मोहन करेंगे सिंधिया समर्थक नेताओं की छंटनी, यहां होंगी नई नियुक्ती

प्रदेश की मोहन सरकार अब नए सिरे से निगम-मंडलों में नियुक्तियां करने की तैयारी कर रही है। पद से हटने का संकट उन नेताओं पर ज्यादा है जो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे।

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Vikram Jain
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सीएम मोहन और सिंधिया

सीएम मोहन यादव निगम और मंडलों से सिंधिया समर्थक नेताओं की छंटनी करेंगे।

अरुण तिवारी, BHOPAL. प्रदेश की मोहन सरकार अब नए सिरे से निगम-मंडलों में नियुक्तियां करने की तैयारी कर रही है। पद से हटने का संकट उन नेताओं पर ज्यादा है जो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे। इनमें अधिकांश नेता ऐसे हैं जिनको बीजेपी चुनाव का टिकट दे चुकी है लेकिन उनको हार नसीब हुई है। वहीं चुनाव से पहले शिवराज सरकार ने जो नियुक्तियां की थीं उनको भी हटाया जा रहा है। मोहन सरकार ने इसकी शुरुवात भी कर दी है। पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन की जगह रामकृष्ण कुसमरिया को बनाया गया है। इनके अलावा वन विकास निगम से माधव सिंह डाबर को हटा दिया गया है। निगम-मंडल,आयोग में सीएम ऐसे पार्टी नेताओं की ताजपोशी करेंगे जो विधानसभा चुनाव हार चुके हैं।

दलबदलुओं पर सरकार की नजर

बीजेपी इस बार भारी बहुमत से चुनाव जीती है। चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का था इसलिए सरकार और पार्टी सारे दबावों से मुक्त है। पिछली सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन से बनी थी इसलिए उनका प्रभाव और दबाव सरकार पर साफ नजर आता था। मंत्रियों से लेकर निगम-मंडलों तक में उनके समर्थक नेताओं की ताजपोशी की गई थी। इससे पार्टी नेताओं में बड़ी नाराजगी भी सामने आई थी। अब सरकार निगम-मंडलों में छंटनी करने जा रही है। सरकार की नजर उन नेताओं पर ज्यादा है जो दलबदल कर बीजेपी में शामिल हुए थे। चूंकि उस समय के सिटिंग एमएलए जब बीजेपी में शामिल हुए तो उनको पद भी दिया गया और टिकट भी। अब नियुक्तियां केंद्रीय नेतृत्व की मुहर के बाद होंगी इसलिए सरकार अब दवाब मुक्त होकर फैसले करेगी।

इन नेताओं की हो सकती है छुट्टी

  1. दमोह के पूर्व विधायक राहुल सिंह लोधी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए लेकिन उपचुनाव हार गए। उनको मध्य प्रदेश वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक्स कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष बनाया गया।
  2. बड़ा मलहरा के विधायक प्रद्युम्न लोधी मध्य प्रदेश स्टेट सिविल सप्लाईज कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष हैं। वे भी कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए थे। उपचुनाव जीते थे लेकिन हाल ही में हुए विधानसभा में उनको हार मिली।
  3. डबरा की पूर्व विधायक इमरती देवी मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम की अध्यक्ष हैं। वे उपचुनाव भी हार चुकी हैं और विधानसभा चुनाव भी।
  4. सुमावली के विधायक एंदल सिंह कंसाना को उपचुनाव में हार के बाद मध्य प्रदेश स्टेट एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष बनाया गया था। अब वे सरकार में मंत्री हैं।
  5. दिमनी के पूर्व विधायक गिर्राज दंडोतिया उपचुनाव हारे और उनको मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम अध्यक्ष बना दिया गया। विधानसभा चुनाव में उनकी सीट से नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव जीते हैं।
  6. गोहद के पूर्व विधायक रणवीर जाटव संत रविदास मध्यप्रदेश हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम के अध्यक्ष हैं। वे उपचुनाव हारे और इस विधानसभा चुनाव में उनकी टिकट ही काट दी गई।
  7. सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक जसवंत जाटव मध्य प्रदेश राज्य पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम के अध्यक्ष हैं। जसवंत जाटव का विधानसभा टिकट कट गया।
  8. ग्वालियर के पूर्व विधायक मुन्नालाल गोयल राज्य बीज एवं फार्म विकास निगम के अध्यक्ष हैं। उपचुनाव हारे और इस चुनाव में टिकट नहीं मिला।
  9. मुरैना के पूर्व विधायक रघुराज कंसाना मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम के अध्यक्ष हैं। ये भी उपचुनाव में हार चुके हैं और विधानसभा चुनाव भी हारे।
  10. इनके अलावा बसपा से पृथ्वीपुर विधानसभा में 2018 के प्रत्याशी रहे नंदराम कुशवाहा को मध्यप्रदेश राज्य पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम के उपाध्यक्ष हैं।

संघ के कोटे से आए नेताओं पर भी नजर

संघ के कोटे से आए नेताओं में भी बदलाव किया जा सकता है। शिवराज सरकार ने संभागीय संगठन मंत्रियों को निगम-मंडल में बैठाकर उनको कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था। शैलेंद्र बरुआ को मध्य प्रदेश पाठ्यपुस्तक निगम, जितेंद्र लिटोरिया को मध्य प्रदेश खादी ग्राम उद्योग बोर्ड, आशुतोष तिवारी को मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड का अध्यक्ष और जयपाल चावड़ा को इंदौर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाने के साथ ही बीजेपी के पूर्व संगठन मंत्री और पूर्व प्रदेश कार्यालय मंत्री सदन भूषण सिंह को मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम का उपाध्यक्ष बनाया गया था।

चुनावी साल में हुई थी नियुक्तियां

मप्र में करीब सौ निगम-मंडल, आयोग और प्राधिकरण हैं। इनमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष समेत सदस्यों के रुप में राजनीतिक नियुक्तियां की जाती हैं। इन पदों पर ताजपोशी कर उन नेताओं को उपकृत किया जाता है जो चुनावी राजनीति में नहीं होते। इनको कैबिनेट और राज्यमंत्री का दर्जा देकर उनकी सुविधाओं पर बड़ा फंड खर्च किया जाता है। पिछली सरकार ने चुनावी साल में करीब आधे निगम-मंडलों में नियुक्तियां की थीं। अब सरकार नए सिरे से नए नेताओं को यहां पर बैठाएगी। विधानसभा चुनाव में एक दर्जन से ज्यादा मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा था। अब राजनीतिक समीकरण के हिसाब से हारे नेताओं को यहां पर एडजस्ट किया जाएगा।

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