MP के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने हवा में उड़ाए पूर्व सीएम शिवराज के आदेश

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव उन वादों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं जो पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव से पहले जनता से किए थे। अतिथि विद्वानों को 50 हजार रुपए सैलरी नहीं मिली। फॉलेन आउट का सिलसिला भी नहीं रुक रहा।

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Rahul Garhwal
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अरुण तिवारी, BHOPAL. शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री रहते जो जतन किए थे, उन सब पर अब पानी फिरने लगा है। हैरानी की बात ये भी है कि जो वादे उच्च शिक्षा मंत्री रहते मोहन यादव ने किए थे, उन पर भी कोई बात नहीं हो रही। हम बात कर रहे हैं उन अतिथि विद्वानों की, जिनकी पंचायत चुनाव के ऐन पहले बुलाई गई थी और तत्कालीन सीएम शिवराज ने मोहन यादव की मांग पर उनको मनचाही मुराद दे दी थी। शिवराज ने 50 हजार की सैलरी और नौकरी से न हटाने का वादा किया। कैबिनेट ने भी इसकी मंजूरी दे दी, लेकिन आज भी न पूरी सैलरी मिल रही है और न ही उनको फॉलेन आउट करने में कोई गुरेज किया जा रहा है।

तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने किया था निवेदन

तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान से अतिथि विद्वानों की तरफ से निवेदन किया था। भोपाल में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने से ऐन पहले अतिथि विद्वानों की पंचायत बुलाई गई। अतिथि विद्वानों की तरफ से मोहन यादव ने उनकी मांगें शिवराज सिंह चौहान के सामने रखीं और खूब तालियां भी बजवाईं। अब बारी शिवराज की थी। शिवराज ने भी ज्यादा देर न करते हुए सारी मांगें पूरी करने का ऐलान कर दिया। शिवराज ने जो ऐलान किए उनमें मुख्य घोषणाएं ये थीं। 

  1. अतिथि विद्वानों को दैनिक की जगह 50 हजार मासिक वेतन दिया जाएगा।
  2. शासकीय सेवकों के समान अवकाश सुविधाएं दी जाएंगी।
  3. अतिथि विद्वानों को बाहर यानी फॉलेन आउट नहीं किया जाएगा।
  4. अतिथि विद्वानों के लिए पीएससी में 25 फीसदी पद आरक्षित किए जाएंगे और 10 फीसदी अतिरिक्त नंबर दिए जाएंगे।
  5. पीएससी में अतिथि विद्वानों को आयु में छूट दी जाएगी।
  6. शिवराज सिंह चौहान के इन ऐलानों पर अतिथि विद्वान गदगद हो गए और खड़े होकर तालियां बजाईं।

कैबिनेट में भी मिली मंजूरी

तत्कालीन सीएम शिवराज के ऐलानों को अमल में लाने की बारी थी। आचार संहिता लगने वाली थी, इसलिए तत्काल ये घोषणाएं कैबिनेट की बैठक में भी पहुंच गईं। कैबिनेट में इनको मंजूरी दे दी गई और सरकार ने अतिरिक्त खर्च का अंदाजा भी लगा लिया।

ठंडे बस्ते में चले गए ऐलान

चुनाव के बाद की स्थिति ये है कि ऐलान अब ठंडे बस्ते में चले गए हैं। वो भी तब जबकि उस समय के उच्च शिक्षा मंत्री आज के मुख्यमंत्री हैं। पंचायत की घोषणाओं के बाद उच्च शिक्षा विभाग के जारी आदेश ने अतिथि विद्वानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। मासिक वेतन की सीएम की घोषणा की जगह मात्र प्रतिदिन देय मानदेय 1500 से बढ़ाकर 2 हजार कर दिया गया। शासकीय सेवकों के समान अवकाश सुविधा की जगह मात्र 13 सीएल और 3 ओएल के आदेश दिए गए। अतिथि विद्वानों को बाहर नहीं किया जाएगा, सीएम की ये घोषणा छलावा साबित हुई। स्थानांतरण से फॉलेन आउट करने का सिलसिला लगातार जारी है। पूर्व के फॉलेन आउट को व्यवस्था में लेने की अपेक्षा नए उम्मीदवारों को व्यवस्था में लिया जाने लगा। कैटेगरी व्यवस्था समाप्त कर एमफिल पीजी अतिथि विद्वानों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। कैटेगरी व्यवस्था समाप्त कर कैटेगरी 3 और 4 के एमफिल, पीजी, अतिथि विद्वानों को चॉइस फिलिंग से रोक दिया गया। पीएससी में 25 फीसदी आरक्षण और 10 फीसदी अंकों की घोषणा भी पूरी नहीं हुई।

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कहां जाएं अतिथि विद्वान ?

अब इस उम्र में कहा जाएं अतिथि विद्वान। सबसे बड़ा सवाल उनके सामने यही है। 27 सालों तक सरकारें नियमित पीएससी कराने में असफल रही हैं। सरकार और विभाग की इन गलतियों का खामियाजा इन उच्च शिक्षित अतिथि विद्वानों को उठाना पड़ रहा है। आज भी लाखों युवाओं का भविष्य बनाने वाले‌ इन अतिथि विद्वानों का भविष्य स्वयं अधर में है।

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