मध्य प्रदेश में अफसरों के खिलाफ गुमनाम शिकायतों की फाइलें होंगी बंद?

सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी ने सभी विभागों को 25 अप्रैल 2007 का एक सर्कुलर भेजा है, जिसमें सभी दफ्तरों में भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतों पर नियंत्रण की व्यवस्था का जिक्र है।

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Deeksha Nandini Mehra
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Anonymous complaint against officers

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Anonymous Complaint Against officers : मध्य प्रदेश में अफसरों के खिलाफ गुमनाम शिकायतों की फाइलें बंद होंगी। यदि शिकायत नामजद भी है और जांच के दौरान शिकायतकर्ता बुलाने पर नहीं आता या बताए गए पते पर नहीं मिलता, तब भी शिकायतों पर कोई सुनवाई नहीं होगी। सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी ने सभी विभागों को दो दिन पहले यह ताकीद की है। इसके साथ 25 अप्रैल 2007 का एक सर्कुलर भी भेजा गया है, जिसमें सभी दफ्तरों में भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतों पर नियंत्रण की व्यवस्था का जिक्र है। हालांकि, अब सवाल उठ रहे हैं कि ऐसे में अफसरों की शिकायत कौन करेगा।

तत्कालीन शिवराज सरकार में हुए ‘मंथन 2007’ के बाद गुमनाम शिकायतें बंद करने की व्यवस्था बनी थी। बहरहाल, इस व्यवस्था को पूरी तरह लागू करने के लिए वर्ष 2014 में भी प्रयास हुए थे। तब भी एक निर्देश विभागों को भेजा गया लेकिन इसके बाद भी सरकारी महकमों में बैठे सीनियर अधिकारियों के खिलाफ सैकड़ों की संख्या में गुमनाम शिकायतों का आना नहीं रुका। मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि वर्तमान में भी ऐसी शिकायतों की संख्या ज्यादा है। कुछ विभाग इन्हें कार्यवाही की प्रक्रिया में ले रहे हैं। इसीलिए जीएडी ने ताजा निर्देश जारी कर कहा है कि कड़ाई से इसका पालन हो।

बड़े अफसर की खुलकर शिकायत कौन करेगा?

जीएडी के इस सर्कुलर से बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि छोटा या अधीनस्थ कर्मचारी अपने सीनियर अफसर की खुलकर शिकायत कैसे करेगा, क्योंकि बाद में उसे नुकसान हो सकता है। पूर्व मुख्य सचिव एससी बेहार भी जीएडी के ताजा सर्कुलर को गलत मानते हैं। उनका कहना है कि एकदम से शिकायत बंद नहीं हो सकती। कुछ व्हीसिल ब्लोअर अपना नाम नहीं देना चाहते। उन्हें खतरा होता है। वर्ष 1965 की बात है, जीएडी में अंडर सैक्रेटरी बन कर आया था, तब बेनामी या झूठे नाम से शिकायतों का वैरीफिकेशन होता था। सतही आरोप हैं तो उसे नस्तीबद्ध कर देते थे।

यदि ठोस शिकायत है तो उसकी जांच होती थी। दरअसल, शिकायत के बाद विधानसभा में सवाल उठने पर यह जवाब दिया जाता था कि जांच चल रही है। इससे अफसर दोषी नहीं है तो भी बदनामी होती थी। इस विवाद के बाद ही सर्कुलर बदल दिए गए। ताजा हालात में तो यह होना चाहिए कि ठोस शिकायत है तो उसकी जांच होने तक उसे शिकायतों की सूची में न माना जाए। जांच में तथ्य मिलते हैं तो फिर आगे की कार्यवाही हो।

2022 में जारी केंद्र के नियम अलग

गुमनाम शिकायतों पर कार्रवाई भले न हो, लेकिन उसे दर्ज किया जाए। अस्पष्ट आरोपों वाली शिकायतें शिकायतकर्ता की पहचान के सत्यापन के बिना भी दर्ज की जा सकती हैं। यदि किसी शिकायत में सत्यापन योग्य आरोप शामिल हैं, तो प्रशासनिक मंत्रालय, विभाग सक्षम अधिकारी से मंजूरी लेकर शिकायत का संज्ञान लिया जा सकता है। फिर शिकायतकर्ता से 15 दिन में प्रतिक्रिया ली जाए। रिमाइंडर देकर पंद्रह दिन की मोहलत और दी जाए। फिर नाम से शिकायत दर्ज की जाए।

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