24 साल पहले मरे जगदीश सिंह जूदेव, धान के पंजीयन के लिए हो गए जिंदा

रीवा रियासत के महाराज मार्तंड सिंह के भाई दादू जगदीश सिंह जूदेव, जिनका निधन 24 साल पहले हुआ था, सरकारी फाइलों में "जिंदा" हो गए। यह चौंकाने वाला मामला सतना जिले के अमरपाटन से सामने आया है,

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Sandeep Kumar
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मध्य प्रदेश में अजब और गजब मामलों की कहानियां आम हैं, लेकिन इस बार का मामला किसी फिल्म की स्क्रिप्ट जैसा लग रहा है। रीवा रियासत के महाराज मार्तंड सिंह के भाई दादू जगदीश सिंह जूदेव, जिनका निधन 24 साल पहले हुआ था, सरकारी फाइलों में "जिंदा" हो गए। यह चौंकाने वाला मामला सतना जिले के अमरपाटन से सामने आया है, जहां मृत राजा के नाम पर धान पंजीयन कराया गया।

धान पंजीयन में मृत राजा का नाम

सतना जिले के अमरपाटन के ग्राम आनंदगढ़ में 24 साल पहले मृत घोषित किए गए महाराज मार्तंड सिंह के भाई दादू जगदीश प्रसाद सिंह जू देव का नाम धान पंजीयन के लिए इस्तेमाल किया गया। आरोप है कि एक किसान और सहकारी समिति प्रबंधक ने मिलकर उनकी भूमि को अपने पंजीयन में शामिल कर लिया।

राजा की प्रतिमा पर लिखा है निधन का वर्ष

जांच में पता चला कि आनंदगढ़ गांव में दादू जगदीश की एक प्रतिमा स्थापित है, जिस पर साफ तौर पर 2000 में उनकी मृत्यु का उल्लेख है। इसके बावजूद उनका नाम सरकारी दस्तावेजों में "जिंदा" दिखाया गया। यह मामला सरकारी फाइलों में बड़े स्तर पर फर्जीवाड़े को उजागर करता है। इस मामले के प्रकाश में आने के बाद, मैहर की कलेक्टर रानी बाटड़ ने इसे गंभीरता से लिया है। उन्होंने कहा कि एसडीएम को जांच के निर्देश दिए गए हैं। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। स्थानीय सहकारी समिति और कर्मचारियों पर भी इस फर्जीवाड़े में मिलीभगत के आरोप लगे हैं। समिति प्रबंधक की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है, जो प्रशासन की नजर में है।

कौन थे दादू जगदीश सिंह 

बताया जाता है कि दादू जगदीश सिंह गुलाब सिंह के पुत्र है। इनका जन्म सन 1924 में इलाहाबाद में हुआ और इनकी परवरिश रीवा किले में हुई थी। दादू जगदीश महाराज मार्तण्ड सिंह के सौतेले भाई थे। जब दादू जगदीश सिंह नाबालिग थे तभी उनके पिता गुलाब सिंह ने उन्हें आनंदगढ़ का इलाका का लिखा पढ़ी करके दे दिया था। अक्टूबर सन 2000 दादू जगदीश सिंह की मृत्यु हो चुकी है। दादू जगदीश सिंह के पुत्र न होने के वजह से आनंदगढ़ इलाके की देख रेख इनके दामाद और इनकी पुत्री ही करते हैं।

मिलीभगत से हो रहा सारा खेल

वहीं किसान रावेंद्र पांडेय ने बताया कि जमीन का रजिस्ट्रेशन खसरा नंबर 145 का कराने गया तो मुझे यह हवाला दिया गया कि समूह खाता में है तो सह खाता में रजिस्ट्रेशन नहीं होगा। बाद में हमे जानकारी लगी कि मेरे जमीन का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। यह सब मिलीभगत करके विष्णु प्रताप सिंह के नाम पर कर दिया गया है।

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