एमपी में सामने आया एनवायरनमेंट क्लीयरेंस घोटाला, SEIAA की बैठक के बिना ही 450 प्रोजेक्ट को मिली मंज़ूरी

मध्य प्रदेश में उद्योगों को पर्यावरण मंजूरी देने में घोटाला सामने आया है, जहां बिना बैठक और वैध प्रक्रिया के 450 परियोजनाओं को डीम्ड अनुमति दे दी गई।

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Abhilasha Saksena Chakraborty
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Environment scam in MP
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MP News: मध्य प्रदेश में उद्योग स्थापित करने के लिए पर्यावरणीय अनुमति (Environment clearance) देने में बड़ा घोटाला सामने आया है। इसने सरकार की कामों में पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 

सरकारी दस्तावेजों और सूत्रों के अनुसार, 450 से अधिक परियोजनाओं को बिना बैठक के  डीम्ड अनुमति (Deemed Permission) प्रदान कर दी गई। पर्यावरणीय कानूनों को ताक पर रखकर करोड़ों के प्रोजेक्ट पास कर दिये गए हैं। राज्य के पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत कोठारी ने इन परियोजनाओं की संस्तुतियां मंजूर कीं, जबकि उन्हें इसका अधिकार नहीं था। यह प्रक्रिया राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) की मंजूरी के बिना की गई, जो नियमों का खुला उल्लंघन है।

बिना बैठक के कैसे हुआ काम 

  • SEIAA का गठन इस वर्ष 7 जनवरी को हुआ था।
  • अध्यक्ष एस.एन. सिंह चौहान और सदस्य सुनंदा रघुवंशी को नियुक्त किया गया।
  • 45 दिनों में बैठक नहीं होने पर डीम्ड परमिशन का प्रावधान है।
  • इसी का फायदा उठाकर खनन, निर्माण और औद्योगिक परियोजनाओं को हरी झंडी दे दी गई।

डीम्ड परमिशन क्या है?

यदि 45 दिनों में SEIAA बैठक नहीं करती है, तो संबंधित परियोजना को स्वचालित अनुमति मिल जाती है। यह प्रावधान अक्सर प्रक्रिया को बायपास करने के लिए दुरुपयोग होता है।

कानूनी कार्रवाई की मांग

पर्यावरण कार्यकर्ता अजय दुबे ने इसे एक आपराधिक कृत्य बताया है और कहा है कि वे इस मामले (scam) की शिकायत केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय से करेंगे। उनके मुताबिक- यह पर्यावरण कानूनों की सीधी अवहेलना है, जिसमें अधिकारियों ने जानबूझकर बैठक नहीं की ताकि उद्योगों को अनुचित लाभ मिल सके।

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पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत सजा

धारा 15 के अंतर्गत:
5 साल की जेल
₹1 लाख तक का जुर्माना
यह अधिनियम हरित नियमों के उल्लंघन को दंडनीय बनाता है।

स्वतंत्र इकाई है SEIAA

राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) एक स्वतंत्र निकाय है। यह केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना के ज़रिए गठित होता है, लेकिन राज्य सरकार इसके कर्मचारियों को सुविधा देती है। इसका मतलब है कि यह तकनीकी रूप से सरकार के सीधे नियंत्रण में नहीं होता, जिससे गड़बड़ियों की संभावना बढ़ जाती है।

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