27 साल पुरानी मांग अब होगी पूरी, 100 करोड़ की लागत से बनेगा दादाजी धाम का नया मंदिर

खंडवा में 27 साल पुरानी मांग पूरी होने जा रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दादाजी धाम मंदिर के नवनिर्माण कार्य का शुभारंभ किया। मकराना मार्बल से बनेगा मंदिर...

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Amresh Kushwaha
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खंडवा में 27 साल पुरानी मांग अब पूरी होने जा रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सोमवार को खंडवा के दादाजी धाम मंदिर में नवनिर्माण कार्य का शुभारंभ किया। यह वही मंदिर है, जिसकी मांग 27 वर्षो से स्थानीय लोग कर रहे थे। दादाजी का मंदिर अब संगमरमर से बनेगा। यह मंदिर धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर का एक नया प्रतीक बनेगा। जानें मंदिर के नवनिर्माण कार्य को शुरू होने में 27 साल का समय क्यों लगा...

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भूमिपूजन से पहले 27 साल का संघर्ष

दादाजी धाम मंदिर का नवनिर्माण उन स्थानीय लोगों की 27 साल पुरानी मांग का परिणाम है, जिन्होंने इसकी शुरुआत से ही इसके निर्माण के लिए संघर्ष किया था।

पहले मंदिर ट्रस्ट ने लाल पत्थर से निर्माण की योजना बनाई थी, लेकिन एक पक्ष ने इस पर कोर्ट में आपत्ति जताई। इसके बाद निर्माण पर रोक लगा दी गई थी। अब यह विवाद सुलझ चुका है।

मंदिर का निर्माण एक समिति के जरिए किया जाएगा। इसमें प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक नेताओं की भागीदारी होगी।

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100 करोड़ की लागत से बनेगा भव्य मंदिर

दादाजी मंदिर का नया स्वरूप मकराना के सफेद संगमरमर (Marble) से बनेगा। यह वहीं संगमरमर है, जिसका उपयोग ताजमहल के निर्माण में किया गया था। 100 करोड़ की लागत से बन रहे इस मंदिर में 108 खंभे (84 ओपन और 24 कवर्ड) होंगे। ये खंभे मंदिर को और भी भव्य और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाएंगे।

स्थानीय संघर्ष का सामाजिक प्रभाव

इस मंदिर के निर्माण से न केवल स्थानीय समुदाय की वर्षों पुरानी मांग पूरी होगी, बल्कि यह पूरे क्षेत्र के सामाजिक और धार्मिक जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा। मंदिर का नवनिर्माण क्षेत्र की धार्मिक आस्था को सशक्त करेगा। इसके साथ ही, लोगों को एकजुट भी करेगा। यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि पर्यटन और सामाजिक गतिविधियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण केंद्र बनेगा।

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धूनी वाले दादाजी के बारे में

दादाजी का इतिहास भी बेहद दिलचस्प और महत्वपूर्ण है। उनका असली नाम स्वामी केशवानंद था, जो 1930 में खंडवा में समाधि लेने आए थे। इनके बाद उनके शिष्य श्री हरिहरानंद महाराज ने 1942 में समाधि ली। तब से यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख धार्मिक स्थल बन गया। दादाजी का समाधि स्थल खंडवा में होने के कारण इसे दादाजी की नगरी भी कहा जाता है।

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