MP शिक्षक भर्ती में हुआ भेदभाव, DPI और स्कूल शिक्षा विभाग को नोटिस

अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने इस मामले में कोर्ट को बताया कि डीपीआई कमिश्नर द्वारा लिया गया निर्णय पूरी तरह से भेदभावपूर्ण है। दो अन्य अभ्यर्थियों की नियुक्ति का हवाला देते हुए अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माध्यमिक शिक्षक भर्ती के एक मामले में जवाब तलब किया है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग, और कमिश्नर लोक शिक्षण संचालनालय (डीपीआई) को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। दरअसल इस मामले में लक्ष्मीकांत शर्मा ने हाइकोर्ट में दायर याचिका दायर की है जिसमें उन्होंने अपनी अतिरिक्त डिग्री को अमान्य ठहराए जाने और शिक्षक पद पर नियुक्ति से वंचित किए जाने को चुनौती दी है। प्रारंभिक सुनवाई के दौरान जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रथम दृष्टया भेदभावपूर्ण पाया।

एडिशनल डिग्री को रिजेक्ट करने का है मामला

याचिकाकर्ता लक्ष्मीकांत शर्मा ने अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि उन्होंने बी.ए. की पढ़ाई के दौरान अंग्रेजी विषय को एक अतिरिक्त (एडिशनल) विषय के रूप में पढ़ा है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने स्नातकोत्तर (एम.ए.) की डिग्री भी अंग्रेजी विषय में प्राप्त की है। इन योग्यताओं के बावजूद, डीपीआई के कमिश्नर ने उनकी एडिशनल डिग्री को मान्य नहीं माना और उन्हें माध्यमिक शिक्षक के पद पर नियुक्ति देने से इंकार कर दिया।

ऐसे ही दो मामलों में अभ्यर्थियों को मिल चुकी है नियुक्ति

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि पहले इसी प्रकार के मामले में दो अन्य अभ्यर्थियों को डीपीआई ने एडिशनल डिग्री को अमान्य मानते हुए नियुक्ति नहीं दी थी। हालांकि कुछ समय बाद उन्हीं दो अभ्यर्थियों की एडिशनल डिग्री को मान्य मानते हुए उन्हें शिक्षक पद पर नियुक्ति दे दी गई। लेकिन याचिकाकर्ता को उनकी बेहतर योग्यता के बावजूद नियुक्ति से वंचित रखा गया।

डीपीआई कमिश्नर के आदेश पर सवाल

अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने इस मामले में कोर्ट को बताया कि डीपीआई कमिश्नर द्वारा लिया गया निर्णय पूरी तरह से भेदभावपूर्ण है। दो अन्य अभ्यर्थियों की नियुक्ति का हवाला देते हुए अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि जिन अभ्यर्थियों की एडिशनल डिग्री को पहले अमान्य ठहराया गया था लेकिन उन्हें बाद में नियुक्ति दी गई है और याचिका करता का मामला भी बिल्कुल वैसा ही है। वहीं याचिकाकर्ता ने बी.ए. में अंग्रेजी विषय को एडिशनल के रूप में पढ़ा। उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन भी अंग्रेजी विषय में किया है, जो उनकी शैक्षिक योग्यता को और मजबूत करता है। इसके बाद भी डीपीआई कमिश्नर ने बिना किसी स्पष्ट कारण के याचिकाकर्ता की डिग्री को अमान्य ठहराया और नियुक्ति से वंचित कर दिया।

अभ्यर्थी के साथ हुआ भेदभाव

मामले की प्रारंभिक सुनवाई के बाद, हाईकोर्ट ने डीपीआई कमिश्नर के निर्णय को भेदभावपूर्ण और अनुचित माना। अदालत ने कहा कि समान परिस्थितियों वाले अन्य अभ्यर्थियों को नियुक्ति देना और याचिकाकर्ता को इससे वंचित रखना, निष्पक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है।

हाईकोर्ट ने जवाब देने जारी किया नोटिस

हाईकोर्ट ने इस मामले में प्रमुख सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग, और डीपीआई कमिश्नर को नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि आखिर किन आधारों पर याचिकाकर्ता की डिग्री को अमान्य घोषित किया गया, जबकि अन्य अभ्यर्थियों को नियुक्ति दे दी गई। कोर्ट ने इस मामले को शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन मानते हुए संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है।

शिक्षक भर्ती में लगे भ्रष्टाचार के आरोप

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि डीपीआई कमिश्नर ने शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में नियमों और कानूनों का पालन नहीं किया। याचिकाकर्ता का दावा है कि डीपीआई कमिश्नर अपनी मर्जी से नियुक्तियों के आदेश जारी कर रहे हैं, जिससे भर्ती प्रक्रिया की निष्पक्षता पर भी सवाल उठते हैं। यह न केवल एक अभ्यर्थी के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि पूरे शिक्षक भर्ती तंत्र की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को प्रभावित करता है। याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप कर डीपीआई कमिश्नर के आदेश को निरस्त करे और उनकी नियुक्ति को सुनिश्चित करें।

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