दो साल से महिला आयोग भंग पड़ा है। ढाई- तीन साल से एससी- एसटी और अल्पसंख्यक आयोग में भी अध्यक्ष- सदस्यों की नियुक्ति नहीं हुई है। इस वजह से इन संवैधानिक संस्थाओं या कहें सरकार के सफेद हाथियों का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है।
हर माह संसाधनों पर खर्च बरकरार है। कर्मचारियों को वेतन- भतों का भी बाकायदा भुगतान हो रहा है, लेकिन सरकार को इसकी सुध ही नहीं है कि उसके ये आयोग लंबे समय से बेकार पड़े हैं।
आयोगों से मदद की आस में सैकड़ों परिवार चक्कर काट रहे हैं, लेकिन अध्यक्ष और सदस्य न होने के कारण उनकी सुनवाई तक नहीं हो रही। वहीं आयोगों के पास पिछले तीन साल में लंबित मामलों को ढेर लग गया है। इन चार आयोगों में ही 50 हजार से ज्यादा मामले फाइलों में बंद पड़े हैं।
सरकार के इन आयोगों में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राजनीतिक कारणों से उलझी पड़ी है। मजबूरों को न्याय दिलाने वाली ये संवैधानिक संस्थाओं को अब अपनी सुनवाई का इंतजार है। साल 2019 में कांग्रेस सरकार के तख्ता पलट के बाद से भंग आयोग अभी भी बेजान हैं।
अध्यक्ष और सदस्य न होने से मशीनरी जाम पड़ी है। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ पत्राचार ही हो रहा है। इसका खामियाजा ऐसे परिवार उठा रहे हैं, जिनके मामले आयोगों में सुनवाई के लिए अटके पड़े हैं। वहीं समस्याएं लेकर पहुंचने वाले भी चक्कर काटने मजबूर हैं।
राजनीतिक पेंच में उलझा महिला आयोग
साल 2018 में सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने महिला आयोग में शोभा ओझा को अध्यक्ष बनाकर सदस्यों की नियुक्ति की थी। आयोग कुछ महीने चला और साल 2019 में कांग्रेस सरकार गिरते ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने आयोग भंग कर दिया। सरकार के इस आदेश के बाद आयोग अध्यक्ष और सदस्य कोर्ट चले गए और पेंच उलझ गया। उसके बाद से महिला आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति अटकी पड़ी है। साल 2023 में भाजपा सरकार के नए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी इसकी सुध नहीं ली है।
आयोग में महिलाओं के 10 हजार मामले
ठप पड़े राज्य महिला आयोग में प्रदेश भर से हर माह 300 मामले प्रदेश भर से पहुंचते हैं। यानी सालभर में यह आंकड़ा 4 हजार तक पहुंच जाता है। बीते 3 साल में आयोग में अटकी ऐसी शिकायतों की संख्या 10 हजार से कम नहीं है।
वहीं ऐसी ही सैकड़ों शिकायतों में को लंबा समय बीतने की वजह से शून्य भी किया जा चुका है। चार साल पहले जबलपुर अंचल के स्कूल की प्राचार्य वीणा वाजपेयी और एक शिक्षक का विवाद आयोग के सामने पहुंचा था। तब से बेंच न बैठने से आयोग में सुनवाई ही नहीं हो सकी है।
एससी आयोग को बहाली का इंतजार
अनुसूचित जाति वर्ग की समस्याओं को सुनने वाला एससी आयोग भी भंग है। पिछले साल ही इसके अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा हुआ है, लेकिन बीजेपी सरकार ने आदेश निरस्त कर दिया। इसके बाद से आयोग में सुनवाई ठप पड़ी है। आयोग के पूर्व अध्यक्ष आनंद अहिरवार के अनुसार उनके अलावा दो सदस्यों की नियुक्ति की गई थी।
शिवपुरी की रहने वाली एससी वर्ग की महिला निशा ने पति को धमकाने और वसूली की शिकायत आयोग में की थी। पुलिस-प्रशासन की बेरुखी के बाद महिला मदद की गुहार लेकर आई थी पर आयोग में सुना नहीं गया। ऐसे 7 हजार से ज्यादा केस आयोग के पास हैं।
माइनॉरिटी कमीशन पर शिकायतों का भार
अल्पसंख्यक वर्ग से संबंधित 1500 शिकायतें कमीशन में अटकी हैं। ढाई साल से कमीशन में अध्यक्ष है न सदस्य। इस वजह से सुनवाई नहीं हो रही है। अधिकारी- कर्मचारी भी शिकायतों पर पत्राचार कर पल्ला झाड़ लेते हैं।
आयोग में कांग्रेस सरकार द्वारा अध्यक्ष नियाज मोहम्मद सहित चार सदस्य बनाए थे। तब हर महीने 15 से 20 प्रकरणों की सुनवाई होती थी। अल्पसंख्यक वर्ग की समस्याओं से जुड़े ऐसे 15 सौ से ज्यादा मामले अब कमीशन के पास लंबित हैं। सागर, खंडवा, बुरहानपुर, सिरोंज, सतना, कटनी जिलों से संबंधित मामलों की कमीशन में भरमार है।
हर महीने लाखों खर्च, काम धेले का नहीं
सरकार आयोग के रूप में अपने सफेद हाथियों पर हर महीने खर्च कर रही है। अधिकारी- कर्मचारियों के वेतन- भत्तों पर खर्च हो रहा है। अल्पसंख्यक आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों को छोड़ दें तो नियमित स्टाफ के रूप में सात कर्मचारी कार्यरत हैं। वहीं महिला आयोग में अधिकारी- कर्मचारियों का दर्जन भर अमला है। इसी तरह अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग आयोगों में भी दो से दस तक अधिकारी- कर्मचारी तैनात हैं। दफ्तर भी नियमित खुलता और बंद होता है लेकिन काम धेले भर का नहीं हो रहा, क्योंकि आयोग में काम तभी हो सकता है जब अध्यक्ष और सदस्य हों।
एससी आयोग को भारी भरकम बजट
सरकार भले ही 7 महीने बाद भी अनुसूचित जाति आयोग को अध्यक्ष और सदस्य नहीं दे पाई पर बजट भरपूर दिया है। वित्त वर्ष 2023-24 में आयोग को सरकार की ओर से 1 करोड़ 54 लाख रुपए मिले हैं। वहीं बीते साल आयोग ने 1 करोड़ 49 लाख रुपए का बजट खर्च किया है। बिना अध्यक्ष और सदस्य आयोग ने ये राशि कहां खर्च कर दी इसका हिसाब मांगने वाला भी कोई नहीं है।
इन आयोगों को भी अध्यक्ष- सदस्य की दरकार
- राज्य सामान्य निर्धन वर्ग कल्याण आयोग
- मध्यप्रदेश राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग
- राज्य कृषक आयोग