नील तिवारी@जबलपुर.
शिक्षा के जरिए हम व्यक्तित्व, मानसिक कुशलता, नैतिक और शारीरिक शक्ति का विकास सीखते हैं। बिना अच्छी शिक्षा के एक व्यक्ति अपने जीवन के शैक्षिक लाभों से मानो वंचित रहता है। आज निजी और पेशेवर जीवन में शिक्षा सफलता की इकलौती कुंजी है, पर जब यह शिक्षा कारोबार बन जाए तो क्या ही कहा जाए।
शिक्षा के मंदिर यानी स्कूल आज उगाही के अड्डे बन गए हैं। जबलपुर के स्कूलों ने तो इस पेशे को बदनाम कर दिया है। ये वही स्कूल हैं, जिनसे पढ़कर आज कोई IAS है तो कोई IPS... कई कारोबारी, वकील और नेता भी यहां पढ़कर आज अच्छे मुकाम पर हैं, पर स्कूल संचालकों के लालच ने इनकी परम्परा और साख पर बट्टा लगा दिया है। खास बात यह है कि अब इन स्कूलों में पढ़ाई भी काबिले गौर नहीं होती। एक्टिविटी के नाम पर पैसा जरूर जमकर वसूला जाता है।
आइए इस रिपोर्ट में हम जबलपुर के उन नामचीन स्कूलों के बारे में बताते हैं, जिनका लंबा और शानदार इतिहास रहा है...पर आज ये बच्चों के अभिभावकों से बेजा फीस वसूली के लिए बदनाम हो रहे हैं।
पढ़िए ये खास रिपोर्ट...
क्राइस्ट चर्च स्कूल: 1870 में हुई थी स्थापना
क्राइस्ट चर्च स्कूल ( Christ Church School ) की स्थापना सन 1870 में हुई थी। तब यह स्कूल रेलवे के अधिकारियों और अंग्रेज अफसरों के बच्चों को पढ़ाने के लिए खोला गया था। अंग्रेजों के जमाने का एक मिशनरी स्कूल होने के नाते इसे जबलपुर में आज के कलेक्टर परिसर से भी बड़ी जगह मिली। धीरे-धीरे स्कूल की कई शाखाएं खुल गईं। अंग्रेजी मीडियम के इस स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाना लोगों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया। जिसका इस स्कूल ने भी भरपूर फायदा उठाया। कोई खास बड़ी उपलब्धि ना होने के बाद भी यह स्कूल लगातार अपनी फीस बढ़ता रहा। आज केजी 1 में इस स्कूल में दाखिला लेने के लिए कम से कम 50 हजार रुपए एडमिशन फीस और 80 से 90 हजार रुपए सालाना खर्च अभिभावकों को करना पड़ते हैं। यहां यह भी खास है कि करोड़ों रुपए का घोटाला करने वाला पूर्व विशप पीसी सिंह इसी स्कूल का बिशप और अध्यक्ष था। इसके बाद बनाए गए नए बिशप अजय उमेश जेम्स को भी फीस घोटाले में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
स्टेम फील्ड इंटरनेशनल: नर्सरी में 70 हजार खर्च
जबलपुर के विजयनगर जैसे पॉश इलाके में तीन एकड़ में फैला स्टेम फील्ड स्कूल किसी फाइव स्टार होटल से कम नहीं है।। स्कूल की मुख्य विशेषता यह है कि यहां घुड़सवारी, स्वीमिंग जैसी 20 एक्टिविटी कराई जाती हैं। फंक्शन पर राजनेताओं सहित बड़े पुलिस अधिकारी भी शामिल होते हैं। हालांकि 2010 में शुरू हुए इस स्कूल ने आज तक मध्य प्रदेश की मेरिट लिस्ट में अपने नाम की छाप नहीं छोड़ी। इसके एसी कमरों में बैठकर अपने बच्चों को पढ़ाई करवाने के लिए अभिभावक को नर्सरी के लिए 25 से 30 हजार एडमिशन फीस और लगभग 70 हजार रुपए सालाना खर्च करने पड़ते हैं। उनकी एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी और एनुअल फंक्शन का खर्च भी अभिभावकों की जेब पर पड़ता है। इस स्कूल की भी जबलपुर में दो ब्रांच चल रही हैं, जहां पढ़ाई तो भगवान भरोसे है, पर दिखावे के लिए अच्छी खासी रकम अभिभावकों से ली जा रही है।
ज्ञान गंगा आर्केड: बेंगलुरु से आती हैं किताबें
जबलपुर के भेड़ाघाट बायपास पर स्थित इस महल नुमा स्कूल की फीस की जानकारी शासन तो छोड़िए उनकी खुद की वेबसाइट पर भी उपलब्ध नहीं है। इस स्कूल में बाकी फाइव स्टार स्कूलों की तरह सुविधाओं के साथ एयर कंडीशनड हॉस्टल भी है। स्कूल को अभिभावकों को लूटने में महारत हासिल है। इसकी किताबें सहित यूनिफॉर्म तक बेंगलुरु से आती हैं, जिसके लिए अच्छी खासी रकम अभिभावकों को चुकानी होती है।
अभिभावकों का छलका दर्द...
द सूत्र ने जब इन स्कूलों के बारे में पड़ताल की तो ज्यादा अभिभावकों ने अपना नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर जानकारी दी। पैरेंट्स ने बताया कि ड्रेस से लेकर किताबें, फीस सब महंगी हैं। जब पूछा कि जब इतने महंगे स्कूल हैं तो यहीं बच्चे को क्यों पढ़ाना? इस सवाल पर ज्यादातर अभिभावकों का कहना था कि कौन नहीं चाहता कि उनकी बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़े, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि स्कूल वाले भी लूट मचा दें। हमें पहले इनकी कारगुजारी पता होती तो बच्चे का एडमिशन ही नहीं कराते।
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