भोपाल. EWS आरक्षण को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट ( Jabalpur High Court ) का बड़ा फैसला आया है। हाईकोर्ट अधिवक्ता रामेश्वर लोधी ने इस संबंध में बताया कि हाईकोर्ट के अनुसार अनारक्षित पदों में से ही EWS के लिए आरक्षण किया जाएगा। रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह के अनुसार कोर्ट का यह फैसला पुरानी भर्तियों पर भी लागू होगा। फैसले के दायरे में आने वाली नियुक्तियों को या तो निरस्त किया जाएगा या फिर उन्हें आने वाली नियुक्तियों में एडजस्ट किया जाएगा।
ईडब्ल्यूएस आरक्षण की व्याख्या
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण ( EWS Reservation ) के लागू किए जाने के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 15(6) तथा 16(6) की अहम् व्याख्या की है। इसमें कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई है।। EWS आरक्षण के लाभ से ओबीसी /एससी /एसटी वर्ग को बाहर रखा गया है। इसके बाद भी कुल विज्ञापित पदों में से 10% पद EWS के लिए आरक्षित किया जाना संविधान के अनुच्छेद 16(6) के प्रावधान से असंगत है। उक्त अनुच्छेद की मूल भावना के अनुसार कुल विज्ञापित पदों में ओबीसी /SC /ST को आरक्षित पदों को छोड़कर शेष अनारक्षित पदों में से EWS को 10% पद आरक्षित होना चाहिए।
उदाहरण के लिए यदि किसी भी पद के रिक्त 100 पोस्ट को भरे जाने के लिए विज्ञापन जारी किया जाता है, जिसमे 16 पद SC को, 20 पद ST को तथा 27 पद ओबीसी वर्ग को आरक्षित होते हैं। इसके बाद शेष 37 पद अनारक्षित यानी ओपन कैटेगरी में होंगे। इस प्रकार कुल 100 पद हुए संबंधित विभाग के। नई व्यवस्था के अनुसार 37 अनारक्षित पदों में से 10% अर्थात 4 पद EWS को आरक्षित होंगे। 33+4= 37।
मध्य प्रदेश सरकार क्या कर रही थी
मध्य प्रदेश शासन के सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से 19 दिसंबर 2019 को गलत रोस्टर जारी करके EWS को कुल पदों का 10 फीसदी यानी 100 पदों की भर्ती पर 10 पद EWS के लिए आरक्षित किए गए थे। यह व्यवस्था साल 2019 से चली आ रही थी। इसमें लाखों पदों पर गलत नियुक्तियां दे दी गई हैं।
आरक्षण मामालों मे मध्य प्रदेश सरकार के विशेष अधिवक्ता अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ( Advocate Advocate Rameshwar Singh Thakur ) व अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह ( Advocate Vinayak Prasad Shah ) का कहना है कि EWS आरक्षण को लागू किए जाने में की जा रही व्यापक पैमाने पर अनियमितताओं के संबंध में हाईकोर्ट में अनेक याचिकाएं दायर की गई थीं। हाईकोर्ट ने समस्त भर्तियों को उक्त याचिकाओं के निर्णय के अधीन करते हुए यह फैसला दिया है।