वन विभाग में बम्पर भर्ती के इंतजार में युवा, अफसरों को फिक्र ही नहीं

मध्यप्रदेश का वन विभाग बीते कई साल से मैदानी अमले की कमी से जूझ रहा है, जबकि प्रदेश में लगातार टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्कों की संख्या में इजाफा हुआ है। इसके बाद भी वन विभाग और सरकार अमले की कमी को पूरा करने की ओर ध्यान नहीं दे रहा...

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. एक ओर प्रदेश के युवा तैयारियों के बावजूद सरकारी नौकरियों का इंतजार कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर सरकार है कि हजारों पद रिक्त पड़े होने के बावजूद भर्ती नहीं निकाल रही है। अकेले वन विभाग में ही साढ़े 7 हजार पद खाली हैं और मैदानी अमला न होने से महकमे के मूल काम प्रभावित हो रहे हैं। जंगलों में अवैध कटाई तो रुक ही नहीं रही, वन्यजीवों के संरक्षण पर भी सवाल उठ रहे हैं। खाली पदों पर नई भर्ती करने के प्रति विभाग का उदासीन रवैया रोजगार के अवसर और वनसंरक्षण में बाधक बना हुआ है। 

7 हजार पद खाली, भर्ती चौथाई से भी कम

वन विभाग बीते कई साल से मैदानी अमले की कमी से जूझ रहा है, जबकि प्रदेश में लगातार टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्कों की संख्या में इजाफा हुआ है। बीते सालों में प्रदेश के हिस्से में कूनो में अफ्रीकन चीतों की बसाहट के अलावा एक नए टाइगर रिजर्व की उपलब्धि भी आई है। इसके बाद भी वन विभाग और सरकार मैदानी अमले की कमी को पूरा करने की ओर ध्यान नहीं दे रही है। इस वजह से हर साल सेवानिवृत्ति के कारण नियमित कर्मचारियों की संख्या काफी कम हो गई है। फिलहाल महकमे में राजपत्रित अधिकारियों से लेकर मैदानी अमले में 7 हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। इनमें सबसे ज्यादा 2124 पद वनरक्षक, 2081 पद वनपाल, 900 पद डिप्टी रेंजर, 500 पद रेंजर के रिक्त हैं। इस मैदानी अमले के अलावा कार्यालयों में भी एक हजार से ज्यादा कर्मचारी, और 400 से ज्यादा महावत, ड्राइवर और अन्य कर्मचारियों का भी टोटा है। 

साल भर बाद भी नियुक्ति का इंतजार

वन विभाग द्वारा रिक्त पदों पर भर्ती नहीं निकालने से जंगलों और वन्यजीवों की सुरक्षा का भार सीमित कर्मचारियों के ऊपर है। इस वजह से उन्हें अपने दायित्व के अलावा दोहरे-तिहरे काम करने पड़ रहे हैं। महकमे में मैदानी अमले की कमी के लिए बीते साल केवल 1400 भर्तियां निकाली गई थीं, लेकिन अभी इस भर्ती प्रक्रिया को पूरा नहीं किया जा सका है। इस वजह से नियुक्ति भी नहीं दी गई है और परीक्षा और अपनी योग्यता साबित करने वाले अभ्यर्थी अब भी बेरोजगार ही भटक रहे हैं। इसके अलावा जो 7 हजार पद खाली पड़े हैं उन्हें भरने की बात भी विभाग कर रहा है लेकिन अब तक इसके लिए किसी भी स्तर पर कार्रवाई शुरू तक नहीं हो पाई है। खाली पद होने और उन पर काम करने के लिए प्रदेश में योग्य और दक्ष युवाओं की भरपूर संख्या है। लाखों युवा इन पदों पर भर्ती का इंतजार करते हुए बीते दो-तीन साल से मेहनत कर रहे हैं। वहीं नियमित भर्ती नहीं निकलने के कारण हजारों युवा तो ओवरएज हो चुके हैं।

10 साल से भर्ती के नाम पर रस्मअदायगी

वन विभाग के पास जंगलों की सुरक्षा के साथ ही वन्यजीवों के संरक्षण का भी भार है। अब प्रदेश में सात टाइगर रिजर्व के साथ ही दो दर्जन से ज्यादा नेशनल पार्क और अभयारण्य हैं। लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त क्षेत्रपाल, वनपाल और वन रक्षक ही नहीं हैं। विभाग बीते कई सालों से मैदानी अमले की कमी की पूर्ति के लिए केवल रस्मअदायगी ही करता आ रहा है। दो साल पहले जितने पद रिक्त थे उनके विरुद्ध बीते साल केवल 1400 ही भर्ती निकाली गईं। वहीं दो साल में 500 से ज्यादा वनकर्मी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। यानी यह भर्ती कमी को पूरा नहीं कर पाई है। इस वजह से युवाओं को वन विभाग द्वारा बम्पर भर्ती निकालने की उम्मीद है लेकिन अब तक विभाग ने भर्ती प्रक्रिया को लेकर कोई काम आगे नहीं बढ़ाया है। 

टाइगर रिजर्व की निगरानी भी नाकाफी

प्रदेश के बीते 10 सालों में वन विभाग तीन से चार बार ही भर्ती निकाल पाया है लेकिन इसमें भी कभी वनरक्षकों के पद नाकाफी रहे हैं तो कभी केवल उच्च पदों पर नियुक्ति की गई है। इस वजह से साल बीतने के साथ विभाग में कर्मचारियों की कमी की खाई गहराती जा रही है। इससे वनरक्षक, वनपाल जैसी विभागीय सेवा के लिए खुद को तैयार करने वाले युवाओं को निराशा घेर रही है। वहीं इसका खामियाजा विभागीय स्तर पर भी हो रहा है। वनकर्मियों की पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण जंगलों में अवैध कटाई और वन्यजीवों के संरक्षण का काम भी मुस्तैदी से नहीं हो पा रहा है। बीते सालों में प्रदेश के टाइगर रिजर्वों में बाघों की मौत की घटनाओं ने भी विभाग के वन्यजीव संरक्षण के दावों की हवा निकाल दी है। मैदानी अमला न होने से टाइगर रिजर्वों में भी निगरानी के नाम पर केवल खानापूर्ति ही हो रही है। अगर बात करें तो लगभग हर टाइगर रिजर्व में वनरक्षक, वनपाल और डिप्टी रेंजरों की तैनाती स्वीकृत पदों के मुकाबले 30  फीसदी कम है। वहीं बाघों की निगरानी में सबसे अहम हाथियों को काबू करने वाले महावतों की संख्या भी नाममात्र रह गई है। यानी वन विभाग की नई भर्तियों के प्रति गहरी उदासीनता वन्यजीव और जंगलों की सुरक्षा का खतरा भी बढ़ा रही है।

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