BHOPAL. एक नवंबर को मध्यप्रदेश 68 साल का हो जाएगा। जी हां, 1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया था। इस तरह प्रदेश ने 68 बरस की उम्र पूरी कर ली है। इस खास मौके पर हम आपको ऐसी रोचक जानकारी बताने जा रहे हैं, जो शायद ही आपको पता हो।
जब हम इतिहास के पन्ने पलटते हैं तो हमारा कई रोचक जानकारियों से सामना होता है। आज जिस विशाल और विविधता से भरे भारत को हम नक्शे पर देखते हैं, उसका निर्माण कोई साधारण प्रक्रिया नहीं थी। इसका इतिहास करोड़ों बरस पुराना है। इस दरमियां कई भूभागों का सम्मिलन और विस्तार हुआ। इनमें हिमालय के अस्तित्व में आने से महासागरों के विलय तक की घटनाएं शामिल हैं।
18 साल में हुई रिसर्च
प्रो. एमके पंडित के निर्देशन में 18 साल तक हुई रिसर्च में प्राचीन दास्तां सामने आई है। उनके साथ फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जोसेफ मर्ट ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। शोध को प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च जर्नल 'गोंडवाना रिसर्च' ने प्रकाशित किया है। रिसर्च में सबसे खास तथ्य यह है कि 170 करोड़ वर्ष पहले अब के मध्य भारतीय क्षेत्र में एक महासागर था। आज के संदर्भ में देखें तो यह मध्यप्रदेश के आसपास का हिस्सा रहा होगा।
पांच प्राचीन भूखंडों का सम्मिलन
रिसर्च में पता चला है कि भारत का वर्तमान भूभाग उन पांच प्राचीन भूखंडों के जुड़ने से बना है, जो पहले अलग-अलग थे। ये भूखंड वर्तमान कर्नाटक-आंध्र प्रदेश-तेलंगाना, छत्तीसगढ़-ओडिशा, झारखंड-ओडिशा, बुंदेलखंड और उत्तर पश्चिम का अरावली क्षेत्र हैं। दावा है कि इन भूखंडों की उम्र 300 करोड़ साल से भी ज्यादा है। शोधकर्ताओं ने इन भूखंडों की चट्टानों के पुराचुंबकीय गुणों और रेडियोधर्मी आयु का विश्लेषण कर इस तथ्य का पता लगाया है। फ्लोरिडा की लैब में हजारों चट्टानों में से चुनिंदा 2 हजार से अधिक चट्टानों नमूने जांचे गए, जिससे इन भूखंडों के सम्मिलन और उनकी समय रेखा को समझने में मदद मिली है।
गोटोसिंधु नाम था इसका
आज के मध्य भारत के आस-पास एक महासागर था, जिसे 'गोटोसिंधु' नाम दिया गया है। 170 करोड़ साल पहले इस क्षेत्र की स्थिति मौजूदा स्थिति से बिल्कुल अलग थी। रिसर्च के अनुसार, भारत के दक्षिणी भूभाग में तीन मुख्य हिस्से थे, जो बाद में आपस में जुड़े। पश्चिमी राजस्थान, थार, पाकिस्तान और ओमान का क्षेत्र भी इनसे जुड़ा। लगभग 100 करोड़ साल पहले भारत का भूगोलिक एकीकरण पूरा हुआ।
पुराचुंबकीय अध्ययन और भारतीय भूगर्भ का भविष्य
शोध की सफलता के पीछे 'नेशनल साइंस फाउंडेशन, अमेरिका' की फंडिंग और शोध दल की कड़ी मेहनत है। अध्ययन में पुराचुंबकीय गुणों के अलावा, चट्टानों की रेडियोधर्मी आयु भी मापी गई, जिससे भारत के भूगर्भीय इतिहास की कई परतें उजागर हुईं। यह खुलासा विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ा योगदान है और पृथ्वी के भूगर्भीय इतिहास को समझने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
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