सरकार ! क्या दिखावे भर की है लाखों छात्रों की चिंता, दो माह से शिक्षकों के बिना लग रहे प्रदेश में स्कूल

हम बात कर रहे हैं प्रदेश की स्कूली शिक्षा की। एक दशक से ज्यादा समय से स्कूलों में नियमित शिक्षक नहीं है। सरकार भी इसको लेकर ठोस काम नहीं कर पाई है और पूरी शिक्षा व्यवस्था अतिथि शिक्षकों के कंधों पर है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. डीपीआई यानी लोक शिक्षण संचालनालय प्रदेश के स्कूली बच्चों के भविष्य की कितनी चिंता करता है इस दावे की हकीकत फिर सामने आ गई है। प्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों की कमी के चलते बीते शैक्षणिक सत्र का परीक्षा परिणाम बेहद खराब रहा था। तब भी वजह शिक्षकों की कमी थी, लेकिन डीपीआई ने पल्ला झाड़ते हुए जिम्मेदारी अतिथि शिक्षकों पर डाल दी थी। इन स्कूलों के 30 हजार अतिथि शिक्षक इस शैक्षणिक सत्र में अध्यापन से बाहर किए जा चुके हैं, लेकिन असल जिम्मेदार यानी डीपीआई के अफसर और यहां का सिस्टम मौज में है। 

स्कूलों में नियमित शिक्षक नहीं

हम बात कर रहे हैं प्रदेश की स्कूली शिक्षा की। एक दशक से ज्यादा समय से स्कूलों में नियमित शिक्षक नहीं है। सरकार भी इसको लेकर ठोस काम नहीं कर पाई है और पूरी शिक्षा व्यवस्था अतिथि शिक्षकों के कांधों पर सवार है। इसके बावजूद अतिथि शिक्षकों के प्रति सरकार का रवैया सौतेला ही है। प्रदेश में 15 जून से स्कूल खुल चुके हैं, लेकिन शिक्षक नहीं है तो वहां पढ़ाई का क्या हाल होगा ये अंदाजा लगाया जा सकता है। ग्रामीण अंचल के स्कूलों में तो एक-दो शिक्षक दो सौ से चार सौ या इससे भी ज्यादा छात्रों को पढ़ाने का भार उठा रहे हैं, लेकिन शैक्षणिक सत्र के दो महीने बीतने पर भी डीपीआई इन स्कूलों में अतिथि शिक्षक तैनात नहीं कर पाया है। 

पांच दिन बंद रहा पोर्टल, अब तकनीकी उलझन 

इसी महीने यानी 1 अगस्त को डीपीआई ने अतिथि शिक्षकों की ऑनलाइन नियुक्ति के लिए पोर्टल खोला था। हर बार प्रशासनिक पेंच फंसाने वाले डीपीआई ने इस बार अतिथि शिक्षकों को तकनीकी उलझन में डाल दिया है। दरअसल ऑनलाइन नियुक्ति के लिए जो पोर्टल खोला गया था वह अगले ही दिन 2 अगस्त को मेंटेनेंस के चलते बंद कर दिया गया और आवेदन करने की अंतिम तिथि से ठीक एक दिन पहले यानी 6 अगस्त को चालू हुआ। पोर्टल तो खुला लेकिन तकनीकी उलझन खत्म नहीं हुईं। किसी अतिथि शिक्षक के आवेदन में स्कोर कार्ड तो किसी के आवेदन में बीते वर्ष के अध्यापन कार्य की जानकारी गायब है। ऐसे ही कई और भी पेंच हैं जिनका जवाब देने अतिथि शिक्षक डीपीआई के चक्कर काट रहे हैं। डीपीआई ने हर दिन पहुंच रही भीड़ को देखते हुए नियुक्ति की प्रक्रिया 12 अगस्त तक बढ़ा दी है। लेकिन जब पोर्टल पर जरूरी डेटा ही नहीं दिख रहा तो आवेदन कैसे अपलोड होगा अब यह संकट खड़ा हो गया है। 

डीपीआई में परेशानी सुनने वाला कोई नहीं 

गुरुवार को बड़ी संख्या में अतिथि शिक्षक अपने आवेदन लेकर डीपीआई पहुंचे  थे। वे लोक शिक्षक आयुक्त से मिलकर उन्हें परेशानी बताना चाहते थे लेकिन दोपहर तक मुलाकात नहीं हो सकी। घंटों तक डीपीआई कैंपस में इंतजार करने के बाद आखिर उन्हें निराश वापस लौटना पड़ा। सागर जिले के बीना विकासखंड से आए अतिथि शिक्षक नेतराम गौर का कहना था वे कई साल से स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। बीते साल भी उन्होंने शासकीय शाली में अध्यापन कराया था लेकिन ऑनलाइन आवेदन करने पर यह जानकारी ही गायब है। इस वजह से आवेदन नहीं कर पा रहे। सीहोर के इछावर विकासखंड से आए अतिथि शिक्षक पोर्टल पर स्कोर कार्ड शो नहीं होने की परेशानी बता रहे थे। अतिथि शिक्षकों के संगठन के सचिव रविकांत गुप्ता भी डीपीआई पहुंचे थे। उन्होंने तकनीकी परेशानियों से अधिकारियों को अवगत कराया लेकिन वे भी सिर्फ आश्वासन ही दे पाए। गुप्ता ने बताया पोर्टल के जरिए जो नियुक्ति प्रक्रिया की जा रही है उसमें तकनीकी खामियां हैं।  बड़ी संख्या में अतिथियों को उच्च पद पर नियुक्ति दी गई है जिसमें योग्यता और सीनियरिटी को अनदेखा किया गया है। 

ऐसा रहा तो कैसे दूर होगी शिक्षकों की कमी 

जिन स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है वहां अतिथियों की कमी कैसे पूरी होगी इसका  कोई जवाब अफसरों के पास नहीं है। ऐसे ही कई और पेंच है लेकिन समाधान अफसर भी नहीं बता  पा रहे। पोर्टल दो दिन भी ठीक से नहीं चला जिस वजह से हजारों अतिथि भटक रहे हैं। डीपीआई कैंपस पहुंचे अतिथि शिक्षकों ने लोक शिक्षण संचालनालय पर स्कूली  शिक्षा को ध्वस्त करने के आरोप लगाए हैं। डीपीआई को ग्रामीण क्षेत्र की शालाओं में पढ़ने वाले बच्चों के भविष्य की कितनी चिंता है ये उसके कामकाज के तरीके से साफ पता चलता है। जब भी समस्याओं को गिनाया जाता है संचालनालय के अफसर अतिथि शिक्षकों को डपट कर बाहर कर देते हैं। जो बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं उनसे अफसरों का व्यवहार बताता है डीपीआई की चिंता सिर्फ दिखावे भर की है।

डीपीआई शिक्षक नहीं शिक्षकों की किल्लत डीपीआई की चिंता लाखों छात्रों की चिंता