ENT सर्जन डॉक्टर की संस्था में राजनीति, 3 डॉक्टर्स पर FIR कराने वाले संस्था के प्रेसीडेंट और सचिव पद पर ही नहीं

द सूत्र ने केस होने की न्यूज ब्रेक की और इसके बाद जब इसमें और जानकारी निकाली तो कई पर्तें खुलीं। सबसे अहम यह है कि जिन्होंने एफआईआर कराई वह तो संस्था के प्रेसीडेंट और सचिव हैं ही नहीं। दूसरा अहम यह कि संस्था ही रजिस्टर्ड नहीं है।

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Sandeep Kumar
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संजय गुप्ता @ INDORE. इंदौर में तीन जाने-माने ENT सर्जन पर हुई 420 और 406 में FIR मामले में संस्था में डॉक्टरों की आपसी राजनीति का एक अहम रोल रहा है। द सूत्र ने केस होने की न्यूज ब्रेक की और इसके बाद जब इसमें और जानकारी निकाली तो कई पर्तें खुली। सबसे अहम यह है कि जिन्होंने एफआईआर कराई वह तो संस्था के प्रेसीडेंट और सचिव है ही नहीं। दूसरा अहम कि संस्था ही रजिस्टर्ड नहीं है।

पहले देखते हैं मामला क्या है? 

थाना तिलकनगर में आवेदक डॉ. प्रकाश तारे, डॉ. राहिल निदान की शिकायत पर डॉक्टर शैलेंद्र ओहरी, डॉ. विशाल मुंजाल और डॉक्टर संजय अग्रवाल पर केस हुआ है। पुलिस ने तीनों डॉक्टर पर धारा 420 व 406 में केस किया है। घटना 4 जनवरी 2018 की है। 

यह है शिकायत में

एफआईआर में है कि साल 2017-18 में ईएनटी सर्जन संस्था ( एसोसिएशन ऑफ ऑटो लेरिंगोलाजिस्ट ऑफ इंडिया इंदौर चेप्टर ) के पदाधिकारी अध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र ओहरी, सचिव डॉ. विशाल मुंजाल थे। इन्होंने इस दौरान डॉक्टर संजय अग्रवाल के साथ मिलकर राष्ट्रीय कांफ्रेंस AOICON का आयोजन किया था। जो 2018 में ब्रिलियंट कनवेंशन सेंटर में हुई। इन्होंने आयोजन के लिए राशि एकत्र की और अलग खाते में रखी। इसमें 6.17 करोड़ रुपए जमा किए औऱ् 3.46 करोड़ व्यय किए लेकिन 2.71 करोड़ का हिसाब नहीं मिला। बाद में खाते बंद करा दिए गए। यह एफआईआर डॉ. तारे और डॉ. निदान द्वारा कोर्ट में दायर किए गए परिवाद के आधार पर कोर्ट में हुए फैसले पर हुई है। 

अब इस घटना के पीछे की राजनीति देखते हैं

ईएनटी की संस्था में डॉ. तारे औऱ् डॉ. निदान साल 2020 में संस्था के प्रेसीडेंट और सचिव चुने गए। इसी दौरान यह विवाद उठा। संस्था में प्रेसीडेंट और सचिव का पद एक साल का ही होता है, नए प्रेसीडेंट और सचिव चुनकर 2021 में उन्हें पद हैंडओवर होना था लेकिन यह नहीं किया गया। इसमें बात यह कही गई कि अभी तक उस 2.71 करोड़ रुपए का हिसाब नहीं मिला है और ऑडिट रिपोर्ट नहीं आई है। इसके बाद से ही संस्था में दो गुट बन गए। एक गुट में डॉ. तारे, डॉ. निदान, डॉ. अजय चौरड़िया, डॉ. अनंत सिंघई व अन्य शामिल थे, इस गुट में करीब दस-15 डॉक्टर है तो वहीं दूसरे गुट में 70 से ज्यादा है। संस्था में कुल डॉक्टर ही करीब 90 है। 

विवाद ने चौरड़िया के निष्कासन के बाद पकड़ा तूल

इसी बीच संस्था ने इस गुट के डॉ. चौरड़िया को विवादों के चलते बाहर करने का आदेश जारी कर दिया। इसके बाद इस गुट ने इस 2.71 करोड़ के मुद्दे को हवा देना शुरू किया। इसमें पुलिस में शिकायत भी की और जब वहां से इसका हल नहीं निकला तो डॉ. तारे और डॉ. निदान को प्रेसीडेंट और सचिव बताते हुए कोर्ट में परिवाद दायर कर दिया गया।

पुलिस तो पहले ही क्लीन चिट दे चुकी

डॉ. तारे और डॉ. निदान द्वारा पुलिस में की गई धोखाधड़ी की शिकायत को लेकर पुलिस जुलाई 2023 में ही जांच पूरी कर चुकी है। तिलकनगर टीआई द्वारा की गई जांच के आधार पर तत्कालीन एसीपी जयंत सिंह राठौर ने, डीसीपी को इस बारे में पत्र लिखकर रिपोर्ट दी थी। इसमें बताया गया है  कि आवेदकों से मिले आवेदन की जांच की गई, लेकिन आवेदन के समय यह पदाधिकारी संस्था की ओर से सक्षम प्राधिकारी नहीं थे। यदि होते तो भी यह मामला पुलिस के हस्तक्षेप का नहीं है। इसमें ईएनटी विभाग या चिकित्सा विभाग से ही जांच किया जाना उचित प्रतीत होता है। आवेदन की जांच से संबंधितों के खिलाफ कोई संज्ञेय अपराध का कृत्य प्रतीत नहीं होता है।

खुद शिकायत करने वाले प्रेसीडेंट डॉ. तारे बोले बेवजह फंस गया

इस मामले में शिकायत करने वाले डॉ. तारे और डॉ. निदान दोनों को द सूत्र ने फोन लगाया। डॉ. निदान ने फोन नहीं उठाया वहीं डॉ. तारे ने कहा कि मैं कहां इन सबके चक्कर में फंस गया। मेरा इनसे कोई लेना-देना नहीं है, मुझे तो इन सभी ने बोला आप प्रेसीडेंट हो इसलिए हस्ताक्षर लगेंगे और मुझसे निदान, सिंघई, चौरडिया इन सभी एक्जीक्यूटिव कमेटी ने साइन करा लिए। मैं तो 2020 में एक साल के लिए प्रेसीडेंट बना था। ऑडिट नहीं होने के कारण बताया गया कि जो चुनाव हुए वह गलत है और पद पर आप ही बने हुए हैं। 

वर्तमान प्रेसीडेंट क्या बोल रहे हैं?

बीते साल इस संस्था के लिए प्रेसीडेंट पद पर डॉ. धीरेंद्र सिंह चौहान और सचिव पद के लिए डॉ. नवनीत जैन को चुना गया था, लेकिन आज तक पद हैंडओवर ही नहीं हुए। डॉ. चौहान ने द सूत्र को बताया कि हमे अभी तक पद हैंडओवर नहीं किए गए हैं, ऑफिशयली तो मैं प्रेसीडेंट हूं। उन्होंने ही अपने स्तर पर पुलिस और कोर्ट में केस लगाया। हमारे कहीं पर भी हस्ताक्षर नहीं है।

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