मुनाफा कमाने के चक्कर में पड़ गए सस्ती दवाएं मुहैया कराने वाले केंद्र

'द सूत्र' ने राज्य के तीन शहरों के जन औषधि केंद्रों की पड़ताल की। स्थिति को समझने महाकौशल अंचल के जबलपुर, मालवा के रतलाम और मध्य क्षेत्र के रायसेन जिले के केंद्रों से दवाएं खरीदीं।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. कैसे मुनाफे का लालच योजनाओं को उद्देश्य से भटका देता है इसका एक और उदाहरण बन गई है जनऔषधि परियोजना। मंहगे उपचार और दवाओं के लिए परेशान गरीब-कमजोर वर्ग की परेशानी दूर करने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर 18 साल पहले शुरू योजना में अब वसूलीबाज घुस आए हैं। जनऔषधि केंद्रों पर जरूरतमंदों से ज्यादा कीमत वसूली जा रही है। मुनाफे के चक्कर में ज्यादातर केंद्रों से कारगर लेकिन सस्ती दवाएं गायब कर दी  गई हैं। अब मुनाफाखोरों ने यहां भी अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। सरकारी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परिसरों में भी इन दवा केंद्रों की मनमानी जारी है। इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन का इस ओर ध्यान नहीं है। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो मतलब ये है कि एक ओर योजना सरकारी सिस्टम की उदासीनता की शिकार हो चली है।  

जन औषधि केंद्र की नहीं नहीं हो रही पड़ताल

जीवनरक्षक दवाएं कम कीमत पर मुहैया कराने की सरकार की नीयत को कैसे बिगाड़ा जा रहा है ये किसी से छिपा नहीं है। जन औषधि केंद्र भी सरकारी निगरानी न होने के कारण बाजारू मेडिकल स्टोर की शक्ल लेते जा रहा हैं। जहां मरीज की हालत नहीं बल्कि मुनाफा कमाना उद्देश्य होता है। जन औषधि केंद्र जबसे खुले हैं शायद ही सीएमएचओ या प्रशासन के किसी अफसर ने इनकी पड़ताल की है। इसी वजह से केंद्र संचालक मनमानी पर उतर आए हैं। सरकारी योजना के तहत खुले इस केंद्रों को प्रशासन की ओर से रियायत देने का फायदा भी ये जमकर उठा रहे हैं। इन शिकायतों पर जहां प्रशासन मौन हैं वहीं द सूत्र ने पड़ताल की तो कई खुलासे हुए हैं। इन्हें आप भी देखेंगे तो चौंक जाएंगे कि कैसे खुलेआम नियम तोड़कर केंद्र और राज्य की मंशा को पलीता लगाया जा रहा है। 

बिल से इंकार, जरूरी दवा की भी कमी 

द सूत्र ने राज्य के तीन शहरों के जन औषधि केंद्रों की पड़ताल की। स्थिति को समझने महाकौशल अंचल के जबलपुर, मालवा के रतलाम और मध्य क्षेत्र के रायसेन जिले के केंद्रों से दवाएं खरीदीं। इस दौरान किसी ने बिल नहीं दिया तो किसी ने अपने ही कम्प्यूटर सिस्टम पर दवा की कीमतें दिखाकर पल्ला झाड़ लिया। कहीं सस्ती जेनेरिक दवाएं ज्यादा कीमत वसूलकर थमाई गईं तो कुछ ने कम मुनाफा देने वाली दवा होने से ही इंकार कर दिया। द सूत्र की पड़ताल से सब साफ है कि कैसे सस्ती दवाएं देने वाले केंद्र अपने उद्देश्य से भटक चुके हैं। यही नहीं जन औषधि केंद्रों पर व्यावसायिक धोखाधड़ी भी बेधड़क जारी है। 

योजना की पाबंदी भी घटा रही मोह 

जन औषधि केंद्र पर  सस्ती और जरूरी दवाएं न रखने के सवाल पर संचालकों के अपने जवाब हैं। दुकानदारों का कहना है जनऔषधि केंद्र पर 2 हजार तरह की दवाएं रखने का मैनुअल है। कस्बे और शहरों में इतनी दवाओं की बिक्री नहीं होती। ज्यादातर दवाएं खराब हो जाती है जिन्हें जेनेरिक कंपनियां वापस नहीं लेती। जबकि पूरी दवाओं की सेल पर उन्हें केवल 2 फीसदी कमीशन ही मिलता है। यानी कम बचत में इतना बढ़ा स्टॉक रख पाना काफी मुश्किल होता है। इस वजह से ज्यादातर केंद्रों पर चलन वाली दवाएं ही उपलब्ध होती हैं। 

विजन से भटकी अच्छी योजना 

गरीब, कमजोर सहित आमजन पर जरूरी दवाओं की खरीदी पर भार न पड़े इसे ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर भारतीय जनऔषधि परियोजना यानी PMBJP की शुरूआत की गई थी। नवम्बर 2008 में केंद्र सरकार ने इस योजना को हरी झंडी दी थी जिसके तहत अब देश के हर राज्य में जिला और तहसील स्तर ही नहीं छोटे कस्बों में भी जन औषधी केंद्र खुल गए हैं। मेडिकल स्टोर की तर्ज पर चलने वाले इन केंद्रों पर जेनेरिक दवाएं उपलब्ध होती  हैं जो 80 फीसदी तक सस्ती कीमत पर उपलब्ध होती हैं। यानी दवाएं खरीदने पर हजारों रुपए की बजत हो जाती है। दो महीने पहले तक देशभर में 13822 केंद्र संचालित थे जिन पर PMBJP के तहत सस्ती जेनेरिक दवाएं मुहैया कराई जाती है। लेकिन इन केंद्रों पर भी मुनाफे के लालच ने व्यवस्था बिगाड़ दी है। यहां भी मरीज या जरूरतमंदों से दवाओं के बदले में ज्यादा कीमत वसूली होने लगी है। 

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