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हरीश दिवेकर, भोपाल. मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव ( CM Mohan Yadav ) को अब फेस करनी है वो चुनौतियां जो शिवराज सिंह चौहान ने साल 2005 में फेस की थीं। दिसंबर में विधानसभा चुनाव में जीत मिलते ही मोहन यादव की ताजपोशी हुई। उन्होंने धड़ाधड़ कुछ सख्त फैसले लिए और उसके बाद सीधे लोकसभा चुनाव का बोझ उनके सिर पर आ गया है, लेकिन अब ये सारे सियासी काम खत्म हो चुके हैं। अब सीएम डॉ. मोहन यादव को ये साबित करना है कि आलाकमान ने उन्हें जिस लायक समझा, वो वाकई उसके काबिल हैं। ऐसा करने से पहले उन्हें चाहिए एक ऐसी टीम जो उनकी खुद की टीम कहलाए। इस टीम को बनाने के लिए उन्हें क्या-क्या और कहां-कहां बदलाव करने होंगे चलिए, बात करते हैं विस्तार से।
मोहन यादव प्रदेश के मुखिया बने शिवराज सिंह चौहान के बाद। उनके सीएम बनने के करीब बीस साल पहले से प्रदेश में बीजेपी की सरकार है। इस लिहाज से सुनने वालों को लग सकता है कि डॉ. मोहन यादव के सामने चुनौती ही क्या है। उन्हें एमपी जैसा प्रदेश मिला है, जो खासा विकसित हो चुका है। करीब बीस साल उन्हीं की पार्टी की सरकार रही है। तो, उनके लिए आगे काम करना मुश्किल नहीं होगा। और, अगर बीजेपी केंद्र में जीत जाती है तो डबल इंजन सरकार की तर्ज पर प्रदेश को फायदा मिल सकेगा।
ऐसा ताज मिला है, जिसमें बहुत से काटें हैं
क्या आपको लगता है कि मध्यप्रदेश की सत्ता को संभालना मोहन यादव के लिए किसी केक वॉक के समान है। जो ऐसा सोचते हैं वो गलत सोचते हैं। शायद, खुद मोहन यादव इस भुलावे में नहीं हैं कि उन्हें सत्ता का ताज किसी चांदी की थाली में रख कर दिया गया है। बल्कि उन्हें ऐसा ताज मिला है, जिसमें बहुत से काटें हैं और मोहन यादव की मुश्किल ये है कि वो उन कांटों का दर्द भी बयां नहीं कर सकते। अब एक के बाद एक समझिए मोहन यादव के सामने क्या चुनौतियां हैं। उसके बाद ये जानने की कोशिश करते हैं कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए मोहन यादव को क्या करना होगा।
सीएम मोहन यादव के सामने ये हैं चुनौतियां
पहली चुनौती
मोहन यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती है वो प्रदेश जहां पिछले बीस साल से उनकी अपनी ही पार्टी काबिज है। यानी कि यही मध्य प्रदेश जहां उन्हीं की सरकार है। वैसे तो इस फेक्ट को उनके फेवर में होना चाहिए था, लेकिन मुश्किल ये है कि पिछली सरकारों में जो भी कम या ज्यादा रहा मोहन यादव खुलकर उसका रोना भी नहीं रो सकते, क्योंकि वो जो भी कहेंगे वो बीजेपी के ही खिलाफ जाएगा.
दूसरी सबसे बड़ी चुनौती हैं शिवराज सिंह चौहान। बात पॉपुलेरिटी की हो या योजना बनाने की या सादी सिंपल शैली की। लोकप्रियता के मामले में अपनी एक अलग इमेज बनाने में और उस इमेज को ब्रांड में तब्दील करने में शिवराज सिंह चौहान ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वो हर तबके के मतदाता और शहर से लेकर गांव तक के मतदाताओं के फेवरेट रहे हैं। लाडली लक्ष्मी से लेकर लाडली बहना योजना तक उनकी योजनाएं गेमचेंजर तो रही ही हैं।
इसके अलावा फ्लाई ओवर और मेट्रो भी उनके नाम का गुणगान ही करती है। कुल मिलाकर शिवराज सिंह चौहान अपने 18 साल के कार्यकाल में ऐसी लाइन खींच कर गए हैं, जो लंबी भी है और मजबूत भी। हालांकि, मोहन यादव को अभी वक्त ज्यादा नहीं हुई है। पांच साल की पारी तो वो संभवतः खेल ही लें। शिवराज जितनी लंबी पारी खेल सकेंगे या नहीं ये कहना मुश्किल है, लेकिन वक्त जितना भी है, मोहन यादव को उतने ही वक्त में अपनी एक लंबी और मजबूत लकीर खींचना है।
तीसरी चुनौती है मुख्यमंत्री की कुर्सी के साथ विरासत में मिला कर्जदार प्रदेश। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रदेश सरकार के कर्ज का बोझ उसके सालाना खर्च से भी ज्यादा यानी करीब 3.31 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया है। इसमें मूलधन के अलावा करीब 25 हजार करोड़ रुपए सालाना ब्याज देना पड़ रहा है। इस वित्तीय वर्ष में सरकार का राजस्व आय दो लाख तीन हजार करोड़ रुपए के आसपास है, जबकि व्यय दो लाख दो हजार करोड़ रुपए। ऐसे में नए सीएम के सामने घोषणाओं को पूरा करने के साथ ही कर्ज को चुकाना भी एक बड़ी चुनौती होगी।
सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी ने ढेर सारी योजनाओं का ऐलान किया था। इन योजनाओं को पूरा करना भी एक बड़ी चुनौती है। लाडली बहनों के लिए चल रही योजनाओं को पूरा करने के लिए ही हर साल भारी भरकम राशि चाहिए। हर महीने 1250 रुपए देने पर ही सरकार पर 19 हजार करोड़ रुपए का भार आएगा। किसान सम्मान निधि की राशि में दो हजार रुपए बढ़ा कर देने पड़े तो करीब पांच हजार करोड़ का भार आएगा। कर्ज में डूबे प्रदेश में अपनी ही सरकार की योजनाओं को पूरा करना सीएम के लिए मुश्किल हो सकता है।
चाहें तो भी शिकायत नहीं कर सकते
सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि मोहन यादव चाहें तो भी बार बार इस बात की शिकायत नहीं कर सकते। उसकी वजह ये कि केंद्र और प्रदेश दोनों में करीब दस साल डबल इंजन की सरकार रही है। और, उससे पहले से भी बीजेपी की सरकार ही प्रदेश पर काबिज है। अगर वो मुंह खोलकर शिकायत करते भी हैं तो उनकी सारी शिकायतें बूमरेंगी की तरह पलट कर उन पर ही वार कर सकती हैं।
एक मजबूत टीम तैयार करनी होगी
इन सब चुनौतियों से निपटने के लिए सीएम की पहली जरूरत है कि वो अपनी एक मजबूत टीम तैयार करें। ये टीम तीनों ही स्तरों पर तैयार होगी, जिसमें सत्ता और संगठन के साथ प्रशासनिक स्तर भी शामिल होगा। अब तक आचार संहिता ने उनके हाथ बांधे हुए थे, लेकिन अब खबर है कि प्रदेश में जल्द ही प्रशासनिक सर्जरी होगी। सीएम की पसंद के सीएस, डीजीपी तैनात किए जाएंगे। सिर्फ इतना ही नहीं मोहन यादव कई विभागों के पीएस भी बदल सकते हैं और कलेक्टर भी बदले जाएंगे। ये काम मंत्रालय में तेजी से जारी है, जहां नए अफसरों की लिस्ट तैयार हो रही है।
पुराने नेता बढ़ा सकते हैं मुश्किलें
लेकिन चुनौती यहीं खत्म नहीं हो जाती। फिलहाल मोहन यादव को उन नेताओं से भी निपटना है जो भले ही किसी ओहदे पर न हों, लेकिन उनका कद सियासी मैदान में सीएम से ज्यादा है। इन नेताओं में सबसे पहले शिवराज सिंह चौहान का नाम ही शामिल है, लेकिन उनका दिल्ली जाना तकरीबन तय है। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी दिल्ली की ही राजनीति पसंद करेंगे।
नरेंद्र सिंह तोमर को स्पीकर की जिम्मेदारी दी जा चुकी है। कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल की जिम्मेदारियां भी तय हैं। लेकिन नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव जैसे वरिष्ठ नेताओं का क्या होगा। प्रत्यक्ष रूप से न सही परोक्ष रूप से ये नेता अपनी पुरानी पैठ और पहुंच का फायदा उठा सकते हैं और मोहन यादव की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं।
एक चुनौती पर मोहन यादव कितने खरे उतरे हैं, उसका फैसला तो अभी कुछ ही दिनों में हो जाएगा। ये दिन होगा चार जून यानी कि नतीजों का दिन। जिस दिन चुनावी नतीजें आएंगे, बीजेपी को 29 सीटें मिले या न मिलें, लेकिन 28 सीटें बरकरार रहें। ऐसा नहीं होता है तो यकीनन इसका असर मोहन यादव की परफोर्मेंस रिपोर्ट पर पड़ेगा ही। हालांकि अभी उनको ज्यादा समय नहीं हुआ है, लेकिन इस दलील की सुनवाई कितनी होगी, कहा नहीं जा सकता।
शिवराज सिंह चौहान को भी मिले थे ऐसे ही हालात
जैसा कि लेख की शुरूआत में कहा था कि मोहन यादव को उन चुनौतियों का सामना करना है, जो शिवराज सिंह चौहान ने साल 2005 में की थी। जब शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की कुर्सी संभाली थी। उस वक्त छोटा ही सही, लेकिन प्रदेश दो भाजपाई सीएम का कार्यकाल देख चुका था।
एक उमा भारती और दूसरे थे बाबू लाल गौर। इसमें से खासतौर से उमा भारती बेहद प्रखर, मुखर और फायर ब्रांड नेत्री थीं। शिवराज के सामने चुनौती थी कि इनसे अलग इमेज बनाएं और सारे नेताओं को साध सकें। उस दौर में शिवराज ने भी टीम शिवराज खड़ी की और फिर लगातार सीएम बनते रहे। अब मोहन यादव के सामने भी चुनौती है कि वो पुरानी टीम को खत्म कर एक टीम मोहन यादव खड़ी कर सके और अपनी एक अलग पहचान बना सकें। Harish Diwekar Journalist Bhopal NEWS STRIKE