Bhopal : मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव छात्र जीवन से ही समाजसेवा करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने डॉक्टरी छोड़ दी थी। दरअसल, मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए उनका सिलेक्शन हो गया था, लेकिन उन्होंने बीएससी में एडमिशन लिया। फिर यूनिवर्सिटी प्रेसिडेंट रहते हुए राजनीति में सक्रिय हो गए। यह खुलासा सीएम डॉ.मोहन यादव ने कोटा में बच्चों के बीच किया। दरअसल, सीएम 13 नवम्बर, बुधवार को कोटा पहुंचे थे। यहां एक कोचिंग इंस्टीट्यूट के कार्यक्रम में वे बच्चों से रुबरू हुए।
सीएम ने मंच से बताया कि मैंने अपने शैक्षणिक काल से अपना लक्ष्य समाज सेवा के रूप में निर्धारित किया था। वर्ष 1982 में मेरा चयन मेडिकल कॉलेज के लिए हो गया था, लेकिन समाज सेवा के अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मैंने मेडिकल में प्रवेश न लेते हुए बीएससी की डिग्री ली। मैं यूनिवर्सिटी प्रेसिडेंट रहते हुए राजनीति में सक्रिय रह सका। उन्होंने कहा कि जीवन में सफलता के तीन मूल मंत्र हैं, जिन्हें विद्यार्थियों को आत्मसात करना चाहिए। पर्याप्त नींद लें, नियमित रूप से व्यायाम करें और प्राणायाम को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं।
कृष्ण-सुदामा जैसी हो दोस्ती
सीएम ने कहा, बच्चों को अपना जुनून हमेशा कायम रखना चाहिए। इच्छाशक्ति जितनी दृढ़ होगी, लक्ष्य उतना ही आसान होगा। जीवन में किसी भी पद पर पहुंचें, मित्रता का प्रेमभाव हमेशा बनाए रखें। इसका सबसे अच्छा उदाहरण श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती का है। उनकी दोस्ती 11 वर्ष की उम्र में हुई थी और जब भगवान श्रीकृष्ण द्वारका के राजा बने, तब भी उनकी दोस्ती ने दुनिया के सामने उदाहरण पेश किया।
मोदी के उदाहरण से समझाया
सीएम ने कहा, लक्ष्य प्राप्ति का इससे अच्छा उदाहरण दूसरा नहीं हो सकता कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात में पहली बार विधायक बनने के साथ मुख्यमंत्री बने। फिर लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहे। मुख्यमंत्री के बाद वे पहली बार सांसद बने और पहली बार में ही देश के प्रधानमंत्री बने। इसके बाद लगातार सांसद बने और प्रधानमंत्री भी। उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में हैट्रिक भी बनाई। आर्थिक दृष्टि से गुजरात देश के अन्य राज्यों की तुलना में अग्रणी है।
हारें नहीं, लगातार प्रयास करें बच्चे
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा, विद्यार्थी निराशा को अपने आप पर हावी न होने दें। जब निराश हो जाएं तो नेताओं की तरफ देखें, वे बार-बार चुनाव लड़ते हैं, अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रयासरत रहते हैं। कई बार विद्यार्थी लक्ष्य प्राप्ति की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो उन्हें निराश नहीं होना चाहिए, जबकि दोगनी ऊर्जा के साथ प्रयास करना चाहिए।
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