केन्या से भारत लाए जाएंगे चीते, कूनो के बाद गांधीसागर का नंबर... गुजरात में भी तैयार हो रहा सेंटर

भारत में चीता प्रोजेक्ट के दो साल पूरे हो गए हैं। सर्दियों में केन्या से चीतों की तीसरी खेप लाकर उन्हें मध्यप्रदेश और गुजरात में बसाया जाएगा।

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Pratibha ranaa
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दो साल पहले 17 सितंबर 2022 यानी आज ही के दिन चीतों ने भारत की धरा पर कदम रखा था। चीता प्रोजेक्ट को अब दो साल पूरे हो गए हैं। दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के बाद अब केन्या से चीतों की तीसरी खेप भारत लाई जाएगी। माना जा रहा है कि सर्दियों के मौसम में यह ट्रांसलोकेशन किया जाएगा। चीतों को मध्यप्रदेश के गांधीसागर और गुजरात में बसाने की तैयारी है।

अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट एलायंस के महानिदेशक एसपी यादव का कहना है कि गुजरात के बन्नी घास के मैदानों में बनाए जा रहे नए प्रजनन केंद्र के लिए चीते केन्या से लाए जाएंगे। प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है। सर्दियों के मौसम में चीतों को लाने का समय उपयुक्त होगा। 
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी यानी एनटीसीए के एडीजी जीएस भारद्वाज ने बताया, चीतों की तीसरी खेप लाने की तैयारी है। इन्हें भारत लाने के लिए एक्सपर्ट का दल जल्द केन्या या दक्षिण अफ्रीका जा सकता है। अभी केन्या और दक्षिण अफ्रीका दोनों ही देशों से बातचीत चल रही है। उन्होंने बताया कि तीसरी खेप में आने वाले चीतों को गांधीसागर सेंचुरी में बसाया जाएगा। 

आपको बता दें कि भारत में अब तक मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में 20 चीते लाए जा चुके हैं। इनमें से 8 चीते 17 सितंबर 2022 को नामीबिया से और फरवरी 2023 में 12 चीते दक्षिण अफ्रीका से लाए गए थे। 

हर साल 12-14 चीते लाने की योजना

भारत में चीतों के पुनर्वास के लिए तैयार किए गए 'एक्शन प्लान' के अनुसार, अगले पांच वर्षों तक हर साल दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और अन्य अफ्रीकी देशों से लगभग 12-14 चीते लाए जाने की तैयारी है। एसपी यादव के अनुसार, केन्या से चीते लाने के लिए दोनों देशों के बीच मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) प्रक्रिया चल रही है। भारत की ओर से एमओयू को अंतिम रूप दे दिया गया है। अब सिर्फ केन्या सरकार की मंजूरी का इंतजार है। इसके बाद दोनों देशों के बीच समझौता हो जाएगा। 

दक्षिण अफ्रीका से भी चीते लाने पर बातचीत

यादव ने आगे बताया कि दक्षिण अफ्रीका ने पहले ही 12 से 16 अतिरिक्त चीतों की पहचान कर ली है, जिन्हें या तो दूसरे देशों को दिया जाएगा या जनसंख्या नियंत्रण के लिए उनका अनिवार्य रूप से यूथेनेशिया किया जाएगा। वहां के अभयारण्यों में चीतों की संख्या निर्धारित कैपेसिटी से अधिक होने पर इन्हें या तो किसी अन्य देश को भेजा जाता है या फिर उन्हें खत्म करना पड़ता है।

गुजरात में तैयार हो रहा प्रजनन केंद्र

मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य है, जहां बिग कैट के तीन वन्यप्राणी चीता, बाघ और तेंदुए पाए जाते हैं। बाघों और तेंदुओं के मामले में तो मध्यप्रदेश पूरे देश में अव्वल है। इधर, अब गुजरात के बन्नी घास के मैदानों में चीता संरक्षण प्रजनन केंद्र तैयार किया जा रहा है। यह 500 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जिसमें 16 चीतों को रखा जा सकेगा। इस सेंटर के लिए भी चीते केन्या से लाए जाएंगे। 

चीता प्रोजेक्ट दो साल: चुनौतियों के बीच उम्मीद की किरण

मध्यप्रदेश में चीता प्रोजेक्ट के दो वर्षों में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। 17 सितंबर 2024 को इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ने अपने दो सफल वर्ष पूरे किए हैं। हालांकि, चीतों की मौत ने चिंता बढ़ाई है, पर 12 शावकों के जन्म ने नई उम्मीदें जगाई हैं। ये शावक श्योपुर जिले के कूनो नेशनल पार्क के जंगलों में अपनी मांओं से शिकार करने के गुर सीख रहे हैं। कूनो प्रबंधन ने शावकों का एक वीडियो भी जारी किया है, जिसमें वे अपनी मां के साथ खेलते और उछलते-कूदते दिखाई दे रहे हैं। 
हालांकि अभी चीतों को पूरी तरह खुले जंगल में छोड़ने को लेकर अभी भी कुछ संशय बना हुआ है, क्योंकि हाल ही में एक चीते की पानी में डूबने से मौत हो गई थी। इसके मद्देनज़र कूनो प्रबंधन ने फिलहाल सभी चीतों को बाड़ों में ही रखने का फैसला किया है।

पर्यावरण संतुलन की दिशा में बड़ा कदम

कूनो नेशनल पार्क प्रबंधन का कहना है कि यह परियोजना पर्यावरण संतुलन बहाल करने की दिशा में पहला कदम है। 70 साल बाद चीतों की वापसी, न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक ऐतिहासिक प्रयास है। यह परियोजना उन वन्यजीवों और पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने का प्रतीक है, जिन्हें हम वर्षों पहले खो चुके थे।

अब क्या हुआ... जानिए

  • कूनो नेशनल पार्क में 8 चीते नामीबिया से लाए गए, जिनमें 4 की मौत हुई, जबकि दक्षिण अफ्रीका के 12 में से 4 की मौत हो चुकी है।
  • कूनो में 17 शावकों का जन्म हुआ, जिसमें 12 जीवित हैं। कई चीतों को खुले जंगल में छोड़ा, पर पर्यटकों को एक बार नर चीता पवन ही दिख पाया।
  • कूनो में चीतों को खुले जंगल में छोड़ने पर उनके पार्क की सीमा से बाहर निकलने की चुनौती बरकरार है।

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