डेडलाइन के बाद भी नहीं हुई CMHO डॉ. संजय मिश्रा की जांच, HC का लोकायुक्त को नोटिस

MP हाईकोर्ट ने 45 दिन में जांच पूरी ने होने पर CMHO संजय मिश्रा मामले में लोकायुक्त को नोटिस जारी किया है। नोटिस में कोर्ट ने जांच न होने को लेकर जवाब मांगा है।

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Neel Tiwari
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जबलपुर के CMHO डॉ. संजय मिश्रा पर भ्रष्टाचार और नियमों के उल्लंघन के गंभीर आरोप हैं। इन आरोपों की जांच को लेकर अब लोकायुक्त की साख पर सवाल उठ रहे हैं। जबलपुर हाईकोर्ट ने जांच के लिए मध्यप्रदेश लोकायुक्त को 45 दिन का समय दिया था। लेकिन समयसीमा खत्म होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

अब इस मामले में अवमानना याचिका (Contempt Petition) दायर की गई है। इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस द्वारकाधीश बंसल की बेंच ने लोकायुक्त को नोटिस जारी किया है। उनसे जवाब मांगा गया है।

HC के आदेश के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई

यह मामला याचिकाकर्ता नरेन्द्र कुमार राकेशिया की शिकायत से शुरू हुआ था। उन्होंने डॉ. संजय मिश्रा पर नियमों के उल्लंघन, अवैध कमाई और गलत प्राइवेट प्रैक्टिस के आरोप लगाए थे।

उन्होंने 16 जुलाई 2024 और 30 अगस्त 2024 को लोकायुक्त कार्यालय में शिकायत दी थी। लेकिन कार्रवाई न होने पर उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका लगाई।

CMHO डॉ. संजय मिश्रा
CMHO डॉ. संजय मिश्रा

45 दिन बीते, लेकिन जांच शुरू नहीं हुई

28 अप्रैल 2025 को जस्टिस विशाल धगत ने लोकायुक्त एमपी को 45 दिन में जांच पूरी करने का आदेश दिया था। साथ ही कहा था कि याचिकाकर्ता को जांच का नतीजा बताया जाए।

समय सीमा पूरी होने के बाद भी न जांच शुरू हुई, न ही कोई जानकारी दी गई। इसके बाद याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका दायर की। इस पर हाईकोर्ट ने अब लोकायुक्त मध्य प्रदेश को नोटिस भेजकर स्टेटस रिपोर्ट मांगी है।

कोर्ट की निगरानी में आई लोकायुक्त की कार्यशैली

अब लोकायुक्त की जवाबदेही कोर्ट के सामने आ चुकी है। अगर जवाब संतोषजनक नहीं हुआ, तो यह मामला लोकायुक्त की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।

कानूनी जानकारों के मुताबिक कोर्ट का आदेश मानना जरूरी होता है। खासकर जब आदेश स्पष्ट और समयबद्ध हो, तब टालमटोल करना सीधा अवमानना माना जाता है।

डॉ. संजय मिश्रा पर ये हैं आरोप

शिकायत के अनुसार, डॉ. मिश्रा ने बिना अनुमति के दो शादियाँ कीं। यह मध्यप्रदेश सिविल सेवा आचरण नियम 22 का उल्लंघन है। पहली पत्नी का नाम सेवा पुस्तिका में और दूसरी पत्नी का नाम पेंशन सॉफ्टवेयर में दर्ज है।

इसके अलावा, नियुक्तियों में गड़बड़ी, प्राइवेट लैब चलाना और दूसरी पत्नी के नाम पर करोड़ों की संपत्ति खरीदने जैसे आरोप भी लगे हैं। उन पर प्रशासनिक पद पर रहते हुए निजी कारोबार करने का आरोप भी है, जो नियम 16 का उल्लंघन है।

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एक और याचिका में याचिकाकर्ता पर लगा जुर्माना

इसी मुद्दे पर एक और याचिका प्रहलाद साहू ने लगाई थी। इसमें कोर्ट ने कहा कि यह बार-बार याचिका दायर करने जैसा है। कोर्ट ने इसे प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल माना और याचिकाकर्ता पर ₹50 हजार का जुर्माना लगाया।

कानूनी जानकार मानते हैं कि उस सुनवाई में भी लोकायुक्त से 45 दिन की जांच रिपोर्ट मांगी जानी चाहिए थी, जो नहीं हुई। यही गलती अब इस अवमानना याचिका में सामने आई है।

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क्या अब तय होगी जवाबदेही?

इस पूरे मामले ने लोकायुक्त की भूमिका को कठघरे में खड़ा कर दिया है। जस्टिस द्वारकाधीश बंसल की अदालत तय करेगी कि आदेश की अनदेखी जानबूझकर हुई या कोई और वजह रही। अगर अवमानना साबित होती है, तो जिम्मेदार अफसरों पर सख्त कार्रवाई हो सकती है।

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