संजय शर्मा, BHOPAL. छिंदवाड़ा में महिला अतिथि शिक्षक ( Guest teachers ) द्वारा कलेक्टर को खरी-खोटी सुनाने की घटना ने सूबे में शिक्षकों की हालत बयां कर दी है। गौर करेंगे तो आपको समझ आ जाएगा कि यह केवल बहस नहीं थी। यह प्रदेश में अतिथि शिक्षकों के साथ प्रशासनिक व्यवस्था और सरकार के भेदभाव की टीस थी। इस महिता अतिथि शिक्षक को 10 महीनों से वेतन नहीं मिला और वह परिवार के मुश्किल हालातों से कलेक्टर को वाकिफ कराने आई थी। साहब इतने जल्दी में थे कि उन्होंने परेशानी से घिरी महिला के आवेदन पर नजर डालना भी मुनासिब नहीं समझा। बस इससे आहत गेस्ट टीचर का सब्र का बांध टूट गया। कलेक्टर पर भड़कने वाली महिला अकेली नहीं थी। उसके साथ कई और अतिथि शिक्षक भी थे, लेकिन वह 10 माह से तंगी झेल- झेल कर थक चुकी थी। इसलिए साहब की बेरुखी बर्दाश्त नहीं कर पाई। अतिथि शिक्षक अपनी परेशानियों और सरकार के सौतेले रवैये को लेकर सालों से प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अपने हिस्से का न्याय अब तक नहीं मिला है।
प्राइमरी से लेकर कॉलेजों तक शिक्षकों का टोटा
प्रदेश की प्राथमिक शालाओं से लेकर कॉलेज तक शिक्षकों का टोटा है। आधे से ज्यादा पद खाड़ी पड़े हैं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा ही प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था गेस्ट टीचर के भरोसे ही चल रही है। दोहरा काम कर रहे इन अतिथि शिक्षकों के साथ तब भी भेदभाव हो रहा है। प्रदेश में दो दशकों से अतिथि शिक्षक के जरिये पढ़ाई कराई जा रही है लेकिन कभी उन्हें समय पर वेतन नहीं मिलता। अकसर तीन- चार महीने बाद वेतन दिया जाता है और कभी -कभी तो यह 8 -10 महीने भी अटका दिया जाता है। स्थाई शिक्षकों से आधे से भी कम वेतन पर उनसे ज्यादा काम करने वाले अतिथि शिक्षकों को कभी भी हटा देते हैं। पदेश में शिक्षा विभाग के लिए 72 हजार और ट्राइबल डिपार्टमेंट के लिए 25 हजार से ज्यादा गेस्ट टीचर काम कर रहे हैं। लेकिन जब बात उनकी मुश्किलों की सुनवाई की आती है अधिकारी सौतेला रवैया अपना लेते हैं। इसी वजह से अब अतिथि शिक्षकों में सरकार की इस व्यवस्था और अधिकारियों की मनमानी को लेकर गुस्सा बढ़ने लगा है। विधान सभा चुनाव से पहले तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इस बड़े वर्ग को साधने के लिए अपने सरकारी निवास पर पंचायत बुलाकर आश्वस्त किया था लेकिन उनके जाते ही अतिथि शिक्षक फिर बेसहारा हो गए हैं।
छिंदवाड़ा में क्या हुआ था सोमवार को
छिंदवाड़ा में सोमवार को क्या हुआ पहले ये बताते हैं। जिले में काम कर रहे अतिथि शिक्षकों के साथ जुन्नारदेव मॉडल स्कूल में पढ़ाने वाली महिला ममता परसाई भी कलेक्टर से मिलने पहुंची थीं। काफी देर बाद कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह समय सीमा की मीटिंग से बाहर निकले तो सभी ने उनसे बात करना चाहा। दूसरे लोगों के साथ अतिथि शिक्षकों ममता परसाई ने भी अपना पत्र उन्हें दिया, जिसे कलेक्टर ने देखे बिना अपने पीए को थमा दिया। चूंकि कलेक्टर साब के पास टाइम नहीं था तो वे आगे बढ़ने लगे। यह देख ममता ने बात कर 10 महीने से वेतन न मिलने के बारे में बताया। कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह ने आश्वासन नहीं दिया तो ममता भड़क गई। अब यह भी समझिए की एक साधारण सी अतिथि शिक्षक ममता को इतना गुस्सा क्यों आया। ममता सामान्य से परिवार की महिला है। वहअतिथि शिक्षक के रूप में जुन्नारदेव मॉडल स्कूल में पढ़ाती है। पिछले साल से उसे वेतन नहीं मिला। वह कई महीनों से जिला शिक्षा अधिकारी से लेकर कलेक्टोरेट के चक्कर लगा रही है। उसके साथ ऐसे और भी अतिथि शिक्षक हैं जो वेतन के लिए यहां -वहां भटक रहे हैं। सोमवार को भी वे इसी समस्या को बताने पहुंचे थे। लेकिन कलेक्टर को टालते हुए देख ममता बात करने की जिद करने लगी। उसने खरी-खोटी सुनाकर आत्महत्या कर उन्हें फंसाने की धमकी दे दी थी। ममता बार- बार कह रही थी 10 महीने से वेतन नहीं मिला, हम कैसे परिवार चला रहे हैं। आप लोग ऊपर वाले से बड़े हो क्या। जब डीईओ के पास जाओ तो वे कलेक्टर के पास भेज देते हैं। यहां आओ तो साहब के पास बात सुनने का समय नहीं होता। कलेक्टर साब भी इस मामले में संवेदनाहीन दिखे। उन्होंने ममता और साथ आये अतिथि शिक्षकों को हटाने का आदेश दिया और ऐसा न करने पर डीईओ को कार्रवाई की चेतावनी दे डाली।
गेस्ट टीचर्स की संख्या एक लाख तक
प्रदेश के स्कूलों में आधे भी स्थाई शिक्षक नहीं हैं, जिसके कारण सरकार गेस्ट टीचर्स ( guest teacher ) के सहारे पढ़ाई करा रही है। बदले में इनको मानदेय की तरह वेतन भी दिया जाता है। अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति के मानदंड भी सरकार बदलती रहती है और उन्हें कभी भी हटा देती है। फिलहाल प्रदेश में शिक्षा विभाग, उच्च शिक्षा और ट्राइबल डिपार्टमेंट स्कूल और कॉलेज चलाते हैं। इनमें गेस्ट टीचर्स की संख्या एक लाख तक है। इतनी बड़ी संख्या होने के बाद भी सरकार द्वारा इन्हें नियमित वेतन देने के साथ ही उनकी समस्याओं के समाधान के लिए कोई तंत्र नहीं बनाया गया है। जब वे अपनी परेशानी लेकर कलेक्टर या शिक्षा अधिकारी के पास जाते हैं तो उन्हें राजधानी और विभाग का रास्ता दिखा दिया जाता है। भोपाल पहुंचने पर विभाग के अधिकारी बैरंग लौटा देते हैं और वे ठगे रह जाते हैं।