीजिए। कलेक्टर बनने के लिए एक प्रमोटी आईएएस अफसर सारे जतन करने में जुटे हुए हैं। हाल ही में उन्हें किसी ज्योतिषाचार्य ने कमरे में बैठने की दिशा बदलने की सलाह दी थी। अब साहब मन से तो कलेक्टर बनना ही चाहते हैं। लिहाजा, उन्होंने सारा काम छोड़कर तत्काल टेबल से सारी फाईलें हटाईं और तय जगह पर बदलाव कर दिया। बताते हैं कि ज्योतिषी ने साहब से कहा है कि 15 जुलाई तक उन्हें अच्छी पोस्टिंग मिल जाएगी।
ये सिस्टम है भाई! लपेटे में आ गए दो साहब
अब तक आपने सुना होगा कि लालफीताशाही का शिकार आम जनता होती है, लेकिन यहां प्रदेश के दो आईपीएस अफसर इस सिस्टम के लपेटे में आ गए। दिल्ली के एक आदेश के बाद पुलिस मुख्यालय ने इन दोनों को सीबीआई भेज दिया। ये लोग जब दिल्ली पहुंचे तो सीबीआई ने कहा कि हमने तो बुलाया ही नहीं। वहां से वापस प्रदेश लौटे तो इन्हें एक माह बाद फिर मणिपुर में जांच अधिकारी बनाकर भेज दिया। अब एक साल से दोनों अफसर प्रदेश वापसी के लिए परेशान हो रहे हैं, लेकिन कहीं उनकी दाल नहीं गल रही।
क्या गुलदस्ते का मान रखेंगे भाईसाहब
राजधानी में आज सत्ता- संगठन एक जाजम पर बैठकर मंथन करेंगे। इसी मंथन के बाद मुहर लगेगी कि चुनावों के वक्त दूसरी पार्टी से आयात किए गए नेताओं को कहां और किस तरह एडजेस्ट किया जाए। मजे की बात यह है कि एडजेस्ट होने वाले एक दर्जन नेता भी भोपाल में डेरा डाले हुए हैं। गुलदस्ते के साथ वे एक हफ्ते से शीर्ष नेतृत्व से मेल मुलाकातें कर रहे हैं, ताकि कुछ हो जाए। फिलहाल तो बीजेपी की इस बड़ी बैठक में दो सैकड़ा बड़े नेता और हजार से ज्यादा कार्यकर्ता जुटेंगे। बैठक में पार्टी अपनी अगली रणनीति भी तय करेगी।
कैंटीन खुल गई भैया...
विपक्ष यानी कांग्रेस में अलग ही माहौल है। चुनावी हार के बाद रिफॉर्म का दौर चल रहा है। सबकुछ बदला जा रहा है। मतलब, दिखलौट सामान भी और मीनाकारी भी। इनोवेशन चल रहे हैं। अब तो कैंटीन भी खुल गई है। इसकी खासी चर्चा है। खास यह है कि यहां भी विरोधी दल का ध्यान रखा गया है। मतलब, कांग्रेस की कैंटीन में बीजेपी की कैंटीन से सस्ता खाना मिलने का दावा है। इसके उलट चुनाव लड़े नेता संगठन की बैठकों में अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। रह-रहकर उनका दर्द छलक रहा है। वे कह रहे हैं कि संगठन कमजोर है। उन्हें चुनाव में पोलिंग एजेंट तक नहीं मिले। खैर, अब इसका तोड़ निकाला जा रहा है। फीडबैक के आधार पर रिफॉर्म की तैयारी है।
बोल हरि बोल पत्रकार हरीश दिवेकर 7 जुलाई 2024 Bol Hari Bol Journalist Harish Diwekar 7 July 2024