छिंदवाड़ा में किसान न्याय यात्रा का बजा बिगुल, पीसीसी में गूंज, हो रही कानाफूसी

एमपी के पूर्व सीएम कमलनाथ 20 सितम्बर को छिंदवाड़ा से किसान न्याय यात्रा (Kisan Nyay Yatra ) का बिगुल फूंकेंगे। कमलनाथ के आव्हान के बाद प्रदेश कांग्रेस में भी सुगबुगाहट दिख रही है। 

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha elections ) में करारी हार में बाद हाशिए पर पहुंची कांग्रेस फिर एक बार किसानों के सहारे दिख रही है। विधानसभा चुनाव ( assembly elections ) के बाद पार्टी में शुरू हुए विरोध के बाद कमलनाथ को पीछे धकेल दिया गया था। महीनों बाद कमलनाथ ( Kamalnath ) ने फिर खुद को मजबूत बनाने की तरकीब खोज ली है। बीते दिनों हुई बारिश से फसलों को जमकर नुकसान हुआ है, लेकिन क्षति का सर्वे करने राजस्व अमला खेतों तक नहीं पहुंचा। वहीं सरकार भी अब तक चुप है। इससे किसानों में आक्रोश पनप रहा है। प्रदेश भर से आ रही सूचनाओं के बाद कमलनाथ फिर किसानों के हमदर्द बनकर सड़कों पर उतरने का मन बना चुके हैं। इसके लिए कमलनाथ ने अपने सिपहसालारों से मंत्रणा के बाद कार्यकर्ताओं के साथ बैठक भी कर ली है। कमलनाथ 20 सितम्बर को छिंदवाड़ा से किसान न्याय यात्रा ( Kisan Nyay Yatra ) का बिगुल फूंकेंगे। कमलनाथ के आव्हान के बाद प्रदेश कांग्रेस में भी सुगबुगाहट दिख रही है। 

विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद पूरी तरह साइडलाइन कर दिए गए पूर्व सीएम कमलनाथ फिर सक्रिय नजर आने लगे हैं। कमलनाथ की सक्रियता के चलते बीते सप्ताह से प्रदेश कार्यालय में भी कानाफूसी का दौर चल पड़ा है। कांग्रेस नेताओं में चर्चा हो रही है कि नाथ को केंद्रीय नेतृत्व से हरी झंडी मिल गई है। जिन वजहों को लेकर नाथ और आलाकमान में दूरी बढ़ रही थी शायद अब वो खत्म हो चुकी है। वहीं छिंदवाड़ा में कमलनाथ के एक्टिव होते ही प्रदेश भर में फैले उनके समर्थकों में भी ऊर्जा भर गई है। 

किसानों के सहारे ही कांग्रेस का उत्थान

पिछले दिनों लगातार बारिश होने से प्रदेश के अधिकांश जिलों में फसलें पानी में डूबी रही हैं। इस वजह से किसानों का काफी नुकसान हुआ है। फसलों के सड़ने से हुई क्षति के सर्वे के लिए एक सप्ताह बाद भी राजस्व दल खेतों तक नहीं पहुंचे हैं। इसको लेकर सरकार की ओर से भी कोई अधिकृत घोषणा नहीं की गई है। फसल खराब होने से परेशान किसानों में इस अनदेखी के चलते नाराजगी बढ़ रही है। प्रदेश की राजनीति पर किसानों की मजबूत पकड़ है। 70 फीसदी से ज्यादा आबादी और वोटरों पर किसानों का सीधा प्रभाव है। कमलनाथ इस गणित को बहुत अच्छे से समझते हैं। साल 2018 में किसानों के सहारे ही कमलनाथ ने लंबे अरसे बाद प्रदेश में कांग्रेस सरकार की वापसी कराई थी। इसके साथ उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका भी मिला था। तब कमलनाथ ने किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा की थी। कमलनाथ किसानों की परेशानी में कांग्रेस को उसका हमदर्द दिखाना चाहते हैं। छिंदवाड़ा में न्याय यात्रा के लिए नकली खाद-बीज, फसलों की लागत के अनुरूप उनका बाजार मूल्य, नुकसान झेलने वाले छोटे किसानों को वैकल्पिक काम, मूंग का भुगतान तुरंत करने की मांग भी उठाई जाएगी। 

कमलनाथ की सक्रियता से नए सवाल 

कमलनाथ के अचानक सक्रिय होने से संकटग्रस्त प्रदेश कांग्रेस में बदलाव की बयार की चर्चा जोरों पर है। कांग्रेस कार्यालय के पदाधिकारियों के कमरों में गुपचुप कानाफूसी हो रही है। विधानसभा चुनाव के बाद कमलनाथ की नेतृत्व क्षमता पर जिस तरह सवाल उठाए गए थे, जीतू पटवारी को लेकर भी लोकसभा चुनाव के बाद वहीं सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में कमलनाथ की सक्रियता ने कांग्रेस के ठहरे हुए पानी में हलचल मचा दी है। हांलाकि नाथ की ओर से अब तक कोई साफ बयान नहीं आया है, लेकिन उनके एक्टिव होने के मायने निकाले जा रहे हैं। 

आठ माह से अधर में नियुक्तियां 

विधानसभा चुनाव में शिकस्त के बाद जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई थी। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पटवारी ने धुंआधार दौरे और मैराथन बैठकें शुरू की। उनकी सक्रियता को देखते हुए कांग्रेस में अमूलचूल परिवर्तन की चर्चाएं भी होने लगी थीं। हालांकि लोकसभा चुनाव में सभी 29 सीट गंवाने के बाद पटवारी का जोश ठंडा पड़ता नजर आ रहा है। उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कई जिलों में शहर और ग्रामीण जिला अध्यक्षों सहित दूसरे पदाधिकारियों की नियुक्ति अधर में है। प्रदेश कार्यसमिति में भी नई नियुक्तियां नहीं हुई हैं और जिन पदाधिकारियों को बदला गया था वह भी सिर्फ कमरे बदलने जैसा ही था। यानी जिस बड़े बदलाव की उम्मीद पटवारी से थी वो पूरी नहीं हुई।

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