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MP News:भोपाल जिला अदालत ने इस साल 18 मार्च को एक पांच साल की बच्ची से दुष्कर्म व हत्या के मामले में आरोपी अतुल निहाले को फांसी की सजा सुनाई। लेकिन, अभी तक उसको मृत्यु दंड नहीं मिल पाया है। इसी तरीके के कई मामले प्रदेश में पेंडिंग हैं जिनमें सालों निकल जाने के बाद भी आरोपियों को सजा नहीं मिल पाई है। राज्य में पिछले 10 सालों से अधिक समय में अभी तक एक भी व्यक्ति के मृत्युदंड को क्रियान्वित नहीं किया गया है।
राज्य की जेलों में इस समय 38 कैदी मृत्युदंड (Death Sentence Prisoners) पाए हुए हैं। इनमें 40% कैदी ऐसे हैं, जो पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म और हत्या के दोषी हैं। कई मामलों में सजा दिए 10 साल से अधिक हो चुके हैं, पर अभी तक फांसी नहीं दी गई।
कोर्ट से राष्ट्रपति तक की लंबी प्रक्रिया
मृत्यु दंड में देरी की वजह आरोपियों की याचिकाओं का हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग होना है। कई बार राष्ट्रपति तक याचिकाएं पहुंची, लेकिन सजा नहीं हुई।
इंदौर के तीन दोषियों की दया याचिका राष्ट्रपति द्वारा खारिज हो चुकी है। फिर भी, एनजीओ द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई। नतीजतन, एक दोषी जितेंद्र सिंह की फांसी की सजा 20 साल की सजा में बदल दी गई। 2012 में हत्या के दोषी सुखलाल को सीहोर जेल में फांसी दी जानी थी। लेकिन एक एनजीओ द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने रात 12:30 बजे सुनवाई कर फांसी पर रोक लगा दी।
इंदौर के तीन दोषियों की दया याचिका राष्ट्रपति द्वारा खारिज हो चुकी है। फिर भी, एनजीओ द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई। नतीजतन, एक दोषी जितेंद्र सिंह की फांसी की सजा 20 साल की सजा में बदल दी गई। 2012 में हत्या के दोषी सुखलाल को सीहोर जेल में फांसी दी जानी थी। लेकिन एक एनजीओ द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने रात 12:30 बजे सुनवाई कर फांसी पर रोक लगा दी।
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प्रदेश में दो दशकों में सिर्फ दो फांसियां
- 1996 में उमाशंकर पांडेय को इंदौर जेल में पत्नी व चार बच्चों की हत्या के लिए फांसी।
- 1997 में कामता तिवारी को जबलपुर जेल में नाबालिग से दुष्कर्म व हत्या पर फांसी।
फांसी कैसे और कब दी जाती है?
- समय: सुबह 4:30 से 5:00 बजे के बीच।
- स्थान: प्रदेश में इंदौर और जबलपुर जेल में ही फांसी दी जाती है।
- प्रक्रिया: फांसी के बाद शव का परीक्षण डॉक्टर करते हैं और उसे फांसी गृह के विशेष द्वार से पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाता है।
कानून क्या कहता है?
- 90 दिन के भीतर बंदी हाई कोर्ट में अपील कर सकता है।
- यदि वह अपील नहीं करता, तो जेल प्रशासन को हाई कोर्ट को जानकारी देनी होती है।
- आमतौर पर एनजीओ या कोई वकील अपील दायर कर देता है।
एनजीओ की भूमिका
कई एनजीओ (NGOs) मृत्युदंड पाए कैदियों की ओर से याचिकाएं दाखिल करते हैं। कानूनी सहायता उपलब्ध कराना, पुनर्विचार याचिका दाखिल करना इनकी प्रमुख भूमिका होती है। यह प्रक्रिया मृत्युदंड टालने का एक माध्यम बन जाती है।
FAQ
1. मृत्युदंड की सजा के बाद फांसी में देरी क्यों होती है?
मृत्युदंड के बाद मामला हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट, राज्यपाल और राष्ट्रपति तक जाता है। इसके अलावा, एनजीओ भी कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर देते हैं, जिससे सजा में वर्षों की देरी हो जाती है।
2. क्या बिना अपील किए भी फांसी की सजा रोकी जा सकती है?
हां, यदि कैदी अपील नहीं करता, तो कोई वकील या एनजीओ स्वयं उसके पक्ष में अपील कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट के कई उदाहरण इस बात की पुष्टि करते हैं।
3. मध्य प्रदेश में फांसी कहां दी जाती है?
मप्र में केवल इंदौर और जबलपुर जेलों में फांसी देने की व्यवस्था है। फांसी जेल खुलने से पहले दी जाती है और शव को विशेष प्रक्रिया से बाहर निकाला जाता है।
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