अजय बोकिल @ भोपाल
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डाॅ. मोहन यादव के कार्यकाल के आठ माह राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों से जूझने के साथ साथ कई दूरगामी फैसलों से भरे हैं। इन आठ महीनों में डाॅ.मोहन यादव ने जहां मोदी की गारंटियों को पूरा करने में पूरी ताकत झोंकी है, वहीं बतौर मुख्यमंत्री अपने पूर्ववर्ती शिवराज सिंह चौहान की छाया से बाहर निकलकर खुद की अलग छवि गढ़ने का भी भरपूर प्रयास किया है। जहां उन्होंने एक तरफ शिवराज सरकार के कुछ फैसलों को कायम रखा है तो दूसरी तरफ तीन बड़े फैसले पलटने का साहस भी दिखाया है।
गर्भकाल …
मोहन यादव सरकार के नौ माह और आपका आंकलन…
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शिवराज ने लोगों से निजी रिश्ता बनाकर अपनी अलग राजनीतिक छवि तैयार की थी। वो लोकप्रिय मुख्यमंत्री होने के साथ बच्चों के ‘मामा’ भी थे। इसी के बरक्स मोहन यादव भी स्वयं को ‘भैया’ मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित करने में लगे हैं। हालांकि यह अभी शुरुआत है और मुख्यमंत्री की हैसियत से उन्हें अभी और मंजिलों को पार करना है, लेकिन मोहन यादव ने अपनी कारकिर्दगी के मंगलाचरण में ही कुछ बड़े शाॅट खेल दिए हैं। कोशिश यही है कि वो भी लंबे समय तक राज्य की ड्राइविंग सीट पर बने रहें। उन पर आला कमान का वरदहस्त है ही। संघ भी उनकी कार्यशैली से मुतमइन लगता है।
अहम बात यह है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मुख्यमंत्री के तौर पर अपना सिक्का जमाने के लिए भूमिका बनाने में वक्त नहीं गंवाया। यानी खेल के शुरूआती ओवर्स में ही उन्होंने टी-20 की तरह बल्लेबाजी कर नौकरशाही को यह संदेश दे दिया कि राज्य में निजाम बदल चुका है और जरा सी गलती अथवा सरकार की नापसंदगी पर उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ेगी। सुशासन और जनता की सुविधा मोहन यादव की प्राथमिकता है। इसकी अनदेखी करने वाले अफसरों को मलाईदार पदों से लूप लाइन में भेजने में दो मिनट भी नहीं लगेगा। इसकी शुरुआत उनके सीएम पद संभालने के कुछ दिनों बाद ही गुना में हुए बस हादसे में सीएमओ, आरटीओ को सस्पेंड करने से लेकर परिवहन आयुक्त तक को हटाने से हो गई थी। संदेश साफ था कि लापरवाही हुई तो जिम्मेदारी तय होगी। अधिकारियों पर समय-समय पर गाज गिरने का यह सिलसिला जारी है। इसके अलावा सीएम यादव शिवराज के जमाने में बने अफसरों के काकस को तोड़ने में भी काफी हद तक कामयाब रहे हैं, हालांकि नौकरशाहों की उनकी अपनी कोर टीम अभी पूरी तरह आकार नहीं ले पाई है।
सीएम यादव शुरुआती दो माह एक्शन, रिएक्शन और क्रिएशन से भरपूर थे। इनमें पलटे गए फैसलों में पहला तो भोपाल में बीआरटीएस खत्म करना, दूसरे अवैध काॅलोनियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए विधेयक लाना तथा तीसरा भोपाल में ही राजधानी परियोजना को पुन: जीवित करना है। यादव सरकार का एक और अहम फैसला सभी जिलों, तहसीलों और थानों की सीमा का पुनर्निधारण का है। जहां तक राजनीतिक मोर्चे की बात है तो सीएम यादव ने लोकसभा चुनाव में भाजपा की क्लीन स्वीप और बाद में अमरवाड़ा विधानसभा उपचुनाव जीतकर साबित कर दिया है कि वो सियासी चुनौतियों से निपटना जानते हैं। यादव को छिंदवाड़ा में वरिष्ठ कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का किला ढहाने के लिए याद रखा जाएगा।
यही नहीं उन्होंने छिंदवाड़ा जिले को भी तीन हिस्सों में बांटने की तैयारी कर ली है। पहले पांढुर्ना को अलग किया गया, अब जुन्नारदेव को जिला बनाने की तैयारी है। इसके अलावा कांग्रेस को कमजोर करने की रणनीति को भी उन्होंने सफलता से अंजाम दिया है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और ज्योतिरादित्य सिंधिया के विरोधी रहे चंबल अंचल के नेता रामनिवास रावत को भाजपा में लाकर मंत्री बनाना, अमरवाड़ा से कमलनाथ के खास रहे कमलेश शाह को उपचुनाव जिताना और बीना की कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे को भाजपा में लाना इसी का उदाहरण है।
मोहन यादव ने पद संभालते ही यह संदेश दे दिया था कि वो कट्टर हिंदुत्व की राह पर चलेंगे। धर्म स्थलों से तेज आवाज वाले लाउड स्पीकर हटाना, खुले में मांस की बिक्री पर सख्ती से रोक, धार्मिक न्यास और धर्मस्व विभाग का मुख्यालय भोपाल से सीएम के गृहनगर और महाकाल की नगरी उज्जैन स्थानांतरित करना, अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के लिए मध्यप्रदेश में खास आयोजन करना महत्वपूर्ण हैं। यादव होने के नाते सीएम ने भगवान राम के साथ अपने आराध्य कृष्ण को भी प्राथमिक एजेंडे पर लिया है। राम वन गमन पथ की तरह अब राज्य में माधव पथ का निर्माण होगा, जिसमें श्रीकृष्ण की लीला स्थली उज्जैन सहित चार तीर्थों का विकास किया जाएगा।
इसके अलावा नई शिक्षा नीति के अंतर्गत विद्यालयों और महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी और रानी दुर्गावती की प्रेरणादायी वीरगाथा के विषय को शामिल करना, हर जिले में एक शासकीय महाविद्यालय का पीएम उत्कृष्टता महाविद्यालय के रूप में उन्नयन भी शामिल है। राज्य में सामाजिक सौहार्द कायम रखने तथा कानून व्यवस्था बिगाड़ने वालों के खिलाफ मोहन यादव का बुलडोजर तैयार रहता है। उन्होंने सभी विभागों और मंत्रियों को संकल्प पत्र-2023 की घोषणाओं और वचनों को पूरा करने और उसे जमीन पर उतारने के लिए मिशन मोड में कार्य करने के निर्देश दिए। साथ ही संकल्प पत्र की घोषणा को पूरा करते हुए मोहन यादव सरकार ने तेंदूपत्ता संग्राहकों का मानदेय 3 हजार रुपए से बढ़ाकर 4 हजार रुपए प्रति मानक बोरा कर प्रदेश के 35 लाख तेंदूपत्ता संग्राहकों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरी।
इसी के साथ हुकुमचंद मिल के 4800 श्रमिक परिवारों को 224 करोड़ रुपए का बकाया भुगतान, रानी दुर्गावती श्री अन्न प्रोत्साहन योजना में किसानों को प्रति 10 रुपए किलो की अतिरिक्त राशि, 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई के विस्तार के लिए 5 हजार करोड़ की परियोजनाओं को मंजूरी, 1 हजार से अधिक पुलिसकर्मियों को पदोन्नति, इंदौर में एलीवेटेड काॅरिडोर का निर्माण, खरगोन जिले के जलूद गांव में ग्रीन बांड के जरिए जुटाए गए 308 करोड़ रुपए की लागत से ऊर्जा संयंत्र की स्थापना उल्लेखनीय है।
मोहन यादव आर्थिक मोर्चे पर भी प्रदेश को आगे ले जाने की दिशा में काम कर रहे हैं। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि राज्य में बेरोजगारी घटाने तथा आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में आगे बढ़ना होगा। इसके लिए मोहन यादव सरकार कर्ज पर कर्ज लेने से नहीं हिचक रही है। सीएम राज्य में ज्यादा उद्योग लाने के लिए रीजनल इन्वेस्टमेंट मीट्स का आयोजन कर रहे हैं। सरकार के कई बड़े उद्योग समूहों के साथ एमओयू भी हो रहे हैं, लेकिन इन प्रयासों की सार्थकता तभी है, जब हकीकत में उद्योग लगें और लोगों को रोजगार मिले। इस दिशा में सीएम द्वारा हर जिले में एक इन्वेस्टेमेंट फेसीलिटेशन सेंटर ( निवेश सुविधा केन्द्र) की स्थापना की घोषणा है। सरकार ने औद्योगिक केन्द्रों में जमीन में देने की नीति में भी कुछ व्यावहारिक बदलाव किए हैं। मुख्यमंत्री का ध्यान मुख्य रूप से पर्यटन, खाद्य प्र-संस्करण और आईटी के क्षेत्र में संभावनाओं के पूर्ण दोहन पर रहा है।
जहां तक राजनीतिक चुनौती का सवाल है तो मुख्यमंत्री मोहन यादव के सामने विपक्ष फिलहाल कोई बड़ी चुनौती पेश करने की स्थिति में नहीं है। जबकि भाजपा में भी उन्होंने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को कायदे में रखा है। हालांकि प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री और अब केन्द्रीय कृषिमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनके समर्थक चुनौती बने हुए हैं। इस बार जन्माष्टमी पर मुख्यमंत्री निवास और शिवराज के भोपाल के स्थित आवास पर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का आयोजन अघोषित प्रतिद्वंद्विता में बदल गया। मोहन यादव ने शिवराज को भी निमंत्रित किया गया था, लेकिन वो नहीं गए। वैसे खुले तौर पर दोनो में कोई अदावत नहीं है, पर इस रिश्ते को अगर भागवत पुराण के रूपक के तौर पर देखें तो बाणासुर को लेकर कृष्ण (मोहन) और शिव में युद्ध हुआ था, जिसमें कृष्ण की जीत हुई थी। मध्यप्रदेश में भी फिलहाल तो मोहन लीला ही सर्वोपरि है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। इस लेख में उनके निजी विचार हैं।
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