धार की भोजशाला किसकी? हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष इसमें पक्षकार थे ही और अब ASI की रिपोर्ट के बाद जैन समाज ने भी इस पर अपना अधिकार जताया है।
पहले जैन समाज ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी और अब वह दोनों पक्षकारों को देखते हुए खुद भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। उनकी याचिका सुनवाई के लिए मंजूर हो गई है। जैन समाज ने 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर समाज को तीसरी पार्टी के रूप में शामिल करने की अपील की थी।
जैन समाज यह दे रहा तर्क
याचिका में कहा गया है, ‘सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जैन समाज का पक्ष भी सुने क्योंकि ब्रिटिश म्यूजियम में जो मूर्ति है, वह जैन धर्म की देवी अंबिका की है, वाग्देवी (सरस्वती) की नहीं। भोजशाला में ASI के वैज्ञानिक सर्वे में भी बहुत सी मूर्तियां निकली हैं, वह भी जैन धर्म से संबंधित हैं।’
यह की मांग भोजशाला हमारी, पूजा का अधिकार मिले
जैन समाज के याचिकाकर्ता सलेकचंद्र जैन ने कहा कि भोजशाला जैन समाज की है। समाज को पूजा का अधिकार मिले और इसे समाज को सौंपा जाए। उन्होंने कहा कि 1875 में खुदाई के दौरान भोजशाला से वाग्देवी की मूर्ति निकली थी, लेकिन दरअसल वह जैन धर्म की देवी अंबिका की मूर्ति है।
भोजशाला थी हमारा जैन गुरूकुल
जैन समाज के याचिकाकर्ता सलेकचंद्र जैन ने बताया, 'राजा भोज कवियों को पसंद करते थे। वे सर्व धर्म प्रेमी थे। उनके दरबार में धनंजय जैन कवि थे। उनका नाम धनपाल भी था। कवि धनंजय जैन ने एक किताब संस्कृत में लिखी थी। उसके कुछ श्लोक राजा भोज को सुनाए थे। राजा भोज काफी प्रभावित हुए और कवि की प्रशंसा की।
राजा भोज ने उनके गुरू आचार्य महंत मानतुंग को बुलाया लेकिन उनके नहीं आने से राजा नाराज हुए और बलपूर्वक लाने के आदेश दिए हैं। बाद में आचार्य को कारागार में डाल दिया। आचार्य ने भक्तामर स्तोत्र की रचना की। बाद में आचार्य से राजा भोज बहुत प्रभावित हुए। राजा भोज ने मालवा प्रांत में जैन धर्म के बहुत सारे मंदिर बनवाए। भोजशाला एक जैन गुरुकुल था। इसमें सभी धर्म के बच्चे पढ़ने आते थे।
जैन धर्म की प्राकृत भाषा का संस्कृत में अनुवाद भी भोजशाला में होता था। यहां आदिनाथ भगवान का मंदिर भी था। यहां से नेमीनाथ भगवान की मूर्ति भी निकली है, जो 22वें तीर्थंकर है। भोजशाला में जैन धर्म से संबंधित कुछ चिह्न भी निकले है। जैसे कछुआ निकला है। हमारे जो 20वें तीर्थंकर है, उनका चिह्न कछुआ था। शंख भी मिला है। 22वें तीर्थंकर नेमीनाथ भगवान का चिह्न शंख था।
इधर हाईकोर्ट ने जारी किया आदेश
उधर हाईकोर्ट इंदौर खंडपीठ ने 22 जुलाई को सुनवाई के बाद आदेश जारी कर दिया है। इसमें सुप्रीम कोर्ट में स्टे हटने के बाद ही अगली सुनवाई की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में इस मामले में हाईकोर्ट को उनकी बिना सहमति के आदेश करने पर रोक लगाई हुई।
अब हाईकोर्ट में एएसआई की रिपोर्ट पहुंच चुकी है, जिस पर सुनवाई कर फैसला सुनाया जाना है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की रोक के चलते हाईकोर्ट ने अब सुनवाई रोक दी है।
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