श्रवण मावई @ भोपाल
सड़क पर मजमा लगा है, एक छोर से दूसरे छोर तक रस्सी बंधी है। इस रस्सी पर नट चलकर अपने संतुलन बनाए रखने की प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहा है। नीचे खड़े तमाशबीन उसके गिरने या इस छोर से उस छोर तक पहुंचने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। अब नट की कला ही तय करेगी कि वह रस्सी पर कितना सही चला और उस छोर तक कैसे पहुंचा। यह दृश्य यही समाप्त होता है। अब आता है दूसरा दृश्य...मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल का मोतीलाल नेहरू स्टेडियम सजधज कर तैयार था, तारीख थी 13 दिसंबर 2023, समय तकरीबन दोपहर 12.30 बजे, मोतीलाल स्टेडियम में मंच पर मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यहां तक सब कुछ सामान्य है। असामान्य था, तो मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री की ताजपोशी।
यह बदलाव न केवल देशभर में चर्चा का विषय था, बल्कि उन मतदाताओं के लिए भी आश्चर्य से कम नहीं था, जिन्होंने कुछ दिन पहले अपने मताधिकार का उपयोग किया था। बावजूद इसके बदलाव की पटकथा लिखने से लेकर उम्मीदों के पहाड़ खड़े किए जा चुके थे। इस बदलाव को अनमने मन से ही सही, लेकिन सूबे के बड़े नेताओं ने स्वीकार किया। यह बदलाव डॉ.मोहन यादव थे।
वे पिछली बीजेपी सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री थे। राजनीतिक विशेषज्ञों के सारे गणितों को फेल कर बीजेपी के आलाकमान ने विधायकों की भीड़ से ऐसे व्यक्ति को चुनकर मुख्यमंत्री बना दिया, जिसका नाम किसी भी सूची में नहीं था। बीजेपी ने डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर दो तरह के संदेश दिए। पहला सत्ता में कोई भी लंबे समय तक नहीं रहेगा। दूसरा कार्यकर्ताओं को संदेश दिया कि किसी को भी मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। डॉ.मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनकी चुनौतियां शुरू हुईं। उम्मीदों का पहाड़ उनके सिर पर रखा गया। फिर शुरुआत के समय में जिस तरह के निर्णय उन्होंने लिए उससे साफ दिखाई देता है कि कुछ एजेंडों को पूरा किया गया, जैसे कि आनन फानन में धार्मिक स्थलों से लाउड स्पीकर हटाने का काम हो या मांस की दुकानें सार्वजनिक दिखाई ना दें।
अब बात मुख्यमंत्री के तौर पर डॉ. मोहन यादव की...
शुरुआती दौर में उन्हें कमजोर नेतृत्व समझने वाले नेताओं को धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अब इस बात का आभास हो गया है कि वे कच्चे खिलाड़ी नहीं है। उन्होंने जिस तरह से दिल्ली-भोपाल के बीच संतुलन बनाया, उससे साफ हो गया कि ना वे दबाव में और ना ही भावनाओं में बहकर कोई निर्णय लेंगे। उन्होंने अपने कुछ निर्णयों से जनता के मन में अपनी अलग जगह बनाने की कोशिश भी की। उनकी यह कोशिश कुछ हद तक सफल भी हुई है, पर अभी काम बहुत बाकी है। उन्हें अपनी छवि ऐसे मुख्यमंत्री के तौर पर बनानी होगी, जो मध्यप्रदेश की उस तस्वीर को बदले... जहां सरकार आर्थिक तंगी से जूझ रही हो, पुरानी योजनाएं बंद करने की नौबत आ रही हो, जहां स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, सड़क और पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं का टोटा हो। यह बात संभवत: आंकड़े नकार सकते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि मुख्यमंत्री के सामने एक ऐसा प्रदेश झोली फैलाए खड़ा है, जहां आय के स्रोत कम और खर्चा बेहिसाब है।
प्रदेश के विकास के लिए उद्योग सबसे जरूरी...
प्रदेश में बढ़ते उद्योग ही रोजगार की दर को बढ़ाते हैं। रोजगार की दर बढ़ेगी तो प्रदेश में खुशहाली आएगी। यह बात कई सालों से कही तो जा रही है, लेकिन जमीन पर उसे उतारा नहीं जा सका। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने अपने शुरुआत कार्यकाल में इस बात को समझ लिया है। उन्होंने उद्योगों की रफ्तार बढ़ाने और नए उद्योग प्रदेश में लाने की ठोस पहल शुरू की है। इधर, उन्होंने सरकारी नौकरियों में भी भर्तियों को लेकर पहल की है। 15 अगस्त को दिए गए अपने भाषण के दौरान उन्होंने कई सरकारी नौकरियों में भर्ती की घोषणा की है। फिलवक्त ये बताता है कि वे बतौर मुख्यमंत्री सूबे के शिक्षित बेरोजगार युवाओं की पीड़ा को समझ पा रहे हैं। हालांकि अभी यह कहना जल्दबाजी होगा कि प्रदेश में रोजगार के अवसरों में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है या सरकारी भर्तियां पूरी हो गई है। अभी शुरुआत है।
व्यक्तिगत तौर पर किसी भी मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली तय करती है कि उस प्रदेश की अफसरशाही कैसी हो और अफसरशाही तय करती है कि प्रदेश की दिशा और दशा क्या हो। मुख्यमंत्री डॉ.यादव ने अपने चेहरे पर मुस्कान और कलम को सख्त रखते हुए बेलगाम अफसरशाही पर लगाम कसने का काम बखूबी किया है। हालांकि कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ इस बात को फिलहाल हजम नहीं कर पा रहे हैं। समय आने पर यह बात साबित होगी कि मंच से अच्छा भाषण देने या अफसरों को डांट लगाने भर से अफसरशाही में बदलाव नहीं होता।
इसका हालिया उदाहरण है कि मुख्यमंत्री ने मऊगंज के अपर कलेक्टर को 5 हजार रुपए की रिश्वत लेने के मामले में तत्काल निलंबित कर दिया। इससे पहले भी वह इस तरह के निर्णय लेते रहे हैं। वहीं, प्रदेश को बेहतर अफसरशाही देने के लिए डॉ. मोहन यादव अधिकारियों का रिप्लेसमेंट इन दिनों कर रहे हैं। उन्होंने ऐसे अधिकारियों को लूप लाइन में भेज दिया, जिन्हें सरकार चलाने का गुमान था। अब ऐसे अफसर उनकी टीम में हैं, जो जनता और सरकार के बीच अच्छा तालमेल बना सके।
अब बात संगठन और सरकार के बीच के संतुलन की
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बदले जाने और डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के पीछे संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका किसी से छिपी नहीं है। अब चूंकि संगठन ने डॉ. यादव को सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाया तो उनसे उम्मीदें भी उतनी ही हैं। संगठन के कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री से अपने मुख्यमंत्री होने की उम्मीद जताई थी। इस उम्मीद को डॉ. मोहन यादव ने उतनी ही सहजता से पूरा करने की कोशिश की है, अथवा अभी कर रहे हैं, जितना कि संगठन में कार्यकर्ता को सहजता चाहिए थी।
मुख्यमंत्री ने कार्यकर्ता और सरकार के बीच जिस तरह का संतुलन बनाया है, उससे आगामी दिनों में उनकी लोकप्रियता जन सामान्य में भी दिखाई देगी, ऐसा अनुमान है। उनके पास समय बहुत है और अगले चुनाव आने तक उनका कद और छवि दोनों का बड़ा रूप देखने को मिल सकता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि उन्होंने उन नेताओं से भी अपनी पटरी बैठा ली है, जिन्हें राजनीतिक पंडित (पॉलिटिकल क्रोकोडाइल) कहते हैं। डॉ. मोहन यादव की सफलता यह है कि अपने 9 माह के कार्यकाल में उन्होंने उन सभी नेताओं को उनके मुख्यमंत्री बनने की स्वीकारिता करवा ली है।
मुख्यमंत्री बनने और मुख्यमंत्री बने रहने तक तो ठीक है, लेकिन मुख्यमंत्री पद का मौजूदा कार्यकाल समाप्त होने और विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के रूप में वोट मांगने की नई चुनौती डॉ. मोहन यादव के सामने आगामी समय में होगी। उनकी सफलता और असफलता का निर्णय आगामी विधानसभा चुनाव में ही होगा। इसके इतर भी भविष्य में उन्हें किस तरह के मुख्यमंत्री के रूप में याद किया जाएगा, यह भी उनके पांच साल के कार्यकाल में बनाई गई नीतियों और दूरगामी निर्णय तय करेंगे। अभी तक मुख्यमंत्री के तौर पर डॉ. मोहन यादव ने जितने भी निर्णय लिए हैं, वह दूरदर्शी नहीं है।
ऐसी कोई भी उल्लेखनीय नीति नहीं बनाई गई, जिसके परिणाम आने वाले समय में डॉ. यादव को जनता के बीच अच्छे मुख्यमंत्री के तौर पर स्थापित कर सकें। अब बस इंतजार है डॉ. यादव कब उस अध्ययन का उपयोग करेंगे, जिसे वह हर रोज सुबह या शयनकक्ष में जाने से पहले करते रहे हैं। उम्मीद है, देश के दिल मध्यप्रदेश की धड़कन, उसकी रफ्तार और स्वस्थ रखने में कॉमन मैन डॉ. मोहन यादव खरे उतरेंगे। इसी साल 13 दिसंबर 2024 को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को एक वर्ष हो जाएगा। इस एक वर्ष के कामकाज का आकलन और समीक्षा वह स्वयं ही करेंगे। निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि डॉ. यादव अपनी समीक्षा में निष्पक्ष और पारदर्शी रहेंगे।
(लेखक 'द सूत्र' के न्यूज एडिटर हैं।)
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