मुरैना में पीएचई के ईई ने बिना सत्यापन किया भुगतान, अब होगी एफआईआर

मध्‍य प्रदेश के मुरैना में अधिकारी ठेकेदारों को फायदा पहुंचा रहे हैं। ईई एसएल बाथम पर आरोप है कि उन्होंने बिना सीआईपीईटी रिपोर्ट के सत्यापन के कई ठेकेदारों को करीब 30 लाख रुपए का भुगतान कर दिया।

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Ravi Singh
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BHOPAL : सरकारी योजनाओं में जमकर गोलमाल चल रहा है। अफसर ठेकेदारों को लाभ पहुंचा रहे हैं। ताजा मामला मुरैना जिले का है। यहां ईई के काम पर सवाल खड़े हुए हैं। अब ईई पर एफआईआर कराने के लिए पीएचई ग्वालियर के मुख्य अभियंता ने ईएनसी को चिट्ठी लिखकर अनुमति मांगी है।

मामला जल जीवन मिशन से जुड़ा है। मुरैना के ईई एसएल बाथम पर आरोप हैं कि उन्होंने बिना सीपेट ( CIPET ) रिपोर्ट के सत्यापन के कई ठेकेदारों को लगभग 30 लाख रुपए का भुगतान कराया है। ये भुगतान सत्यापन के बिना हुए हैं, जिसमें फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया है। इसे लेकर ग्वालियर परिक्षेत्र के मुख्य अभियंता आरएलएस मौर्य ने ईएनसी केके सोनगरिया को चिट्ठी लिखी है। इसमें उन्होंने ईई एसएल बाथम पर पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने की अनुमति मांगी है। 

पहले भी किया भुगतान

चिट्ठी में लिखा है कि पहले भी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी खण्ड मुरैना के कार्यपालन यंत्री बाथम ने दण्डोतिया कन्स्ट्रक्शन कम्पनी मुरैना को बिना सीपेट रिपोर्ट के सत्यापन के भुगतान किया है। ऐसी कई शिकायतें मिल रही हैं कि एसएल बाथम ठेकेदारों से सांठ-गांठ कर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ठेकेदारों को भुगतान करते रहे हैं।

ये है मामला...

मुरैना के ठेकेदारों ने केंद्रीय पेट्रो रसायन इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान का फर्जी सर्टिफिकेट भी तैयार कर दिया। इसके आधार पर ग्रामीण स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग मुरैना के अफसरों ने राशि का भुगतान भी कर दिया। गुपचुप तरीके से रिकवरी की तैयारी चल ही रही थी कि एक पत्र से पूरा मामला सामने आ गया। दिलचस्प बात ये है कि अफसरों ने केंद्रीय एजेंसी के फर्जी सर्टिफिकेट की बात सामने आने के बाद भी अब तक न तो ठेकेदारों के खिलाफ एफआइआर कराई है, न ही कंपनियों को ब्लैक लिस्टेड करने की कार्रवाई की है।

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क्वालिटी की जांच सीपेट से कराना होती है

दरअसल, जल जीवन मिशन में ग्रामीण इलाकों में पाइप लाइन बिछाने का काम किया जा रहा है। इसमें सामग्री की गुणवत्ता बनी रहे, इसलिए अच्छी कंपनियों के पाइप का इस्तेमाल करना होता है, जिसकी क्वालिटी की जांच केंद्रीय पेट्रो रसायन इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (सीपेट) से कराना होता है। इसके लिए सर्टिफिकेट का वेरिफिकेशन कराना ग्रामीण स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अफसरों की जिम्मेदारी होती है, इसके बाद ही भुगतान किया जाता है।

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