Congress Targets EVM
हरीश दिवेकर, BHOPAL. चुनाव का मौका हो तो बैलेट पेपर और ईवीएम पर बहस होना भी लाजमी है। खासतौर से कांग्रेस तो ईवीएम मशीनों पर निशाना साधती रही है। कांग्रेस के दो पूर्व मुख्यमंत्री ईवीएम का तोड़ भी निकाल चुके हैं और इस बार अपनी सीट पर बैलेट पेपर से चुनाव कराने का दावा भी कर रहे हैं। ऐसा करने से पहले कांग्रेस को ये याद तो रखना ही होगा कि ईवीएम के खिलाफ ये उसका आखिरी दांव होगा। अगर बिना ईवीएम से हुए चुनाव से भी वो हार गए तो उसके बाद कभी ईवीएम पर सवाल नहीं उठा सकेंगे और अगर जीते तो जवाब बीजेपी को देना होगा। इस में भी कोई शक नहीं किया जा सकता कि अब लोकसभा का चुनाव लड़ रहे ये पूर्व मुख्यमंत्री शायद अपनी हार तय मान रहे हैं। इसलिए पहले ही ईवीएम का राग अलापना शुरू कर चुके हैं।
EVM के खिलाफ मुखर 2 पूर्व सीएम
आपको याद होगा जब जब चुनाव सिर पर आते हैं कांग्रेस एक ही रट लगाती है कि ईवीएम से चुनाव नहीं होने चाहिए। जैसे ही नतीजे आते हैं, अपनी हार के लिए ईवीएम को जिम्मेदार ठहराती है। इसके बदले बीजेपी का सिर्फ एक ही तर्क रहा है कि जिस सीट पर या जिन राज्यों में कांग्रेस जीतती है, वहां के लिए ईवीएम पर कोई सवाल क्यों नहीं खड़े होते। अब कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और भूपेश बघेल इस लड़ाई को एक अलग ही लेवल पर ले गए हैं। ये याद दिला दूं कि दिग्विजय सिंह को कांग्रेस ने इस बार राजगढ़ लोकसभा सीट से मैदान में उतारा है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे भूपेश बघेल को राजनांदगांव से टिकट मिला है। दोनों ही पूर्व मुख्यमंत्रियों के सुर ईवीएम के खिलाफ मुखर हो चुके हैं। दिग्विजय सिंह के एक बयान ने इस बहस को अलग ही लेवल पर पहुंचा दिया है।
दिग्विजय सिंह ने क्या कहा ?
असल में दिग्विजय सिंह का बयान महज जुमला नहीं कहा जा सकता। उन्होंने वो तोड़ बता दिया है जो आजमाया गया तो ईवीएम से चुनाव होना मुश्किल होगा, इसके अलावा चुनाव आयोग की मुश्किलें डबल ट्रिपल हो जाएंगी। राजगढ़ लोकसभा सीट पर वादा निभाओ पदयात्रा कर रहे दिग्विजय सिंह ने कहा है कि मेरी लड़ाई तो बीजेपी के खिलाफ है। यहां जितने लोग बैठे हैं, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि बैलेट पेपर से चुनाव होना चाहिए या ईवीएम से। सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग सुन नहीं रहा है। अब एक ही रास्ता बचा है। राजगढ़ लोकसभा में यदि 384 उम्मीदवार खड़े होंगे तब जाकर बैलेट पेपर से चुनाव होगा। बैलेट पेपर से चुनाव हो गया तो बीजेपी चुनाव नहीं जीत सकती।
2 चैलेंज
इस एक बयान में 2 चैलेंज हैं जो खुद दिग्विजय सिंह ने अपने सिर ले लिए हैं। पहला तो ये कि वो चुनाव आयोग को इतना मजबूर कर दें कि चुनाव बैलेट पेपर से ही कराने पड़ जाएं। इसके लिए राजगढ़ लोकसभा सीट से 384 से ज्यादा प्रत्याशी खड़े हो जाएं। इस शर्त को पूरा करने के लिए इस लोकसभा सीट पर इतने ही लोग तलाशने होंगे जो चुनाव लड़ने को तैयार होंगे। तब ही चुनाव बैलेट पेपर से हो सकेगा। दूसरा चैलेंज है खुद को जीत कर दिखाना। मान लीजिए कि राजगढ़ सीट पर बैलेट पेपर से ही इलेक्शन होता है और दिग्विजय सिंह हार जाते हैं तो क्या वो दोबारा ईवीएम पर सवाल खड़े कर सकेंगे। सिर्फ वही नहीं उनके सहित भूपेश बघेल और पूरी कांग्रेस क्या वोटिंग मशीन पर सवाल खड़े कर सकेगी।
बीजेपी के लिए चुनौती
एक चुनौती बीजेपी के लिए भी होगी। अगर दिग्विजय सिंह ऐसे हालात पैदा कर देते हैं कि मतपत्रों पर ठप्पा लगाकर चुनाव हों और दिग्विजय सिंह जीत जाएं तब बीजेपी ईवीएम की हिमायत कैसे कर सकेगी। हालांकि बीजेपी पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर अपनी जीत के लिए पूरी तरह से आश्वस्त है। दिग्विजय सिंह के खिलाफ राजगढ़ से चुनाव लड़ रहे मौजूदा सांसद रोडमल नागर बड़े इत्मिनान के साथ ये कह चुके हैं कि चुनाव बैलेट पत्र से हों या ईवीएम से नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी को हार का कोई डर नहीं है। चुनाव प्रचार के लिए अपने क्षेत्र में पहुंचे ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इन बयानों को शगुफा ही बता रहे हैं। उन्होंने भी साफ कहा कि अपनी हार के लिए कांग्रेस और उसका भ्रष्टाचार जिम्मेदार है। खैर बात करते हैं कांग्रेस और दिग्विजय सिंह की है। दिग्विजय सिंह के साथ कांग्रेस भी हर सीट से 400 प्रत्याशियों के उतरने पर जोर दे रही है। ये काम मुश्किल जरूर लगता है, लेकिन नामुमकिन नहीं कहा जा सकता। अगर किसी एक सीट पर भी ऐसा हो गया तो कांग्रेस या बीजेपी से ज्यादा मुश्किलें चुनाव आयोग की बढ़ जाएंगी।
ऐसे होगा बैलेट पेपर से चुनाव
ईवीएम की एक यूनिट या कह लीजिए एक मशीन में ज्यादा से ज्यादा 16 नाम हो सकते हैं। एक मतदान केंद्र के लिए ज्यादा से ज्यादा 24 बैलेट यूनिट ही जोड़ कर रखी जा सकती हैं। अब अगर आप 16 और 24 को मल्टीप्लाई करेंगे तो जवाब आएगा 384। यानी चुनाव आयोग एक सीट पर 384 ईवीएम से ज्यादा प्रत्याशी होने पर ईवीएम से चुनाव नहीं करवा सकता। वहां बैलेट पेपर से चुनाव कराना मजबूरी हो जाएगा। असल मुश्किल उसी के बाद शुरू होगी। जब 400 उम्मीदवार होंगे तो बैलेट पेपर भी 30 से 40 पेज का बनेगा। इसके लिए मतपेटी भी नए सिरे से डिजाइन करनी होगी, जिसमें 30 से 40 पेज का एक बैलेट पेपर जा सके। उसी हिसाब से पोलिंग बूथ पर कर्मचारियों की ड्यूटी लगानी पड़ेगी। मतगणना में भी तीन गुना कर्मचारियों की जरूरत पड़ेगी। हालांकि भारत में चुनाव जब से होना शुरू हुए हैं, कभी भी एक सीट पर 400 उम्मीदवार एक साथ चुनाव लड़ने नहीं उतरे हैं। पिछले चुनाव में भी एक सीट पर जो अधिकतम उम्मीदवार उतरे थे, उनकी संख्या 60 तक ही पहुंची थी। पहले चरण में जितनी सीटों पर चुनाव होंगे, चुनाव आयोग उन सीटों की अधिकतम संख्या के आधार पर अपनी तैयारी करेगा।
क्या मैदान में उतरेंगे 400 उम्मीदवार
दिग्विजय सिंह अगर ठान ही लें तो वो कम से कम राजगढ़ लोकसभा सीट पर तो ये कारनामा करके दिखा ही सकते हैं। 400 उम्मीदवार मैदान में उतार सकते हैं। फिलहाल उनकी सीट पर नामांकन की आखिरी तारीख 19 अप्रैल है। तब तक दिग्विजय सिंह की रणनीति साफ हो जाएगी। फिलहाल, तो उन्होंने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन ये जरूर कहते हैं कि हम तो सभी को आवेदन दे रहे हैं। देशभर के लोग यहां से चुनाव लड़ सकते हैं। वे सभी लोग जो बैलेट पेपर से चुनाव चाहते हैं। उन सभी से मेरी प्रार्थना है कि जरा जुगाड़ देखो, जुगाड़ लग जाए जिससे 400 उम्मीदवार चुनाव लड़ सकें और राजगढ़ में मतपत्र से चुनाव हो।
दिग्विजय कितनों को उतारेंगे मैदान में ?
अब इस प्रार्थना के सहारे दिग्विजय सिंह कितने लोगों को मैदान में उतार पाते हैं ये तो कहना मुश्किल है, लेकिन इस के बाद एक और रुकावट होगी। जिसका जिक्र यहां करना जरूरी है। आप चुनाव के नतीजों के बाद अक्सर ये सुनते होंगे कि प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई। हर प्रत्याशी को चुनाव लड़ने के एवज में एक नियत राशि जमा करना जरूरी होता है। लोकसभा चुनाव में एक उम्मीदवार को नामांकन दाखिल करते समय जमानत राशि के तौर पर 25 हजार रुपए जमा कराने होंगे। रिजर्व कैटेगरी के उम्मीदवार के लिए जमानत राशि 12500 रुपए होगी। यदि सभी 400 उम्मीदवार सामान्य वर्ग के हों तो जमानत राशि के तौर पर 1 करोड़ रुपए जमा होंगे। दिग्विजय सिंह की प्रार्थना पर अगर प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतर जाते हैं तो क्या उनके बदले की जमानत राशि की रकम दिग्विजय सिंह जमा करवाने का इंतजाम करवाएंगे। क्योंकि अगर पांच फीसदी वोट हासिल नहीं हुए तो उम्मीदवार की जमानत राशि उसे वापस नहीं मिल सकेगी।
दिग्विजय सिंह की रणनीति पर चुनाव आयोग की भी नजर
राजगढ़ में तीसरे फेज में 7 मई को चुनाव होने हैं। यहां 12 से 19 अप्रैल तक नामांकन जमा किए जाएंगे। इसके बाद ही यहां तस्वीर साफ होगी कि कितने उम्मीदवार चुनाव मैदान में डटे हैं। यदि 384 से ज्यादा उम्मीदवारों के नामांकन वैध पाए गए तो यहां मतपत्र से चुनाव की संभावना होगी। चुनाव आयोग को इसके लिए नए सिरे से तैयारियां करनी होंगी। दिग्विजय सिंह की रणनीति पर चुनाव आयोग की भी नजर है। खुद चुनावी मैदान में उतरने से पहले भी दिग्विजय सिंह अपने दावे को सच करके दिखा चुके हैं। इसी साल 23 जनवरी को उन्होंने भोपाल में आईआईटीयन अतुल पटेल के जरिए ईवीएम में गड़बड़ी का डैमो भी करवाया था। आईआईटीयन अतुल पटेल ने मशीन की गड़बड़ी को दिखाने के लिए एक चिह्न तरबूज को दो वोट डाले। पहले वोट पर तरबूज की पर्ची वीवीपैट में दिखी। दूसरी बार तरबूज का बटन दबाया तो सेब की पर्ची प्रिंट हुई। अतुल ने कहा, 2013 से चुनावी प्रक्रिया पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। हम बैलेट पेपर से वोटिंग की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस दौरान दिग्विजय ने आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं है, दबाव में है। आयोग से हम निष्पक्षता की उम्मीद करते हैं। ईवीएम का सारा काम प्राइवेट लोगों के हाथ में है। जब सॉफ्टवेयर ही सब करता है तो वही तय करेगा सरकार किसकी बनेगी।'
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EVM या बैलेट पेपर ?
अब दिग्विजय सिंह खुद चुनावी मैदान में हैं। ये चुनाव करियर के लिहाज से और अपना गढ़ बचाने के लिहाज से उनकी बड़ी अग्नि परीक्षा है। मान लीजिए कि 400 प्रत्याशी भी मैदान में उतर जाते हैं तो अग्नि परीक्षा की लपटें और ज्यादा तेज होंगी। अगर बैलेट पेपर से इलेक्शन करवाने में वो कामयाब हुए तो ये उनकी पहली जीत होगी। अगर वो नतीजों में भी जीते तो ईवीएम पर बीजेपी सवालों के घेरे में होगी और अगर हार गई तो शायद कांग्रेस को ये मुद्दा हमेशा हमेशा के लिए दफन करना होगा।
Lok Sabha Elections | Digvijay Singh | कांग्रेस का EVM पर निशाना