/sootr/media/media_files/2024/12/28/XfKtDUlGjjTOiAX28NSL.jpeg)
e-tender-scam-madhya-pradesh Photograph: (thesootr)
2024 का साल जाते-जाते प्रदेश के नेताओं और अफसरों के लिए टेंशन देकर गया है। हाईप्रोफाइल आयकर छापों और काला धन केस के बीच मध्यप्रदेश के नेताओं और अफसरों के लिए एक और चिंताजनक खबर है। खासतौर पर पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और उनसे जुड़े लोगों के लिए यह खबर किसी सदमे से कम नहीं है कि ई-टेंडर घोटाले की फाइलें फिर से खुलने वाली हैं। thesootr सबसे पहले आपको यह बता रहा है कि तीन हजार करोड़ से भी ज्यादा के इस घोटाले में EOW के विशेष न्यायालय ने इस केस के खात्मे को रद्द कर दिया है। साथ ही तमाम नए बिंदुओं के आधार पर फिर से पूरे मामले की जांच के निर्देश दिए हैं। अगर इस मामले की सही से जांच होती है तो कई नेताओं और अफसरों का नपना तय है। आइए इस केस के एक- एक बिंदु को विस्तार से समझते हैं।
पहले समझें मामले की टाइम लाइन...
- 2018 में शिवराज सरकार के दौरान यह घोटाला उजागर हुआ और इसे EOW को सौंपा गया।
- 2018 में ही कमलनाथ सरकार के दौरान EOW ने जांच के बाद FIR दर्ज की, जिसमें तत्कालीन जल संसाधन मंत्री नरोत्तम मिश्रा के निज सहायक सहित दर्जनभर से ज्यादा अफसर और कंपनियों को आरोपी बनाया गया।
- 2022 को शिवराज सरकार के दौरान इस मामले में पर्याप्त सबूत न मिलने से मामले में खात्मा लगा दिया गया।
- अब EOW कोर्ट के विशेष न्यायाधीश रामप्रताप मिश्र ने इस खात्मे को रद्द कर दोबारा जांच के आदेश दिए हैं।
समझें क्या है ई-टैंडर घोटाला
मप्र का ई-टेंडरिंग घोटाला अप्रैल 2018 में उस समय सामने आया था, जब जल निगम के 3 टेंडर को खोलते समय कम्प्यूटर ने एक संदेश डिस्प्ले किया। इससे पता चला कि टेंडर में टेम्परिंग की जा रही है। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आदेश पर इसकी जांच मप्र EOW को सौंपी गई थी। प्रारंभिक जांच में पाया गया था कि जीवीपीआर इंजीनियर्स और अन्य कंपनियों ने जल निगम के तीन टेंडरों में बोली की कीमत में 1769 करोड़ का बदलाव कर दिया था। ई टेंडरिंग को लेकर ईओडब्ल्यू ने कई कंपनियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की हुई है।
2022 में हो गए थे सभी दोषमुक्त
23 नवंबर 2022 को मध्य प्रदेश सिंचाई विभाग के बहुचर्चित ई-टेंडरिंग घोटाले के आरोपियों को अदालत ने दोषमुक्त कर दिया गया। दरअसल अभियोजन पक्ष घोटाला साबित करने में विफल रहा। बता दें कि इस मामले को लेकर कोर्ट में कुल 35 गवाहों के बयान दर्ज हुए थे। स्पेशल कोर्ट ने आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष अर्थात EOW अपने आरोप साबित करने में नाकाम रहा।
दरअसल इस घोटाले में ई-टेंडर के पोर्टल को हैक कर और टेंडर में हेर-फेर कर पसंद की कंपनियों को टेंडर देने का आरोप था। करोड़ों के इस घोटाले में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री और वर्तमान गृहमंत्री के ओएसडी के खिलाफ EOW ने मामला दर्ज किया था। लगभग 3 हजार करोड़ के इस घोटाले में अनेक जगहों पर जांच एजेंसियों ने छापेमारी की थी। वहीं इस मामले में आरोपी पक्ष के वकील प्रशांत हरने ने बताते हैं कि उन्होंने कोर्ट में दलील दी थी कि टेंडर होने के समय ही टेंपरिंग पकड़ ली गई थी। जिन टेंडर्स में टेंपरिंग की गई थी उन्हें निरस्त करके नए टेंडर जारी कर दिए गए थे। इसका मतलब घोटाला हुआ ही नहीं था। पहले ही पकड़ा जा चुका था।
/sootr/media/media_files/2024/12/28/u4hHMAKMqgwCgL6zA0UW.jpeg)
/sootr/media/media_files/2024/12/28/BGa9pDzh7Uh3veLhnqxk.jpeg)
/sootr/media/media_files/2024/12/28/nXcw8zYyrg92dWXEN8Qe.jpeg)
व्हिसिल ब्लोअर को ही बना दिया गया था आरोपी
इलेक्ट्रॉनिक विकास निगम के तत्कालीन ओएसडी नंदकुमार ब्रह्मे, इस मामले के व्हिसिल ब्लोअर थे। सबसे पहले जल निगम ने ब्रह्मे को ही जानकारी दी थी, जिसके बाद उन्होंने ही संबंधित कंपनियों को जांच के लिए लिखा था और उन्हीं पत्रों पर जांच हुई थी। बाद में उन्हीं को आरोपी बना दिया गया था।
ई-टेंडरिंग घोटाले में इनको बनाया था आरोपी...
- मेसर्स जीवीपीआर इंजीनियर्स लिमिटेड, हैदराबाद के संचालकगण
- दि इंडियन ह्यूम पाईप लिमिटेड, मुम्बई के संचालकगण
- मेसर्स जेएमसी प्रोजेक्ट्स इंडिया लिमिटेड, मुम्बई के संचालकगण
- मेसर्स रामकुमार नरवानी, भोपाल के संचालकगण
- मेसर्स माधव इन्फ्रा प्रॉजेक्ट्स लिमिटेड के संचालकगण
- मेसर्स मैक्स मॅन्टेना माईको जीवी हैदराबाद के संचालकगण
- मध्यप्रदेश जल निगम के टेंडर ओपनिंग अथॉरिटी एवं अन्य संबंधित अधिकारी और कर्मचारी
- मध्यप्रदेश जल संसाधन विभाग के टेंडर ओपनिंग अथारिटी एवं अन्य संबंधित अधिकारी और कर्मचारी
- मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम भोपाल के टेंडर ओपनिंग अथारिटी एवं अन्य संबंधित अधिकारी और कर्मचारी।
- मध्यप्रदेश लोक निर्माण विभाग भोपाल के टेंडर ओपनिंग अथॉरिटी एवं अन्य संबंधित अधिकारी
- सुशील कुमार साहू शॉप नम्बर-05, शबरी काम्पलेक्स जोन-2 एमपी नगर भोपाल
- किरण शर्मा, 116 सनी पैलेस एमपी नगर, भोपाल
- रत्नेश जैन बारंदा नया बाजार, दमोह
- वीरेन्द्र पाण्डेय, निज सहायक तत्कालनी जल संसाधन मंत्री नरोत्तम मिश्रा के कार्यालय मुख्य अभियंता जल संसाधन विभाग भोपाल।
- निर्मल अवस्थी, निज सहायक तत्कालनी जल संसाधन मंत्री कार्यालय मुख्य अभियंता जल संसाधन विभाग भोपाल।
- अन्य संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों एवं अज्ञात राजनीतिज्ञों तथा ब्यूरोक्रेटस।
- इसके अलावा EOW की चांज के बाद वरुण चतुर्वेदी, विनय चौधरी, सुमित गोलवलकर, नंदकिशोर ब्रम्हे, मनोहर एमएन, मनीष खरे और
- हरेश सौरठिया के खिलाफ भी मामला दर्ज हुआ था।
इन बिंदुओं पर दौबारा होगी जांच...
1. एमपीएसईडीसी (MPSEDC) ने 29 मार्च 2019 को पत्र क्रमांक 6865 के माध्यम से ईओडब्ल्यू को भेजे गए वीपीएन लॉग्स से संबंधित साक्ष्य जुटाने के निर्देश दिए गए हैं। इसके तहत एमपीएसईडीसी से संबंधित पत्रों और जानकारी की प्रतियां मांगी गई हैं।
2. एमपीएसईडीसी ने 3 मई 2019 को पत्र क्रमांक 419 के माध्यम से भेजी गई जानकारी की सत्यता की पुष्टि करने के निर्देश दिए हैं। ईओडब्ल्यू को इस पत्र और संबंधित जानकारी की प्रतियां भी प्राप्त करनी होंगी।
3. पीटी राउटर के आईपी एड्रेस 164.100.196.120 से संबंधित इंटरनेट ट्रैफिक का विश्लेषण करने के लिए इंटरनेट सेवा प्रदाता से जानकारी लेकर साक्ष्य जुटाने को कहा गया है।
4. प्रमुख अभियंता कार्यालय से टेंडर लॉग डिटेल प्राप्त करने के निर्देश दिए गए हैं। इसे लेकर आवश्यक दस्तावेज और साक्ष्य जुटाने पर जोर दिया गया है।
5. प्रकरण से जुड़े अन्य सभी सुसंगत साक्ष्यों को संकलित करने का आदेश दिया गया है।
6. ईओडब्ल्यू को निर्देश दिया गया है कि प्रकरण की मूल फाइल और केस डायरी प्राप्त होने के बाद कानूनी प्रक्रिया के अनुसार कार्यवाही सुनिश्चित की जाए।
2014 में हुई थी ई-टेंडरिंग की व्यवस्था लागू
मध्य प्रदेश सरकार ने अलग-अलग विभागों के ठेकों में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए 2014 में ई-टेंडरिंग की व्यवस्था लागू की थी। इसके लिए बेंगलुरू की निजी कंपनी से ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल बनवाया गया, तबसे मध्य प्रदेश में हर विभाग इसके माध्यम से ई-टेंडर करता है। मध्य प्रदेश लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (MP Public Health Engineering Department or MP-PHE) ने जलप्रदाय योजना के 3 टेंडर 26 दिसंबर 2017 को जारी किए थे। इनमें सतना के 138 करोड़, राजगढ़ के 656 करोड़ और 282 करोड़ के टेंडर थे।
टेंडर नंबर 91: सतना के बाण सागर नदी से 166 एमएलडी पानी 1019 गांवों में पहुंचाने के लिए 26 दिसंबर 2017 को ई.टेंडर जारी किया गया था. इस प्रोजेक्ट के लिए 5 बड़ी नामी कंपनियों ने टेंडर भरे थे।
टेंडर नंबर 93: राजगढ़ जिले की काली सिंध नदी से 68 एमएलडी पानी 535 गांवों को सप्लाई करने का टेंडर 26 दिसंबर 2017 को जारी किया गया था. इस प्रोजेक्ट के लिए 4 नामी कंपनियों ने टेंडर भरे थे।
टेंडर नंबर 94: राजगढ़ जिले के नेवज नदी पर बने बांध से 26 एमएलडी पानी 400 गांवों को सप्लाई करने के लिए 26 दिसंबर 2017 को ई.टेंडर जारी किया गया था। इस प्रोजेक्ट के लिए 7 कंपनियों ने टेंडर भरे थे।
/sootr/media/media_files/2024/12/28/XaYSKCJqVNhenKyMnvDO.jpeg)
इस तरह हुआ था ई- टेंडरिंग में फर्जीवाड़ा?
टेंडर टेस्ट के दौरान 2 मार्च 2018 को जल निगम के टेंडर खोलने के लिए डेमो टेंडर भरा गया, जब 25 मार्च को टेंडर लाइव हुआ तो पता चला कि डेमो टेंडर अधिकृत अधिकारी पीके गुरू के इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से नहीं, बल्कि फेक इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से भरा गया था। बोली लगाने वाली एक निजी कंपनी 2 टेंडरों में दूसरे नंबर पर रही। कंपनी ने इस मामले में गड़बड़ी की शिकायत की। कंपनी की शिकायत पर तत्कालीन प्रमुख सचिव ने विभाग की लॉगिन से ई-टेंडर साइट को ओपन किया तो उसमें एक जगह लाल क्रॉस दिखाई दिया।
टेम्परिंग कर रेट बदले गए
उन्होंने इस संबंध में जब विभाग के अधिकारियों से पूछा गया तो जवाब मिला कि यह रेड क्रॉस टेंडर साइट पर हमेशा ही आता है। तत्कालीन प्रमुख सचिव ने पूरे मामले की जांच कराई तो सामने आया कि जब ई- प्रोक्योरमेंट में कोई छेड़छाड़ करता है तो रेड क्रॉस का निशान आ जाता है। जांच में ई-टेंडर में टेम्परिंग कर रेट बदलने का तथ्य उजागर हुआ। इसके लिए एक नहीं कई डेमो आईडी का इस्तेमाल हुआ। तत्कालीन प्रमुख सचिव मैप-आईटी मनीष रस्तोगी ने ई-टेंडर घोटाला पकड़ा था।
हैक कर बदलाव करते थे आरोपी
आरोपी ई-टेंडर की पोर्टल को हैक करके टेंडर में हेर-फेर कर पसंद की कंपनियों को काम देते थे। ईडी ने 2021 में मामला दर्ज कर जांच शुरू की। मामले का खुलासा वर्ष 2018 में हुआ था। जनवरी से मार्च 2018 के बीच पांच विभागों में गड़बड़ी का पता चला था। शुरुआत में यह मामला सात टेंडरों में गड़बड़ी और 900 करोड़ रुपए के घोटाले तक सीमित था, पर जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, टेंडर की संख्या भी बढ़ी और घोटाले की रकम भी। मार्च 2018 में तत्कालीन सरकार ने मामले में संबंधित विभागों के 5 अधिकारियों के खिलाफ आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ में मामला दर्ज करा दिया था। दिसंबर 2018 में कमल नाथ सत्ता में आए, तो मामला ईडी को सौंप दिया गया।
ED ने 18 जगहों पर की थी छापेमारी, पूर्व मुख्य सचिव से भी हुई पूछताछ
मध्यप्रदेश के बहुचर्चित ई टेंडर घोटाले (E tender scam) को लेकर ईडी (ED) की टीम ने भोपाल, बेंगलुरू और हैदराबाद में 18 स्थानों पर सर्चिंग की थी। इस घोटाले ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। ईडी की टीम मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव गोपाल रेड्डी के हैदराबाद स्थित बंजारा हिल्स वाले बंगले पर भी पहुंची थी और ईडी के अधिकारियों ने करीब 5 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक रेड्डी से पूछताछ की। ई- टेंडर घोटाले में हैदराबाद की दो कंपनियां मैक्स मेंटाना (Max Mentana) और माइक्रो जीवीपीआर इंजीनियर्स लिमिटेड (Micro GVPR Engineers Limited) के प्रमोटर गुंडलुरू वीरा शेखर रेड्डी का नाम भी ई टेंडर घोटाले में सामने आया है।
मेंटाना कंपनी से करोड़ों रुपए हवाला के तौर पर ट्रांसफर
आरोप हैं कि मेंटाना कंपनी से करोड़ों रुपए हवाला के तौर पर ट्रांसफर किए गए थे, जिसके तार पूर्व मुख्य सचिव गोपाल रेड्डी से जुड़ने के कारण ईडी ने उनसे पूछताछ की है। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इन सभी कंपनियों के खिलाफ ईओडब्ल्यू में मामला दर्ज किया था, जिसमें ऑस्मो आईटी सोल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड के संचालक विनय चौधरी, अरुण चतुर्वेदी और सुमित गोलवलकर, एमपीएसईडीसी के महाप्रबंधक एनके ब्रम्हे को जेल भी भेजा गया था। इस पूरे मामले में तत्कालीन जल संसाधन एवं वर्तमान गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के ओएसडी पर भी ईओडब्ल्यू (EOW)ने मामला दर्ज किया था।
नरोत्तम मिश्रा के निजी सचिव और ओएसडी भी आरोपी
बहुचर्चित ई-टेंडरिंग घोटाले ईओडब्ल्यू ने तत्कालीन जल संसाधन मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा के निजी सचिव वीरेंद्र पांडे और ओएसडी रहे निर्मल अवस्थी को हिरासत में लेकर दोनों का गिरफ्तारी पंचनामा बनाया गया था। जांच एजेंसी ने इन दोनों को अपने रडार पर रखा था। इनसे लगातार पूछताछ का सिलसिला चला था। दोनों को ईओडब्ल्यू ने पूछताछ के लिए बुलाया था। सूत्र बताते हैं कि गिरफ्तारी उस समय भी की जा सकती थी, लेकिन जांच एजेंसी ने अपना केस और पुख्ता बनाने के लिए जानबूझकर दोनों को छोड़ कर निगरानी में रखा। पांडे और अवस्थी हैदराबाद की मेसर्स मैक्स मेंटेना लिमिटेड कंपनी के सतत संपर्क में रहे। इन दोनों के घोटाले में शामिल अन्य कंपनियों से कनेक्शन बताए जाते थे। अब जबकि कोर्ट ने के एक बार फिर इस मामले को शुरू करने की हरी झंडी दे दी है तो साफ है कि पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें