सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर उप- वर्गीकरण को उचित ठहराते हुए ईवी चिन्नय्या बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में 2004 के फैसले को खारिज कर दिया है। सरल शब्दों में SC-ST के भीतर भी क्रीमीलेयर कैटेगरी बनाई जा सकेगी। इधर कोर्ट का फैसला आते ही अब दलित संगठनों की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। SC-ST के सामाजिक ग्रुपों में एक बार फिर बड़े आंदोलन की सुगबुगाहट है। चर्चा है कि जिस तरह से एट्रोसिटी एक्ट में बदलाव के विरोध में 2 अप्रेल 2018 को देशव्यापी आंदोलन किया गया था, वैसा ही आंदोलन 21 अगस्त 2024 को किया जा सकता है। आखिर क्यों नाराज हैं दलित और आदिवासी, समझते हैं…
पहले समझते हैं क्या है कोर्ट का फैसला
गुरुवार यानी 1 अगस्त 2024 को मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की खंडपीठ ने 6-1 के बहुमत से एक फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य अब चुनिंदा जातियों को आरक्षण दे सकेंगे। यानी अब राज्यों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में शामिल जातियों को अलग अलग वर्गों में बांटने का अधिकार होगा। दूसरे शब्दों में OBC की तरह SC-ST वर्ग को भी आर्थिक आधार पर बांटा जा सकेगा। कोर्ट के फैसले के बाद अब राज्य सरकारें अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के अंदर आने वाले किसी एक वर्ग को ज्यादा आरक्षण का लाभ दे सकेंगी।
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कोर्ट के तर्क को एक उदाहरण से समझते हैं। यह सामान्य स्वीकारोक्ति है कि मध्य प्रदेश में SC समुदाय से अहिरवार या जाटव समाज के लोगों को आरक्षण के कारण सरकारी नौकरियों में अच्छा खासा प्रतिनिधित्व मिला है, लेकिन वहीं बंसोर या बलाई जातियां कहीं पीछे हैं। ऐसे में पीछे छूट गई जातियों को अलग से प्रावधान किया जा सकेगा।
अब समझें क्यों हैं नाराज SC-ST समुदाय
इस फैसले को लेकर देश में मिली- जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। जहां एक तबका इसे आरक्षण के लाभ को समाज के निचले तबके तक पहुंचने के रूप में देख रहा है, वहीं SC-ST के बीच काम करने वाले बुद्धिवीजी और संगठन इसे समुदाय को विभाजित करने वाला फैसला बताते हुए संविधान की मूल भावना के खिलाफ बता रहे हैं। जाहिर तौर पर इस फैसले का देश की राजनीति पर बड़ा असर होने जा रहा है।
SC-ST संगठनों का कहना है कि यह फैसला संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। क्योंकि आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं, सामाजिक है। SC-ST समाज के लोग बड़ी नौकरियों पर जाकर भी भेदभाव का शिकार होते हैं। ऐसे में यह तय नहीं किया जा सकता कि किसी को सरकारी नौकरी मिलने से उसके साथ भेदभाव भी खत्म हो जाएगा।
SC-ST मामलों के जानकार डॉ एसके सदावर्ते कहते हैं कि आरक्षण गरीबी हटाओ योजना नहीं है। समाज के समतलीकरण का एक प्रयास मात्र है। कोर्ट का फैसला SC-ST के हक- अधिकारों पर कुठाराघात की तरह साबित होगा।
कोर्ट का फैसला विभाजनकारी
कांस्टीट्यूशनल फोरम के डॉ पीडी महंत और डॉ मेजर मनोज राजे कहते हैं कि कोर्ट का फैसला विभाजनकारी है। इससे SC-ST समुदायों के अंदर अलग- अलग वर्ग खड़े हो जाएंगे। जिस जातिवाद से छुटकारा पाने के लिए अभी देश जूझ रहा है, इस फैसले के बाद समुदायों के अंदर नए तरह का जातिवाद फैल जाएगा। बाबा साहब आंबेडकर ने अपने गुरु ज्योतिबा फुले द्वारा इस्तेमाल किए गए अतिशूद्र शब्द को नकार दिया था। फुले ने जिस अछूत समाज को अतिशूद्र कहा, उसे आंबेडकर ने दलित पहचान के साथ स्थापित किया। यही कारण है कि सोशल मीडिया पर दलितों और आदिवासियों के भीतर इस फैसले के खिलाफ रोष दिखाई पड़ रहा है।
जबलपुर हाईकोर्ट के एडवोकेट और ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष रामेश्वर सिंह ठाकुर इस फैसले को समाज के अंदर टूट डालने वाला बताते हैं। वे कहते हैं कि SC-ST के आरक्षण को OBC की तरह नहीं देखा जा सकता।
राजनीतिक दलों के हाल : कांग्रेस- बीजेपी चुप, लेकिन ये दल मुखर
कांग्रेस, बीजेपी के साथ सपा और बसपा जैसे बहुजन समाज की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों ने फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर खुलकर कोई टिप्पणी नहीं की है। हालांकि अब मायावती, चिराग पासवान, रामदास आठवले अपना विरोध जता चुके हैं। दरअसल मामला संवेदनशील होने का कारण कांग्रेस और BJP फिलहाल इसके असर का अध्ययन कर रही हैं।
तो क्या होगी 21 अगस्त को!
बड़ा सवाल ये है कि क्या दलित- आदिवासियों के बीच सुलग रही नाराजगी किसी अंजाम तक पहुंचेगी? सूत्र बताते हैं कि इन समाजों के वाट्सएप ग्रुपों में 21 अगस्त को देश- व्यापी आंदोलन करने के मैसेज फार्वर्ड होने लगे हैं। जिस तरह एट्रोसिटी एक्ट में बदलाव के विरोध में 2 अप्रेल 2018 को स्व स्फूर्त आंदोलन हुआ था, उसी तरह का आंदोलन करने की रणनीतियां बनाई जाने लगी हैं। इसका अगुआ कौन है, यह कोई भी बताने को तैयार नहीं।