BHOPAL. एक के बाद एक उलझाऊ फैसले, कभी नियमित शिक्षकों की भर्ती में टालमटोल तो कभी अतिथि शिक्षकों की बेदखली के मनमाने फैसले। अब तो डीपीआई की तानाशाही की इंतहा हो गई हैं। क्या आपको ऐसा नहीं लगता। प्रदेश के नौनिहालों का भविष्य गढ़ने का भार उठाने वाली संस्था लोक शिक्षण संचालनालय यानी डीपीआई के हर फैसले को लेकर बार-बार सवाल खड़े हो रहे हैं, लेकिन मनमानी पर उतारू इस संस्था पर सरकार का नियंत्रण शायद खत्म हो चला है। अफसरों को परेशान शिक्षकों की सुध है न तो स्कूलों में पढ़ने वाले लाखों बच्चों की चिंता, बस जब मन में आता है कोई उल्टा-सीधा फरमान जारी कर डालते हैं। अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति का मामला थमा तक नहीं और अब अनुदान प्राप्त स्कूलों को लेकर डीपीआई की तानाशाही का टंटा SAसामने आ गया है। डीपीआई में बैठे मनमौजी अफसरों का काम देखकर तो लगने लगा है कि प्रदेश में स्कूली शिक्षा का तो अब भगवान ही मालिक है।
संचालनालय की मनमानी पर बेबस है सरकार
आपके मन में भी आएदिन डीपीआई के किस्से सुनकर कोफ्त उठती होगी। अब अनुदान प्राप्त स्कूलों का किस्सा भी आप जानने की जिज्ञासा आपके मन में उठना तय है। तो हम बताते हैं कि आखिर अब डीपीआई ने नया क्या कारनामा कर डाला है। इसे जानकार भी आप अपने माथे को हथेली से पीट लेंगे, लेकिन व्यवस्था में बैठे हमारे जनप्रतिनिधि और अफसरों के कानों पर शायद ही जूं रेंगे। क्योंकि बार-बार डीपीआई की तानाशाही, मनमाने फरमानों से हो रही उलझन सामने आने पर भी स्कूल शिक्षा मंत्री ने ध्यान दिया है न ही सीएम मनमौजियों पर वक्रदृष्टि डाल रहे हैं।
अनुदान प्राप्त स्कूलों की पढ़ाई चौपट करने पर उतारू
दरअसल प्रदेश में संचालित 850 से ज्यादा गैर सरकारी स्कूल हैं जिन्हें सरकार से शिक्षकों के वेतन एवं अन्य कार्यों के लिए हर महीने अनुदान प्राप्त होता है। इन स्कूलों में 13 सौ से ज्यादा शिक्षक- शिक्षिकाएं कार्यरत हैं जबकि इन स्कूलों में 20 हजार से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं। यानी अनुदान प्राप्त स्कूलों के सहारे शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों का एक बड़ा वर्ग है जो शिक्षा के लिए इन स्कूलों पर ही निर्भर है। बीते माह यानी 22 जुलाई 2024 को लोक शिक्षण संचालनालय ने जिला शिक्षा अधिकारियों को पत्र लिखा था। इसमें अनुदान प्राप्त गैर सरकारी स्कूलों द्वारा साल 1981 से 2024 के बीच वसूली गई शुल्क का ब्यौरा मांगा गया है। साथ ही शुल्क का ब्यौरा प्राप्त न होने तक इन स्कूलों में पढ़ाने वालों का वेतन भुगतान रोकने का आदेश भी डीपीआई कमिश्नर द्वारा दिया गया है। 35 साल का ब्यौरा अचानक मांगने की वजह से स्कूल उन्हें उपलब्ध नहीं करा पाए और इस वजह से उन्हें दो माह से वेतन नहीं दिया जा रहा है।
डीपीआई मांग रही सरकार द्वारा बंद फीस का ब्यौरा
अब बताते हैं कि इस सनक भरे आदेश के जवाब में अनुदान प्राप्त स्कूलों का क्या कहना है। अनुदान प्राप्त स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों ने लोक शिक्षण संचालनालय के इस आदेश के जवाब में कहना है कि पहले तो शासन स्तर से जो जानकारी मांगी गई है वह आदेश ही त्रुटिपूर्ण है। सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त स्कूलों को साल 1985 से ही शिक्षण शुल्क वसूलने से रोक दिया गया था। यानी सरकारी स्कूलों की तरह ही इन स्कूलों में भी पढ़ने वाले बच्चों से शिक्षण शुल्क नहीं लिया जाता है। इसी के बदले में सरकार से हर महीने अनुदान प्राप्त होता है जिससे शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को वेतन दिया जा सके। यही नहीं शिक्षकों ने आदेश को तानाशाही बताते हुए कहा कि डीपीआई को यदि जानकारी चाहिए भी है तो इसके लिए स्कूल का संचालन करने वाली संस्था जिम्मेदार है। पढ़ाने वाले शिक्षक या दूसरे कर्मचारियों का इससे कोई लेनादेना नहीं है। इसके बाद भी अनुदान रोककर उनका वेतन अटकाना उचित नहीं है। क्योंकि वेतन रुकने से उनके परिवार पर भी इसका असर पड़ रहा है।
मंत्री-विधायकों को बरगलाने में आगे डीपीआई
लोक शिक्षण संचालनालय के इस तानाशाही भरे आदेश से दुखी अनुदान प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों ने जनप्रतिनिधियों से भी मुलाकात ही है। जब केंद्रीय राज्यमंत्री डीडी उइके ने इस मामले को लेकर लोक शिक्षण संचालनालय के अधिकारियों से बात करनी चाही तो उन्होंने कॉल ही रिसीव नहीं किया। यही नहीं रक्षाबंधन जैसे त्यौहार पर बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल द्वारा वेतन भुगतान के लिए लिखे पत्र का जवाब देना भी डीपीआई ने उचित नहीं समझा। डीपीआई की संयुक्त संचालक रेखा पटेल ने तो आमला विधायक योगेश पंन्डाग्रे को भी गलत जवाब देकर पल्ला झाड़ लिया। पटेल ने उन्हें वेतन भुगतान किए जाने का जवाब दिया था जबकि दो महीने से डीपीआई वेतन में अड़ंगा अटकाए हुए है। अनुदान प्राप्त शिक्षण संस्थाओं के संगठन मप्र माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रांत अध्यक्ष एलबी सेठ, महामंत्री अरुण कुमार गुबरेले, नारायण अडलक, बैतूल जिला अध्यक्ष नरेन्द्र ठाकुर, अजय शुक्ला, संदीप कौशिक व अन्य ने वेतन रोकने की शिकायत मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव से की है। समझ से परे है कि जो लोक शिक्षण संस्था शिकायतों पर महीनों तक जवाब तक नहीं देता अब मनमाने आदेश का जबाव न मिलने पर शिक्षकों का ही वेतन रोक दिया है।
यह है डीपीआई द्वारा वेतन अटकाने की वजह
अब आपको वह असल वजह बताते हैं जिसके कारण डीपीआई ने अनुदान प्राप्त गैरसरकारी स्कूलों के शिक्षकों का वेतन रोका है। शिक्षकों ने बताया कि अनुदान प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकारी स्कूल के शिक्षकों के समान वेतनमान देने के आदेश दिया गया है। इसी के तहत साल 2000 से पूर्व के कार्यरत शिक्षकों को इस श्रेणी में रखा गया है। साल 2015 में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा इसी के आधार पर अनुदान प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों को छठवें वेतनमान स्वीकृत किया था। लोक शिक्षण संचालनालय की टालमटोल के चलते सातवां वेतनमान न देने पर संगठन द्वारा साल 2017 में हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी। हाईकोर्ट ने सातवां वेतनमान देने का आदेश दिया लेकिन लोक शिक्षण संचालनालय इसे टालता रहा। मजबूरी में साल 2019 में अवमानना याचिका दायर करनी पड़ी थी। इस पर हाईकोर्ट ने कुछ माह पहले स्कूल शिक्षा और वित्त विभाग के प्रमुख सचिव सहित लोक शिक्षण संचालनालय आयुक्त को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का आदेश सुनाया था। इस आदेश के बाद से ही संचालनालय अनुदान प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों को प्रताड़ित कर रहा है। जुलाई से पहले भी तीन महीने तक वेतन रोका गया था और अब नए आदेश का बहाना लेकर रक्षाबंधन-जन्माष्टमी के त्यौहारों के बावजूद वेतन में रोड़ा अटका दिया है।
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