सीमेंट कंपनी की मनमानी : किसानों की जमीन हड़पने कोर्ट के आदेश का भी नहीं कर रहे इंतजार

मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में सीमेंट फैक्ट्री को जमीन दिलाने कलेक्टर के आदेश पर किसान की फसल रौंद दी गई। हाईकोर्ट में अपील विचाराधीन होने के बाद भी किसान का 72 एकड़ खेत छीन लिया गया...

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Sanjay Sharma
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सीमेंट कंपनी की मनमानी : मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में एक सीमेंट कंपनी को जमीन दिलाने के लिए सरकार के आदेश पर कलेक्टर ने एक किसान के 72 एकड़ खेत पर कंपनी को कब्जा दिलाया है। इस घटना के बाद दुखी किसान फरियाद लेकर भटक रहा है और सुनवाई न होने पर परिवार सहित आत्मदाह की चेतावनी भी दे डाली है। यानी किसान को घाटे से उबारने के दावे तो सच नहीं हुए, उल्टा सरकार के आला अफसर कंपनियों के इशारे पर उनके खेत छीनने में लग गए हैं। 

सीमेंट कंपनी के करीब 100 गार्ड लेकर पहुंचे कलेक्टर

पन्ना जिले के सिमरिया थानांतर्गत ग्राम कोनी में रहने वाले किसान रामप्रकाश पटेल ने जिला प्रशासन पर सीमेंट कंपनी के लिए अपनी पैतृक खेती पर कब्जा करने के आरोप लगाए हैं। किसान का कहना है जेपी सीमेंट फैक्ट्री के लिए जमीन की जरूरत है। इसके लिए कलेक्टर ने गांव के किसानों को नोटिस जारी किया था। इस पर किसानों ने कलेक्टर के सामने पेश होकर खेत के बदले कृषि उपयोगी जमीन उपलब्ध कराने की मांग की थी। जिस पर जिला प्रशासन ने विचार करने का भरोसा दिलाया था, लेकिन कुछ दिन बाद फिर नोटिस जारी कर भूमि अधिग्रहण का आदेश दे दिया। परेशान किसानों ने जबलपुर हाईकोर्ट की शरण ली, लेकिन वहां से निर्णय आने का इंतजार किए बिना ही बीते दिन कलेक्टर पुलिस अधिकारी और सीमेंट कंपनी के 100 से ज्यादा गार्ड लेकर पहुंच गए। किसानों ने विरोध किया, लेकिन कलेक्टर के आदेश पर खेत में खड़ी खरीफ फसलों को मशीनों से रौंदकर कब्जा कंपनी को दे दिया गया। अब रामप्रकाश जैसे अन्य किसान खेत न लौटाने पर सात दिन बाद कलेक्टोरेट में आत्मदाह करने की चेतावनी दे रहे हैं। वहीं कलेक्टर सुरेश कुमार ने इस मामले में कोई भी प्रतिक्रया नहीं दी है। 

कंपनी के इशारे पर कलेक्टर कर रहे एकतरफा कार्रवाई 

जनपद सदस्य रोहित द्विवेदी ने बताया जिला प्रशासन के अफसर किसानों की बात को नहीं सुन रहे हैं। संवेदशन शून्य हो चुके अफसरों की कार्रवाई देखकर ऐसा लग रहा है वे कंपनी के इशारे पर एकतरफा कार्रवाई का मन बना चुके हैं। किसान साल में दो बार फसल पैदा करके अपना परिवार चलाता है। रामप्रकाश पटेल और दूसरे किसानों ने खरीफ सीजन की बोवनी की थी, लेकिन कंपनी को जमीन दिलाने के लिए कलेक्टर ने लहलहाती फसलों को मशीनों से रौंद दिया है। किसानों को उनके खेतों से खदेड़ा गया, जबकि वे सिर्फ खेत के बदले खेती वाली जमीन देने की मांग कर रहे थे। अंचल में सरकारी रेट बहुत कम है और इसमें किसान वर्तमान खेत के बराबर जगह नहीं ले पाएंगे। इसलिए वे सरकार से ही खेत के बदले जमीन चाहते हैं।  

किसानों का दुश्मन बन गया भूअधिग्रहण कानून

किसानों का कहना है प्रदेश के विकास के लिए उद्योग जरूरी हैं। सरकार इसके लिए अच्छा काम कर रही है, लेकिन अफसर संवेदनशून्य हो गए हैं। भू अधिग्रहण कानून की धारा 247 को अफसरों ने किसानों की जमीन हड़पने का जरिया बना लिया है। सरकार इस कानून का उपयोग कर विकास कार्य या उद्योगों के लिए किसानों की जमीनों का अधिग्रहण कर सकती है। यह कानून किसानों का दुश्मन बन गया है। किसान यदि खेत के बदले खेत मांगता है तो उसे दूसरी जगह उपलब्ध कराई जानी चाहिए, लेकिन अफसर सिर्फ अपना पल्ला झाड़कर खुश हैं। वहीं उन किसानों की फरियाद सुनने वाला कोई नहीं जो दशकों से इन्हीं खेतों में फसल पैदाकर परिवार पाल रहा है। अन्नदाता को अफसर उन्हीं के खेतों से अपराधी की तरह खदेड़ रहे हैं। जब किसान और आम लोग ही दुखी होंगे तो उद्योग लगाने से सरकार को क्या फायदा होगा।

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