हरीश दिवेकर, भोपाल. सीएम मोहन यादव और उनकी सरकार की असल परीक्षा की घड़ी अब शुरू होने वाली है। इस बार के कैबिनेट की खास बात ये है कि ये एक क्लेक्टिव फेस की तरह दिखाई दे रहा है। इसमें मोहन यादव सबसे आगे तो हैं ही, उनके अलावा कई दिग्गज चेहरे भी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
इसमें कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह जैसे बड़े बड़े नाम शामिल हैं। दिल्ली तक दखल रखने वाले चेहरों की परीक्षा ज्यादा बड़ी है। 4 जून को नतीजे जो भी आएं, ये तय है कि इन चेहरों को इम्तिहान तो देना ही होगा। वो भी एक नहीं, बल्कि दो परीक्षाओं पर तुरंत खरा उतरने की बड़ी चुनौती इनके पास होगी।
गारंटियाें को पूरा करना बड़ी चुनौती
विधानसभा चुनाव में बड़े-बड़े वादे करके और गारंटियां देकर भाजपा ने बड़ी जीत तो हासिल कर ली। अब उन्हें पूरा करने की बड़ी चुनौती सरकार को अदा करनी है। प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी उसके कुछ ही समय बाद आचार संहिता लग गई।
अब आचार संहिता हटते ही सरकार को एक्शन मोड में आना होगा और, उसके बाद से ही हर मंत्री और विधायक के परफोर्मेंस का मीटर भी शुरू हो जाएगा।
प्रदेश सरकार के हर मंत्री की पहली जिम्मेदारी यही रहेगी कि पार्टी ने जिन वादों और गारंटियों की घोषणा की है, उसे अपने अपने विभाग और क्षेत्र में सबसे पहले अमलीजामा पहनाएं. ताकि, मोदी की गारंटी पर लोगों का भरोसा कायम रह सके। उसे प्राथमिकता से अमलीजामा पहनाया जाए। इसके लिए मंत्री आचार संहिता हटते ही फुलफॉर्म में दिखेंगे। न भी चाहें तो फुल फॉर्म में नजर आना और एक्टिव होना उनकी मजबूरी होगा। क्योंकि उन्हें कई पैमानों पर कसा जाएगा और उन पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती उनके सामने होगी।
साढ़े तीन लाख करोड़ का कर्ज
सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती बजट की हो सकती है। उम्मीद जताई जा रही है कि मोहन सरकार का पपहला बजट सत्र जून या जुलाई माह में हो सकता है।
चुनाव के बाद अब बजट का प्रबंधन मप्र सरकार के लिए बड़ा चैलेंज बन सकता है। आने वाले दिनों में मोहन सरकार पर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में किए गए वादों को पूरा करने का दबाव रहेगा। वो भी तब जब उन्हें उन्हीं की पार्टी की सरकार से कर्ज में डूबा प्रदेश मिला है।
विधानसभा चुनाव से पहले ही मप्र की तत्कालीन शिवराज सरकार को तीन बार में पांच हजार करोड़ रुपए का कर्ज लेना पड़ा था। मध्य प्रदेश सरकार ने 23 अक्टूबर को एक हजार करोड़ रुपए, 31 अक्टूबर को दो हजार करोड़ रुपए और 28 नवंबर को दो हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। राज्य सरकार पर मार्च 2023 तक कुल 3 लाख 31 हजार 651.07 करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ चुका था।
इस वित्तीय वर्ष में अब तक राज्य सरकार 18 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। इस हिसाब से प्रदेश पर टोटल कर्जा होता है साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए।
चार जून के बाद काउंट डाउन शुरू
योजनाओं और मोदी की गारंटी को अमलीजामा पहनाने के बाद मोहन सरकार की सबसे बड़ी चुनौती होगी कर्ज में डूबी प्रदेश की अर्थव्यवस्था के हालात सुधारना। ये कैसे होगा, इसका रास्ता भी मंत्रियों को ही निकालना होगा।
प्रदेश सरकार को इनकम के कुछ तरीके निकालने होंगे साथ ही ये ध्यान रखना होगा कि उसका बोझ सीधे आम जनता पर न पड़े। किस विभाग से कितने खर्च में कटौती की जा सकती है, ये सोचना भी जरूरी होगा। चार जून के बाद मोहन सरकार के सामने बेहतर प्रदर्शन करने का काउंट डाउन शुरू हो जाएगा।
पूरी मोहन सरकार को तो अपने एफर्ट्स लगाने ही हैं। दिग्गज मंत्रियों को भी खुद को साबित करना है।
बीजेपी ने कोशिश तो की है कि इस बार की कैबिनेट एक व्यक्ति केंद्रित न हो, बल्कि उसमें एक टीम नजर आए। इस टीम को बनाने के लिए कई दिग्गजों को कैबिनेट भेजा गया है। इसके प्रमुख मोहन यादव हैं, तो कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह और राव उदय प्रताप सिंह जैसे बड़े चेहरे भी कैबिनेट का हिस्सा हैं।
अब मध्य प्रदेश में वित्तीय प्रबंधन का सारा जिम्मा उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के पास है। विजयवर्गीय को शहरों के चेहरों में विकास के नए रंग घोलने हैं। वैसे इसमें वो माहिर हैं, लेकिन चुनौती ये है कि विकास के बहुत से काम पहले से ही जारी हैं। वो क्या नया करेंगे ये देखना दिलचस्प होगा। प्रहलाद पटेल को ग्रामीण विकास का काम करना है। राकेश सिंह के जिम्मे सडक निर्माण की परियोजनाएं हैं, इनके लिए भी धन का इंतजाम करना ही होगा।
मंत्रियों को भी दिखानी होगी परफोर्मेंश
मंत्री वरिष्ठ होने का टैग लेकर कैबिनेट में शामिल हुए हैं तो उन पर बेहतर परफोर्म करने का दबाव भी ज्यादा ही होगा। इनमें से कुछ ऐसे हैं जो केंद्र सरकार में दमदार पकड़ होने का दावा भी करते हैं। कैलाश विजयवर्गीय उन नेताओं में से हैं जो पश्चिम बंगाल में अपने राजनीतिक कौशल का परिचय दे चुके हैं। उनकी पहुंच भी आलाकमान के दरबार तक है, लेकिन ऐसे में दो अलग अलग हालात बन सकते हैं।
इस पूरे कद्दावर कैबिनेट ने मिलजुल कर काम किया तो प्रदेश में विकास के नाम पर नई नजीर पेश कर सकते हैं। और, ये भी बहुत संभव है कि एक दूसरे की चौकीदारी करके, आलाकमान के दरबार में खबरी की तरह बर्ताव करने लगें और अपने ही साथियों की, खासतौर से सीएम मोहन यादव की मुश्किलें बढ़ाने लगें। अब कौन सा मंत्री किस राह पर निकलता है. उससे तय होगा कि सरकार का भविष्य क्या होता है।
मंत्रियों के पास नहीं बचेगा कोई बहाना
लोकसभा चुनाव के रिजल्ट चार जून को आ ही जाएंगे। इसके पहले लगभग तीन माह आचार संहिता का दौर था। इसकी वजह से नई सरकार को करीब ढाई माह काम करने का अवसर मिला। इसमें मंत्री अपना कोई खास प्रदर्शन नहीं दिखा पाए, लेकिन आचार संहिता हटने के बाद मंत्रियों के पास कोई बहाना नहीं बचेगा। इसकी वजह यह है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव हुए छह माह बीत जाएंगे।
सरकार किस ट्रेक पर आगे बढ़ रही है, इसका ट्रेलर कुछ ही दिन में पेश होने वाले बजट में दिख ही जाएगा। इसके अलावा लोकसभा के नतीजे भी ये तय करेंगे कि कैबिनेट के स्वरूप में कितना बदलाव आने वाला है। क्योंकि खुद अमित शाह ने मंत्रियों को ये ताकीद किया था कि कम मतदान वाली सीटों के मंत्रियों को बदला जा सकता है।
इसके साथ ही CM Mohan Yadav को कितना फ्री हैंड मिलता है, वो दिग्गजों से भरी अपनी टीम को किस तरह साथ लेकर चलते हैं, पुरानी सरकार की योजनाएं और मोदी की गारंटी को पूरा करने के लिए किस तरह से आगे बढ़ते हैं, उसी से तय होगा कि प्रदेश में उनकी पारी कितनी लंबी होती है। कैबिनेट में कितने मंत्री टिकते हैं कितने बदलते हैं। और, बीजेपी नए पुराने मंत्रियों के इस मिक्स के साथ इन चुनौतियों को कैसे पूरा करती है, ये भी देखना दिलचस्प होगा। हरीश दिवेकर पत्रकार भोपाल Harish Divekar Journalist Bhopal News Strike Harish Divekar News Strike