धार जिले के सेंट टेरेसा जमीन घोटाले मामले में इंदौर हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में मध्य प्रदेश सरकार को एक बड़ा झटका लगा था, लेकिन अब डबल बेंच से उसे राहत मिल गई है। यह मामला 250 करोड़ रुपए (बाजार मूल्य 400 करोड़ रुपए से अधिक) की जमीन घोटाले से जुड़ा है, जो कि धार जिले में हुआ था। दरअसल, सिंगल बेंच के केस खारिज करने के आदेश पर मप्र शासन की रिट अपील पर डबल बैंच ने स्टे कर दिया है। अगली सुनवाई 3 जनवरी को रखी गई है।
पूर्व कलेक्टर जैन, एसपी सिंह को भी राहत
इसके साथ ही इस पूरे मामले में धार के तत्कालीन कलेक्टर पंकज जैन व तत्कालीन एसपी आदित्य सिंह को भी राहत मिली है। सिंगल बेंच ने इस मामले में पूरे घोटाले को उजागर करने और एक्शन लेने वाले जैन, सिंह और नगर पालिका अधिकारी पर 50 हजार की कास्ट लगा दी थी। स्टे आर्डर के साथ अब यह भी रुक गया है। इस मामले में अब डबल बैंच सुनवाई करेगी। यह रिट अपील पीएस रिवेन्यू के साथ ही धार कलेक्टर, एसपी, एसडीओ द्वारा लगाई गई थी।
सिंगल बैंच ने यह दिया था आदेश
हाईकोर्ट इंदौर सिंगल बेंच ने 11 सितंबर 2024 को आदेश में कहा था कि धार कलेक्टर द्वारा 19 मार्च 2021 में जारी, इस जमीन सर्वे नंबर 29 मगजपुरा धार को सरकारी घोषित करने का आदेश रद्द करने योग्य है। साथ ही इस आधार पर नगर पालिका धार द्वारा बिल्डिंग मंजूर निरस्त करने का 31 मई 2021 का आदेश भी रद्द किया जाता है। साथ ही इस आदेश के आधार पर एसपी द्वारा दर्ज की गई एफआईआर और की गई जांच अमान्य और शून्य की जाती है।
इस फैसले के कारण पूरा घोटाला ही खत्म हो गया था
- इस आदेश के मायने थे कि इस घटना में 30 से ज्यादा आरोपियों पर सारी कानूनी जीरो हो गई, जिसमें सुधीर दास, शालिनी दास, सुधीर जैन सहित अन्य शामिल हैं।
- जमीन पर सरकारी होने का दावा खारिज हो गया था और मामले को सिविल नेचर का बताया गया था, जिससे आपराधिक पूरी प्रक्रिया (यहां तक की जब एफआईआर जीरो होती तो फिर ईडी में अटैचमेंट कार्रवाई भी खत्म हो जाती) को ही खारिज कर दिया।
- इस जमीन को लेकर कलेक्टर, नगर पालिक धार, एसपी के सरकारी जमीन मानने और यह मानकर की जाने वाली सारी कार्रवाई जीरो हो गई है।
- ईडी द्वारा इसी एफआईआर के आदेश पर मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज कर जनवरी में 151 करोड़ की प्रॉपर्टी अटैच की थी। अब एफआईआर और कानूनी कार्रवाई शून्य हो गई तो फिर ईडी के केस का भी आधार नहीं बचता। यानी अब ईडी के हाथ से भी अटैचमेंट चला जाता।
हाईकोर्ट सिंगल बेंच में यह रखी थी आरोपियों ने बातें
- यह केस आयुशी जैन और सरिता जैन ने लगाया था, जिन्होंने इस मामले में मुख्य आरोपी सुधीर दास से सर्वे नंबर 29 की व्यावसायिक जमीन खरीदी थी। इस पर नगर पालिक से भवन मंजूरी लेकर काम शुरू किया था। इनका तर्क था कि इस केस में कलेक्टर द्वारा मार्च 2021 में जारी आदेश कि यह सरकारी जमीन है, गलत है, इसे क्वैश किया जाए। साथ ही इसके आधार पर एसपी द्वारा जांच की गई और एफआईआर भी गलत निकली।
- हाईकोर्ट ने कहा कि शासन पक्ष यह दस्तावेज नहीं बता पाया कि यह सरकारी जमीन थी। साल 1895 में महाराज आनंद राव पंवार ने यह जमीन दी थी। हालांकि, किसी भी दस्तावेज में इसके सरकारी जमीन होने के सबूत नहीं हैं।
- कोर्ट में साल 2012 में आरोपी सुधीर दास के पक्ष में डिक्री हो चुकी है
- यह पूरी तरह से स्वामित्व का सिविल विवाद है, इसमें पुलिस कार्रवाई की जरूरत ही नहीं थी।
- तहसीलदार के खिलाफ हुई शासकीय कार्रवाई के खिलाफ हाईकोर्ट इंदौर द्वारा रिट पिटीशन व रिट अपील दोनों में इसे सरकारी जमीन नहीं माना गया है। ऐसे में फिर इस पूरी कार्रवाई को काई मतलब नहीं बनता है।
- कलेक्टर द्वारा मार्च 2021 में जारी आदेश को लेकर शिकायत कर्ता पहले ही शिकायत ले चुका था, साथ ही इसमें कलेक्टर ने सामने वाले को नोटिस नहीं दिया। इसलिए आदेश शून्य होने योग्य है।
- नगर पालिक द्वारा जब भवन मंजूरी दी गई तो उसे रद्द करने का कोई आधार वह नहीं बता सके।
- एसडीओ नजूल अनापत्ति दे चुके हैं, तहसीलदार नामांतरण कर चुके हैं, पहले किसी भी समय शासकीय जमीन की बात नहीं उठी, फिर अचानक कैसे आ गया, यह नहीं बता सके।
वहीं जिस शिकायतकर्ता जय ठाकुर के आधार पर एफआईआर हुई उस पर खुद आपराधिक केस है, उसका इस केस से कोई वास्ता नहीं, फिर भी एक शिकायत पर यह पूरी कानूनी कार्रवाई की गई।
कनाडा से बुलाई किताब, पूरे दस्तावेज जांच 16 हजार 500 पन्ने
इस पूरे मामले में तत्कालीन एसपी आदित्य प्रताप सिंह ने टीम बनाकर खासी मेहनत की थी। इसके लिए कनाडा तक से बुक मंगाई गई थी। राज दरबार के पुराने हजारों पन्ने खंगाले गए और इसके बाद 16 हजार 500 पन्नों का अभूतपूर्व चालान पेश किया गया। इसमें 1895 से चली जमीन के दस्तावेज के सिर से अभी तक की लिंक बनाकर पेश की गई और बताई गई कि किस तरह दास के पिता रत्नाकर पीटर दास इसमें जुड़े। फिर उनकी पत्नी इसमें आई और सुधीर दास केवल इस जमीन व चर्चा के प्रशासक मात्र थे। हालांकि, उन्होंने फर्जीवाडा करते हुए इस जमीन का खुद का स्वामित्व बताया और इसके बाद जमीन के टुकड़े बनाकर बेच दिए और इस तरह 250 करोड़ का घोटाला किया।
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