BHOPAL. आश्वासनों के सहारे नेता सत्तासुख भोग रहे हैं और प्रदेश के हजारों अनुदेशक-पर्यवेक्षक 24 साल से बहाली का इंतजार कर रहे हैं। साल 2000 में गुरुजी और औपचारिकेत्तर शिक्षा के अनुदेशक-पर्यवेक्षकों को संविदा शिक्षक (वर्ग- 3) बनाने की तैयारी की गई। गुरुजियों के साथ अनुदेशक-पर्यवेक्षकों की परीक्षा ली गई, लेकिन सरकार की मंशा के विपरीत अफसरों ने यहां नियमों का पेंच अटका दिया। इस वजह से फेल होने के बावजूद गुरुजी तो संविदा शिक्षक बन गए, लेकिन 5216 अनुदेशक-पर्यवेक्षक नियुक्ति से वंचित रह गए। बीते 24 साल में ये हजारों लोग सरकार से लेकर हाईकोर्ट तक जा-जाकर बेहाल हो चुके हैं। हाईकोर्ट उनके पक्ष में फैसला दे चुका है, लेकिन सरकारी कारिंदे गाइड लाइन के पेंच अटकाते आ रहे हैं। धरना, प्रदर्शन, आंदोलन कर करके थकने और सरकार से लेकर न्यायालय के सामने गुहार लगाकर निराश अनुदेशक-पर्यवेक्षक अब भगवान से आस लगाए हैं। उन्हें भरोसा है सरकार भले अनदेखी करती आ रही है, लेकिन कभी तो ऊपर वाला उसे मजबूर करेगा।
अपात्र करने अफसरों ने बदली गाइडलाइन
वृद्धावस्था की दहलीज पर खड़े औपचारिकेत्तर शिक्षा के अनुदेशक-पर्यवेक्षक सरकार पर पक्षपात का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है अधिकारियों को तो शिक्षा विभाग में शामिल कर लिया गया, लेकिन उन्हें छोड़ दिया गया। 2008 में परीक्षा लेकर संविलियन करना था, लेकिन केवल गुरुजियों को वर्ग- 3 के रूप में नियुक्ति मिली और उन्हें फिर अधर में छोड़ दिया गया। इसके खिलाफ कुछ लोगों ने अपील की तो हाईकोर्ट के आदेश पर अफसरों ने केवल 9 लोगों को नियुक्ति देकर पल्ला झाड़ लिया। परीक्षा में अधिकांश गुरुजी फेल हुए थे तब भी उन्हें नियुक्ति दे दी जबकि अनुदेशकों को अनुत्तीर्ण बताकर बाहर कर दिया गया। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद दूसरे अनुदेशकों को नियुक्ति की पात्रता से वंचित करने अधिकारियों ने नियमों में बदलाव कर 2018 में नई गाइडलाइन लागू कर दी। अब अनुदेशकों के पत्राचार करने पर अधिकारी इस गाइडलाइन का हवाला देकर उनका मजाक उड़ा रहे हैं।
नियुक्ति के लिए 24 साल से चल रहा संघर्ष
औपचारिकेत्तर शिक्षा संघ के अनुदेशक/पर्यवेक्षक कमलेश गुप्ता, संजय राणा, सुधाकर मिश्रा, नंदकिशोर गुप्ता, राकेश कुमार ने बताया प्रदेश के साल 2000 में औपचारिकेत्तर केंद्रों को बंद करने की शुरुआत कर दी थी। गुरुजियों की तरह अनुदेशक-पर्यवेक्षकों के लिए पात्रता परीक्षा कराने का निर्णय लिया गया। परीक्षा में ऐसे अनुदेशक-पर्यवेक्षक शामिल हो सकते थे जिनके द्वारा अगस्त 2000 तक एक वर्ष नियमित अध्यापन कार्य किया गया हो। वहीं सरकार की ओर से साल में दो बार पात्रता परीक्षा का आयोजन कराई गई थी। इसके बाद सरकार ने वेतन देना बंद कर दिया था। अनदेखी के कारण अनुदेशक-पर्यवेक्षकों को हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी। मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन रहने के दौरान सरकार ने साल 2013 में कैबिनेट की बैठक में निर्णय लेकर पात्रता परीक्षा में फेल गुरुजियों को भी संविदा शिक्षक के रूप में शिक्षा विभाग में नियुक्ति दे दी। जबकि हाईकोर्ट द्वारा अनुदेशक-पर्यवेक्षकों को सहायक शिक्षकों के समान बताने पर भी सरकार ने उनका संविलियन नहीं किया।
पद रिक्त थे फिर भी की गई अनदेखी
साल 2000 तक प्रदेश के शिक्षा विभाग के स्कूलों के अलावा मप्र शिक्षा गारंटी परिषद की ईजीएस शालाएं और औपचारिकेत्तर शिक्षा कार्यक्रम के केंद्र संचालित थे। औपचारिकेत्तर शिक्षा कार्यक्रम के समापन के बाद केंद्र बंद हो गए। वहीं ईजीएस शालाओं को भी बंद कर दिया गया। ऐसे में इन पदों पर काम करने वाले हजारों शिक्षक बेरोजगार हो गए थे। वहीं इन शालाओं में पढ़ने वाले बच्चे शिक्षा विभाग के स्कूलों में भर्ती होने से वहां शिक्षकों की संख्या घट गई। इस वजह से स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति के प्रस्ताव विभाग को भेजे गए थे। इन प्रस्तावों के आधार पर ईजीएस के गुरुजियों के साथ ही औपचारिकेत्तर शिक्षा केंद्रों के अनुदेशकों को भी नियुक्ति दी जा सकती थी, लेकिन प्रदेश के शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने पद रिक्त होने के बाद भी रोड़े अटकाए और इस वजह से अनुदेशक नियुक्ति से वंचित रह गए।
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