Lok Sabha Elections
BHOPAL. आम चुनाव से पहले ऐसा बहुत कुछ है जो भारत की राजनीति में पहली बार हो रहा है। ठीक वैसे ही जैसे मेरी आपकी और हम सबकी जिंदगी में होता रहा है। लाइफ में कुछ नया करने की कोशिश करना हो तो एक फलसफा हमेशा याद आता है कि कुछ न कुछ तो पहली बार ट्राय करना है। अंग्रेजी में कहते हैं देयर इज ऑलवेज अ फर्स्ट टाइम। जिंदगी के लिए सबसे प्रैक्टिकल-सी सुनाई देने वाली ये लाइन अब इंडियन पॉलिटिक्स पर भी एकदम मौजू नजर आ रही है, क्योंकि इस बार जो राजनीतिक घटनाक्रम हो रहे हैं। वो पहली बार हो रहे हैं। इसके बाद कभी होंगे या नहीं ये भी कहा नहीं जा सकता।
नया इतिहास रच रहा लोकसभा चुनाव
भारत का राजनीतिक इतिहास बहुत पुराना है। 1947 में आजादी मिलने के बाद सरकार बनने तक राजनीति में बहुत उतार-चढ़ाव आए। कभी भूचाल आया तो कभी सियासी हवाएं बवंडर बनकर देशभर में छाईं। इसी देश ने इमरजेंसी का दौर देखा है तो जेपी आंदोलन का उबाल भी देखा है। इसके बाद से देश की राजनीति में ठहराव-सा आया। कुछ नए दल बने कुछ पुराने बिगड़े। कभी-कभी दलबदल भी हुए और सरकारें भी बदलीं। इतने साल गुजरने के बाद देश की राजनीति ने ये अहसास जरूर करवा दिया कि अब जो बदलाव आने थे, जो एक्सपेरिमेंट होने थे, वो हो चुके हैं। अब कोई इतिहास रचा जाने वाला नहीं है, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव नया इतिहास रच रहे हैं। ऐसा बहुत कुछ है जो इस चुनाव में पहली बार होने जा रहा है।
सलाखों के पीछे आम आदमी पार्टी का सबसे खास आदमी
पहली पहली बार के ये किस्से इस आम चुनाव को आम से खास बना रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे आम आदमी पार्टी का सबसे खास आदमी सलाखों के पीछे बंद है। सबसे ज्यादा पहली बार के वाकये उसी खास आदमी के साथ घट रहे हैं। इस आम चुनाव से पहले, पहली दफा किसी पदासीन मुख्यमंत्री की घोटाले के आरोप में और वो भी देश में आदर्श आचार संहिता लागू रहते गिरफ्तारी हुई है। इतना ही नहीं खुद को बेकसूर मानने वाले और फिलहाल ED की हिरासत में एक मुख्यमंत्री ने जेल से कार्यकारी आदेश जारी किया है। पहली बार किसी राजनीतिक पार्टी ने देश की राष्ट्रपति के खिलाफ याचिका दायर की है तो संभवत: पहली बार कोई प्रधानमंत्री आचार संहिता लागू रहते ही विदेश यात्रा पर गया है, तो पहली दफा आचार संहिता लागू रहते किसी राज्य में मंत्रिमंडल का विस्तार भी हो गया है।
कांग्रेस की गुहार
ये भी पहली बार ही हुआ है कि एक राज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद एक मंत्री को पद की शपथ दिलाई है तो पहली दफा ही देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी यानी कांग्रेस ने ये गुहार लगाई है कि सत्तारूढ़ बीजेपी ने उसके खाते सील कर दिए हैं। अब हालात ये हैं कि पार्टी के पास प्रचार तक के पैसे नहीं हैं। पहली बार आचार संहिता के दौरान भी ED, CBI के विपक्षी नेताओं पर छापे जारी हैं। पहली बार घोड़ा और घास की यारी की तर्ज पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ हैं। पहली दफा विपक्ष के मन में यह डर है कि यह आम चुनाव कहीं आखिरी साबित न हों। वहीं पहली बार मतदाताओं के मन में भी यह शंका कुलबुला रही है कि भविष्य में विपक्ष ही नहीं बचा तो सरकार चुनने का अर्थ क्या रह जाएगा ?
पहली बार AI का इस्तेमाल
सिर्फ राजनीतिक स्तर पर ही नहीं तकनीक के स्तर पर भी बहुत कुछ ऐसा हो जो इस चुनाव में पहली बार ही हो रहा है। सोशल मीडिया का उपयोग तो अमेरिका से लेकर भारत तक के चुनाव में होता रहा है, लेकिन पहली बार AI का भी उपयोग हो रहा है। डीप फेक के जरिए जनमानस बनाया बिगाड़ा जा सकता है तो अकाउंट हैक करके भी चुनावी फिजा को बदला जा सकता है। ताजा मामला कंगना रनौत और सुप्रिया श्रीनेत का ही है, जिस पर भरपूर सियासी बवाल हुआ। फिल्मों से पहले कंट्रोवर्सी कर हिट होने वाली कंगना रनौत सियासी पटल भी उसी कंट्रोवर्सी के सहारे सुर्खियां बटोरने में कामयाब रहीं। पहली बार का सिलसिला इतने पर ही खत्म नहीं होता।
परिवारवादी नेतृत्व और व्यक्तिवादी नेतृत्व में सीधा मुकाबला
ये भी पहली बार हो रहा है कि परिवारवादी नेतृत्व और व्यक्तिवादी नेतृत्व में सीधा मुकाबला नजर आ रहा हो। तो यह पहली बार है कि एक सत्तारूढ़ गठबंधन जीत के प्रति आश्वस्त होने के बाद भी बंपर जीत के लिए रोज एक नई कोशिश कर रहा है। गोया समूचा परिदृश्य ‘न भूतो’ जैसा है ‘भविष्यति’ होगा या नहीं, कहना मुश्किल है। इसके पहले 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में ऐसी स्थिति बनी थी, ‘जब करो या मरो’ की भावना के साथ विपक्ष एकजुट हुआ था और उसने इंदिरा गांधी की अजेय समझी जाने वाली सत्ता को उलट दिया था। ये अलग बात है कि विपक्ष की वो एकता सतही थी। इस बार कांग्रेस खुद एक गठबंधन का हिस्सा बनी है। कुछ ऐसे दल साथ हैं जो शायद पहली बार ही गठबंधन में कांग्रेस का साथ दे रहे हैं, लेकिन ये गठबंधन तो उस पुराने गठबंधन से भी ज्यादा सतही साबित हो रहा है। जहां दल ED-CBI के डर से या राजनीतिक हितों को साधने के लिए गठबंधन की गांठ को आसानी से खोलकर अलग हो रहे हैं।
आजादी के बाद सबसे कमजोर स्थिति में कांग्रेस
ये भी पहली ही बार है कि कांग्रेस आजादी के बाद सबसे कमजोर स्थिति में है और गांधी परिवार के सदस्यों को सड़क पर उतरकर पहचान बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। ये भी पहली बार है जब देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी और सत्तारूढ़ दल सिर्फ एक चेहरे के बूते चुनाव लड़ने निकला है। एक शख्सियत के सामने पूरी पार्टी के खुद के गुम जाने का खतरा है।
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मध्यप्रदेश में भी बहुत कुछ पहली बार
देश की बात के बाद अब बात करते हैं सिर्फ मध्यप्रदेश की। मध्यप्रदेश का चुनावी इतिहास भी बहुत कुछ पहली बार देखने वाला है। ऐसा भी बहत कुछ हो सकता है जो प्रदेश का चुनावी इतिहास पहली बार ही देखे। मसलन इस चुनाव में पहली बार ऐसा होगा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी के टिकट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। वैसे पिछले चुनाव में उनका हारना भी पहली बार ही रचा गया इतिहास था।
लोकसभा चुनाव से पहले बड़ी संख्या में नेताओं का दलबदल पहली बार देखा जा रहा है। खासतौर से मध्यप्रदेश में तो यही छवि भी गढ़ दी गई है कि नेता बिना किसी स्वार्थ के कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आ रहे हैं। संजय शुक्ला, पंकज संघवी, सुरैश पचौरी जैसे तमाम नाम है जो कांग्रेस से भाजपाई हो गए, जिन्हें टिकट भी नहीं मिला। ये स्वतः उस पार्टी के खिलाफ प्रचार करने और बयान देने को भी तैयार है जिसमें रहकर सालों तक सत्ता का सुख भी भोगा है।
ये भी पहली बार है कि जब बीजेपी के पास प्रदेश की 29 में से 28 सीटें हैं। उसके बावजूद बीजेपी साम दाम दंड भेद का हर तरीका अपना रही है। ये भी तो पहली ही बार है कि वो एक सीट जो बीजेपी की मुट्ठी से अब भी दूर है उसके लिए पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है। अब अगर ऐसा होता है कि मध्यप्रदेश में बीजेपी सारी सीटें जीत लेती है तो ये भी प्रदेश के इतिहास में पहली ही बार होगा कि कांग्रेस का वजूद ही इस लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश से मिट जाए।
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