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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव मे हाल ही में महिलाओं का धर्मांतरण कराने पर फांसी की सजा दिलाने का ऐलान किया है। सीएम की इस घोषणा ने फिर उस चर्चा को जन्म दे दिया है, जो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दौरान भी खड़ी हुई थी- क्या कोई राज्य अपने स्तर पर फांसी की सजा की घोषणा कर सकता है? चलिए विस्तार से समझते हैं इस मामले को…
फांसी को लेकर सीएम मोहन यादव का बयान
"हम धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम में फांसी का प्रावधान करने जा रहे हैं। मध्य प्रदेश में धर्मांतरण नहीं चलने दिया जाएगा। जोर-जबरदस्ती, बहला-फुसलाकर धर्मांतरण करने वालों को हमारी सरकार नहीं छोड़ेगी।"
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव
8 मार्च 2025
फांसी को लेकर सीएम शिवराज सिंह चौहान का बयान
"बेटियों और बहनों के साथ दुर्व्यवहार करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। अगर भारतीय जनता पार्टी (BJP) दोबारा सत्ता में आई तो महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने वालों को फांसी पर लटका दिया जाएगा।"
– शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश
23 अक्टूबर 2023
मान लीजिए कि यदि किसी व्यक्ति ने हत्या कर दी है, तो IPC के अनुसार उसे मृत्यु दंड या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। यानी सीएम मोहन यादव ने जो फांसी की सजा का ऐलान किया है, वह IPC के तहत आएगी।
अब समझते हैं CM की यह घोषणा कैसे बनेगी कानून!
भारत में किसी भी नए कानून को ( यहां IPC पढ़ें ) बनाने या मौजूदा कानून में संशोधन करने की प्रक्रिया संविधान द्वारा निर्धारित की गई है। यदि सरकार फांसी की सजा से संबंधित कोई नया कानून बनाना चाहती है या मौजूदा प्रावधानों में बदलाव करना चाहती है, तो उसे संसदीय प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। तो धर्मांतरण कराने के आरोपी को फांसी की सजा का कानून इन प्रक्रियाओं से गुजरेगा…
(A) विधेयक तैयार करना (Drafting the Bill)
कानून बनाने की प्रक्रिया संबंधित मंत्रालय (Ministry of Home Affairs / Law Ministry) से शुरू होती है। कानूनी विशेषज्ञों और संसदीय समितियों की मदद से विधेयक (Bill) का मसौदा तैयार किया जाता है। यदि यह कानून किसी मौजूदा दंड संहिता (IPC, CrPC) में बदलाव करने वाला हो, तो मौजूदा प्रावधानों की समीक्षा की जाती है।
(B) संसद में पेश करना (Introduction in Parliament)
विधेयक को लोकसभा (Lower House) या राज्यसभा (Upper House) में पेश किया जाता है।
सरकारी विधेयक (Government Bill) को संबंधित मंत्री पेश करते हैं।
संसद में पेश होने के बाद, इसे पहली बार पढ़ा जाता है और चर्चा के लिए आगे बढ़ाया जाता है।
(C) संसदीय बहस और समिति को भेजना (Debate & Committee Review)
विधेयक पर संसद में बहस होती है, जिसमें सभी पक्षों के सांसद अपने विचार रखते हैं।
विधेयक को संबंधित स्थायी समिति (Standing Committee) को भेजा जाता है ताकि वह इसकी समीक्षा कर सके। समिति विधेयक में आवश्यक संशोधनों का सुझाव दे सकती है।
(D) दोनों सदनों में पारित करना (Passing in Both Houses)
यदि समिति की सिफारिशों को शामिल कर लिया जाता है, तो विधेयक पर फिर से बहस होती है।
इसके बाद, विधेयक को दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में बहुमत से पारित कराना पड़ता है।
यदि दोनों सदन इसे पारित कर देते हैं, तो यह राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
(E) राष्ट्रपति की मंजूरी (President's Approval)
संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत राष्ट्रपति के पास विधेयक को मंजूरी (Assent) देने, संशोधन के लिए वापस भेजने या अस्वीकार करने का अधिकार होता है। यदि राष्ट्रपति विधेयक को मंजूरी देते हैं, तो यह अधिनियम (Act) बन जाता है।
(F) गजट अधिसूचना और कार्यान्वयन (Gazette Notification & Implementation)
अधिनियम को भारत के राजपत्र (Gazette of India) में प्रकाशित किया जाता है। इसके बाद, सरकार इसके कार्यान्वयन (Implementation) के लिए नियम और दिशानिर्देश जारी करती है। यदि इसमें संशोधन की जरूरत हो, तो इसे न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) में भेजा जा सकता है।
अब समझते हैं…यदि कोई राज्य सरकार अपने स्तर पर फांसी का कानून बनाना चाहे तो?
दंड संहिता (IPC) और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) केंद्र सरकार के अधीन आती हैं, इसलिए कोई भी राज्य सरकार अपने स्तर पर नया कानून नहीं बना सकती। हालांकि, राज्य सरकारें किसी विशेष अपराध के लिए केंद्र को सिफारिश कर सकती हैं कि फांसी की सजा का प्रावधान जोड़ा जाए। राज्य सरकारें विशेष राज्य कानून (State-Specific Law) बना सकती हैं, लेकिन इसे लागू करने के लिए राष्ट्रपति की अनुमति (President's Assent) जरूरी होगी।
यहां साफ है कि धर्मांतरण के आरोपी को फांसी की सजा का कानून केंद्र सरकार को भेजने से पहले मप्र में भी उसी प्रक्रिया से गुजरना होगा। यानी पहले कानून का प्रस्ताव विधानसभा में लाना पड़ेगा, जहां वह आसानी से पास हो जाएगा, मगर इस बात की संभावना कम है कि केंद्र सरकार इस प्रस्ताव को मानेगी। दरअसल यह कानून बनने में काफी लंबा समय लग सकता है… फांसी की सजा से जुड़ा कोई भी नया कानून बनाने के लिए संविधान द्वारा निर्धारित संसदीय प्रक्रिया का पालन करना जरूरी होता है। राज्य सरकारें अपने स्तर पर ऐसा कोई कानून नहीं बना सकतीं, लेकिन वे केंद्र सरकार को सिफारिश भेज सकती हैं। संसद में विधेयक पारित होने के बाद, राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने पर वह कानून बनता है।
उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण पर उम्रकैद का प्रावधान
वर्तमान में भारत में किसी भी राज्य में धर्मांतरण से जुड़े मामलों में फांसी की सजा का प्रावधान नहीं है। हालांकि, देश के 11 राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू हैं। इन राज्यों में ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, झारखंड, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश शामिल हैं। हाल ही में राजस्थान सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र के दौरान धर्मांतरण कानून में संशोधन का प्रस्ताव रखा है। यदि यह विधेयक पारित हो जाता है, तो राजस्थान ऐसा कानून लागू करने वाला भारत का 12वां राज्य बन जाएगा।
उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण कानून का इतिहास
नवंबर 2020 में, योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 लागू किया था। इसके बाद, 2021 में विधानसभा में इसे पारित कर पूर्ण रूप से कानून बना दिया गया। इस कानून के लागू होने के बाद 2020 से 2024 के बीच उत्तर प्रदेश में 800 से अधिक मामले दर्ज किए गए, जिनमें 1600 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी हुई। हालांकि, जांच के बाद 124 व्यक्तियों को किसी प्रकार की संलिप्तता न पाए जाने पर रिहा कर दिया गया। यदि राजस्थान में प्रस्तावित विधेयक पारित होता है, तो यह कानून धर्मांतरण को रोकने के लिए एक और कड़ा कदम होगा।
शिवराज सरकार में बने कानून के क्या हाल हैं?
मध्य प्रदेश सरकार ने 2018 में "दंड विधि (मध्य प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2018" लागू किया था, जिसमें 12 साल या उससे कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार या गैंगरेप के मामलों में मृत्युदंड (फांसी) की सजा का प्रावधान किया गया।
- राज्यपाल की मंजूरी– इस कानून को मध्य प्रदेश विधानसभा ने पारित किया था और इसके बाद राज्यपाल की मंजूरी मिली।
- राष्ट्रपति की स्वीकृति– 2018 में ही इसे राष्ट्रपति की भी स्वीकृति मिल गई, जिसके बाद यह कानून प्रभावी हो गया।
- सुप्रीम कोर्ट और न्यायिक समीक्षा– हाल ही में इस कानून को लेकर संवैधानिक वैधता पर बहस हुई है क्योंकि भारतीय दंड संहिता (IPC) और प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस (POCSO) एक्ट में अधिकतम सजा आजीवन कारावास तक सीमित थी। हालांकि, मध्य प्रदेश का यह कानून फांसी की सजा को कानूनी रूप से वैध ठहराता है।
इस कानून के तहत अब तक की गईं कार्रवाई
मध्य प्रदेश में इस कानून के लागू होने के बाद 28 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन फांसी की सजा कितनी बार क्रियान्वित हुई, इस पर अलग-अलग कानूनी अड़चनें सामने आई हैं। 2024 तक इस कानून के तहत कई मामलों में फास्ट-ट्रैक कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है, लेकिन अंतिम क्रियान्वयन सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति की दया याचिका की प्रक्रिया पर निर्भर करता है।
अब तक कितने अपराधियों को फांसी…
आधिकारिक सरकारी आंकड़ों के अनुसार, स्वतंत्रता के बाद अब तक केवल 52 लोगों को फांसी की सजा दी गई है। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के एक शोध के अनुसार, भारत में वर्ष 2000 से अब तक निचली अदालतों द्वारा कुल 1,617 कैदियों को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है, जिनमें से केवल 71 मामलों में मृत्यु दण्ड की पुष्टि हुई है। इस शोध के अनुसार, 1947 से अब तक भारत में कुल 755 लोगों को मृत्यु दण्ड दिया जा चुका है।
( नोट: इस रिपोर्ट को तैयार करने में विभिन्न रिफ्रेंस और AI की मदद ली गई है। )
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