दमोह फर्जी डॉक्टर मामलाः सभी आरोपियों को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत

दमोह के मिशन अस्पताल में फर्जी डॉक्टर के ऑपरेशन से 7 मरीजों की मौत हुई। अस्पताल संचालकों के खिलाफ भी मामला दर्ज है। हाईकोर्ट ने आरोपियों को जमानत देने से इनकार कर दिया।

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Neel Tiwari
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Photograph: (the sootr)

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JABALPUR. दमोह के मिशन अस्पताल में ऑपरेशन के बाद 7 मरीजों की मौत हुई। फर्जी डॉक्टर नरेंद्र यादव उर्फ एन जॉन केम पर आरोप लगे थे। अस्पताल संचालकों के खिलाफ भी मामला दर्ज है। हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को जमानत देने से मना कर दिया। जमानत के लिए याचिका पर सुनवाई जस्टिस विशाल धगत की सिंगल बेंच ने की।

फर्जी दस्तावेजों से हुआ था कैथलैब का रजिस्ट्रेशन 

इस मामले में जिस कैथलैब में मरीजों का एंजियोप्लास्टी का ऑपरेशन हुआ था, उसका रजिस्ट्रेशन फर्जी दस्तावेजों पर किया गया था। डॉ. अखिलेश दुबे को फुल टाइम डॉक्टर बताते हुए कैथ लैब का रजिस्ट्रेशन किया गया था। 

इसके साथ ही आयुष्मान योजना के लिए भी अस्पताल संचालकों के द्वारा रजिस्ट्रेशन किया गया था, जिसमें फर्जी दस्तावेज ही दिखाए गए थे। आसिमा न्यूटन, संजीव लैंबर्ट, फ्रैंक हैरिसन,जीवन मेसी पर इस मामले में दमोह कोतवाली थाने में FIR दर्ज की गई थी। 

इस मामले में सरकारी वकील ने आरोपियों की ओर से ही दायर किए गए हलफनामा के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि आरोपियों ने जानकर झूठे दस्तावेजों से कैथलैब का रजिस्ट्रेशन कराया था, वहीं आयुष्मान योजना का लाभ लेते हुए फर्जीवाड़ा भी किया।

डॉक्टर अखिलेश दुबे की जगह नरेंद्र यादव ने किए ऑपरेशन 

पुलिस की जांच में यह भी सामने आया कि नरेंद्र जॉन केम के नाम पर काम कर रहे फर्जी डॉक्टर नरेंद्र यादव ने इन सभी ऑपरेशनों को अंजाम दिया जिसमें मरीज की मृत्यु हुई थी, जबकि कैथलैब से लेकर आयुष्मान योजना तक डॉक्टर अखिलेश दुबे का नाम अस्पताल संचालकों के द्वारा दिखाया गया था। वही डॉक्टर अखिलेश दुबे ने यह साफ कर दिया कि उन्होंने ऐसे किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं और अस्पताल संचालकों ने फर्जी दस्तावेज जमा किया है।

हाईकोर्ट ने नहीं दी राहत तो याचिका ली वापस

इस मामले में हाईकोर्ट ने इस गंभीर अपराध पर सख्ती दिखाते हुए याचिकाकर्ताओं के किसी भी तथ्य को नहीं माना। आरोपियों की ओर से वकील ने यह भी तथ्य दिया कि आसिमा न्यूटन एक 50 वर्षीय महिला है और इस समिति की केवल सदस्य हैं।

सरकारी वकील ने कोर्ट में यह सिद्ध किया कि यह कोई समिति नहीं है, बल्कि आरोपी अस्पताल का संचालन कर रहे हैं और आरोपी महिला अस्पताल में एडमिनिस्ट्रेटर है। सरकारी पक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि अस्पताल संचालकों के द्वारा जानबूझकर फर्जी डॉक्टर की जानकारी सीएमएचओ से भी छुपाई गई और फर्जीवाड़ा किया गया।

इसके बाद कोर्ट ने इन आरोपियों को जमानत देने से जब इनकार कर दिया तो आरोपियों की अधिवक्ता ने अपनी याचिका को वापस लेने की प्रार्थना की और याचिका विड्रा कर ली गई।

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