BHOPAL. मध्य प्रदेश में दो महीने पहले हुए मिड-डे मील घोटाले पर अब सरकार से लेकर शासन तक चुप्पी है। 23 जिलों में मई-जून की ग्रीष्मकालीन छुट्टी और स्कूलों के बंद होने के बावजूद कागजों पर पोषण आहार बंटता रहा। शिक्षक इसकी जानकारी भी पोर्टल पर देते रहे और करोड़ों रुपयों का आहरण भी होता रहा। इसका खुलासा केंद्र सरकार के पोषण शक्ति कार्यक्रम के मॉनिटरिंग सिस्टम पर होने पर कुछ दिन हड़कंप मचा, कुछ जिलों में गिने-चुने शिक्षकों को नोटिस भी जारी हुए और सब कार्रवाई से बच गए। स्कूलों में मिड-डे मील बांटने के नाम पर यह पहला घोटाला नहीं है।
इससे पहले भी साल-दो साल के अंतराल में पोषण आहार वितरण के नाम पर फर्जीवाड़ा होता रहा है और तब भी किसी पर जिम्मेदारी तय नहीं की गई। कमजोर वर्ग के स्कूली बच्चों को पोषण देने की इस योजना का असली फायदा कुछ शिक्षक ही उठा रहे हैं। योजना से बच्चों को भले ही पोषण न मिल रहा हो लेकिन फर्जीवाड़ा करने वाले मासाब जरूर पोषित हो रहे हैं। घोटाले के बाद शासन को शिक्षकों के जवाब तो मिल गए हैं लेकिन जिम्मेदारों पर कार्रवाई का पता ही नहीं है।
कैसे मिड-डे मील घोटाले को अंजाम दिया गया ?
पहले आपको बताते हैं आखिर दो साल पहले कैसे मिड-डे मील घोटाले को अंजाम दिया गया। प्रदेश में मई- जून माह में ग्रीष्मकालीन अवकाश होता है। यानी 1मई से 15 जून के बीच छुट्टी होने से स्कूल बंद रखे जाते हैं। जब स्कूल बंद होते हैं तो बच्चों के पढ़ने आने का कोई सवाल ही नहीं उठता। इसके बाद भी प्रदेश के 23 जिलों में सैंकड़ों स्कूलों में पोषण आहार वितरण का काम जारी रहा। इसे समझने में आपको मुश्किल हो सकती है कि जब बच्चे आए ही नहीं तो मिड-डे मील कैसे बांटा गया।
जी हां, घोटाले की जड़ें भी यहीं से शुरू होती हैं। दरअसल इस जिम्मेदारी को संभालने वाले शिक्षकों को हर दिन पोर्टल पर पोषण आहार वितरण की जानकारी दर्ज करनी होती है। इसमें बच्चों की संख्या का उल्लेख होता है। मिड- डे मील बांटने के नाम पर मुनाफा बटोरने वाले शिक्षक गर्मियों की छुट्टी के दिनों में भी पोर्टल पर बच्चों की संख्या और आहार वितरण की जानकारी अपडेट करते रहे। नतीजा उन्हें इसका आवंटन भी मिलता रहा।
केंद्र के ऑटोमेटेड सिस्टम ने पकड़ा घोटला
अब आपके मन में जिज्ञासा उठ रही होगी कि यह सब चल रहा था तो रोका क्यों नहीं गया। इसका खुलासा कैसे हुआ। पूर्व में पोषण आहार वितरण में हुई धांधलियों को देखते हुए केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण कार्यक्रम के तहत इसकी निगरानी की जाती है। इसके लिए ASM यानी ऑटोमेटेड मॉनिटरिंग सिस्टम बनाया गया है। इस पोर्टल के जरिए मिड डे मील बांटने की सारी गतिविधियां केंद्र तक पहुंचती हैं। जब ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान कई दिनों तक सैंकड़ों स्कूलों में पोषण आहार वितरण जारी रहा तो समीक्षा बैठक में इस पर सवाल उठाए गए।
केंद्र से ही इसकी जानकारी प्रदेश में पीएम पोषण शक्ति कार्यक्रम की देखरेख करने वाले प्रदेश कोआर्डीनेटर को भेजी गई। जब प्रदेश और केंद्र स्तर पर मामला उठा तो हड़कंप मच गया। आनन- फानन में वितरण पर रोक लगाई गई। इसके बाद पोर्टल पर ब्यौरा खंगाला गया तो जिलों और स्कूलों की स्थिति सामने आ गई। स्टेट कोऑर्डीनेटर मनोज पुष्प के आदेश पर 23 जिलों के जिला पंचायत सीईओ को पत्र जारी किए गए थे।
फाइलों में दबकर रह गए नोटिस और जवाब
छुट्टियों में बच्चों की गैरमौजूदगी में करोड़ों रुपए का पोषण आहार बांटने का फर्जीवाड़ा प्रदेश के बड़वानी, सतना, रायसेन, भिंड, गुना, जबलपुर, आगर मालवा, दमोह, झाबुआ, मंडला, मंदसौर, बालाघाट, बैतूल, डिंडोरी, नरसिंहपुर, रतलाम, सागर, सिवनी, शहडोल्, श्योपुर, शिवपुरी और टीकमगढ़ जिलों के स्कूलों में सामने आया। जिला पंचायत सीइओ द्वारा बंद स्कूलों में मिड-डे मील बांटने वाले शिक्षकों को नोटिस जारी किए गए। वहीं जिम्मेदारों द्वारा नोटिस के बदले भेजे गए जवाब भी सतही हैं लेकिन अफसरों ने इन्हें भी फाइलों में दबा दिया है। नोटिस के बाद आए जवाब में किसी शिक्षक ने एएमएस पोर्टल पर गलती से बच्चों की संख्या दर्ज होने की सफाई दी है तो कोई इसे तकनीकी चूक बता रहा है।
बड़वानी जिला पंचायत के तत्कालीन सीइओ द्वारा कराई जांच में 30 स्कूलों में बच्चों की संख्या के सामने शून्य की जगह पांच- पांच दर्ज किए जाने, वहीं कुछ शालाओं में गलती से कुल दर्ज बच्चों की संख्या दर्ज करने की जानकारी शासन को भेजी गई थी। इन शिक्षकों ने पोर्टल पर त्रुटिवश नंबर दर्ज होने का हवाला दिया है। हांलाकि जिले की तीन दर्जन से ज्यादा शालाओं में एक जैसी गलती अफसर हजम नहीं कर पा रहे हैं। इन शिक्षकों से जवाब मांगा गया है। ऐसे ही नोटिस सागर, टीकमगढ़, भिंड, और अन्य जिलों में भी दिए गए हैं लेकिन महीने भर बाद भी किसी शिक्षक पर जिम्मेदारी तय नहीं की जा सकी है। जबकि पहले जवाब के आधार पर एक्शन की बात अधिकारी कह रहे थे।
नए सत्र में फिर दागियों के भरोसे मिड-डे मील
पीएम पोषण शक्ति निर्माण कार्यक्रम के तहत स्कूलों में पोषण आहार बांटने की जिम्मेदारी फिर उन्हीं शिक्षकों के हाथ में दे दी गई है जिन पर दो महीने पहले गड़बड़ी का आरोप लगा था। सैंकड़ों स्कूलों में करोड़ों रुपए का पोषण आहार बांटने के फर्जीवाड़े की जांच पूरी हुई है न किसी पर कार्रवाई की गई। ऐसे में कमजोर वर्ग के परिवार के बच्चों को मिड- डे मील कार्यक्रम से पोषण मिलना मुश्किल नजर आता है। वहीं बच्चों के हिस्से के आहार पर डाका डालने वाले शिक्षक छात्रो को क्या शिक्षा दे पाएंगे यह भी अंदाजा लगा सकते हैं। ग्रीष्मकाल में बंद स्कूलों में पोषण आहार से खुद को पोषित करने वाले सिस्टम पर कितने हावी है ये कार्रवाई पर लगाए गए अड़गे से समझा जा सकता है।thesootr links
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