- जांच समिति ने सीधे तौर पर एसआई से लेकर दंड कार्यपालिक अधिकारी को माना दोषी
- कहा समय- समय पर निरीक्षण करते तो ये हादसा नहीं होता
- 6 फरवरी को हुए इस विस्फोट में 13 लोगों की मौत हुई थी और 174 लोग घायल
भोपाल. हरदा की पटाखा फैक्ट्री ब्लास्ट मामले में तत्कालीन कलेक्टर- एसपी बच गए हैं, जांच समिति ने सीधे तौर पर उन्हें जिम्मेदार नहीं माना है। जांच समिति हरदा ब्लास्ट के लिए एसआई से लेकर एसडीओपी और तहसीलदार से लेकर एसडीएम को सीधे तौर पर जिम्मेदार माना है। जांच रिपोर्ट के अनुसार, विस्फोटक अधिनियम के तहत इन लोगों की जिम्मेदारी है कि ये अपने कार्यक्षेत्र में चलने वाली फैक्ट्री का समय- समय पर निरीक्षण करें। जांच में पाया गया कि इसमें पूरी तरह से लापरवाही बरती गई है। इसलिए जांच समिति ने इन संबंधित अफसरों पर विभागीय जांच की अनुसंशा की है। जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर गृह विभाग कार्यवाही के लिए पुलिस मुख्यालय को पत्र भेज रहा है तो वहीं मुख्य सचिव कार्यालय सामान्य प्रशासन कार्मिक विभाग को इस मामले में सबंधित अफसरों के खिलाफ एक्शन लेने के लिए जांच रिपोर्ट भेजेगा।
हरदा हादसे में मारे गए थे 13 लोग
हरदा में 6 फरवरी 2024 को हुए इस पटाखा फैक्ट्री हादसे में 13 लोग मारे गए थे, वहीं 174 लोग घायल हुए थे। धमाके की जानकारी मिलते ही मुख्यमंत्री मोहन यादव ने घटनास्थल का दौरा किया था। उसके बाद तत्काल प्रभाव से हरदा कलेक्टर ऋषि गर्ग और एसपी संजीव कुमार कंचन को हटा दिया गया था। हादसे की जांच के लिए प्रमुख सचिव गृह संजय दुबे की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति का गठित की थी। समिति ने 38 पेज की रिपोर्ट दी है। इसमें नेशनल बिल्डिंग कोड और फायर एक्ट का उल्लंघन के लिए कलेक्टर- एसपी को जिम्मेदार तो माना गया है, लेकिन सीधे तौर पर उनकी भूमिका पर कोई सवाल नहीं किए गए। ऐसे में उन पर किसी तरह का कोई बड़ा एक्शन नहीं होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये ब्लास्ट ‘अचानक नहीं हुआ’ जिम्मेदार अफसरों ने कई तरह की चेतावनी और संकेतों को नजरअंदाज किया, जिसके चलते ये हादसा हुआ। मजेदार बात ये है कि रिपोर्ट में कलेक्टर- एसपी के साथ तत्कालीन नर्मदापुरम कमिश्नर माल सिंह भयड़िया का भी जिक्र है, जिन्होंने हरदा पटाखा फैक्ट्री के निरस्त हुए लाइसेंस को 2021 में स्टे देकर पटाखे बनाने की अनुमति दे दी थी। इनके खिलाफ भी किसी तरह की कार्रवाई की कोई अनुसंशा नहीं की है। अब सामान्य प्रशासन कार्मिक विभाग और पुलिस मुख्यालय को तय करना है कि इन बड़े अफसरों से इस मामले में जवाब लिया जाए या नहीं।
केन्द्र और राज्य के नियमों में उलझी जांच टीम
हरदा पटाखा फैक्ट्री हादसे की जांच के लिए गठित टीम ने जब विस्फोट अधिनियम पढ़ा तो चौंकाने वाली बात सामने आई। केन्द्र सरकार ने विस्फोटक अधिनियम अंग्रेजी में लिखा है, इसमें एक तय मात्रा के बाद पटाखा फैक्ट्री का लाइसेंस देने का अधिकार एक्सप्लोसिव कंट्रोलर नागपुर को देना बताया गया है। वहीं राज्य में हिन्दी में बने इस अधिनियम में ये अधिकार कलेक्टर को देना बताए गए हैं। नियमों में ये भी साफ नहीं किया गया है कि इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार कौन होगा? केवल इतना लिखा है कि सब इंस्पेक्टर से लेकर कार्यपालिक दंडाधिकारी इसके लिए जिम्मेदार होंगे। इसी आधार पर जांच समिति ने इन लोगों को जिम्मेदार ठहराया है।
जांच रिपोर्ट के बिन्दू
- जांच समिति ने कहा कि वर्ष 2015 और 2021 में कारखाने के एक ही परिसर में इसी तरह की घटनाएं हुईं, लेकिन फैक्टरी बंदी नहीं की। 2015 में हुए विस्फोट में एक व्यक्ति की जान गई थी। इस मामले में 2021 को कोर्ट ने पटाखा फैक्ट्री मालिक राजेश अग्रवाल को दस साल जेल की सजा सुनाई गई थी। इसके बावजूद जिला प्रशासन और पुलिस के अफसरों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
- फैक्ट्री में सैकड़ों टन पटाखे अवैध रूप से बनाए जा रहे थे। जबकि फैक्ट्री के पास केवल एक स्थायी लाइसेंस था। इस लाइसेंस पर वो केवल 15 किलोग्राम पटाखे बना सकता था। राजेश अग्रवाल के पास पटाखों की बिक्री और भंडारण के लिए दो अन्य लाइसेंस थे, लेकिन इन्हें दिखाकर वो पटाखे बनाने में इस्तेमाल कर रहा था।
- रिपोर्ट में तत्कालीन जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक और नर्मदापुरम आयुक्त पर सवाल खड़े किए हैं, लेकिन सीधे तौर पर दोषी नहीं माना।
- रिपोर्ट में तत्कालीन उप-विभागीय मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट की प्रशंसा की गई है, जिन्होंने सितंबर 2023 में कारखाने का निरीक्षण किया था। गंभीर अनियमितताओं को उजागर किया था और लोगों की जान बचाने के लिए कारखाने को बंद करने का सुझाव दिया था।
- जांच में पाया गया कि फैक्ट्री विस्फोटक अधिनियम 2008 का उल्लंघन कर रही है, जिसके बाद अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट ने इसे जिला कलेक्टर को भेज दिया।
- जांच समिति ने कई सिफारिशें करते हुए सुझाव भी दिए हैं, इसमें कहा गया है कि लाइसेंस जारी करने से पहले सुरक्षा पर कड़ी जांच की जाए ये सुनिश्चित होना चाहिए। जिसमें जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक सहित वरिष्ठ अधिकारियों को हर छह महीने में औचक निरीक्षण के लिए जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए।