बरगी बांध से विस्थापित किसानों के अधिकारों के लिए काम करने वाले बरगी विस्थापित संघ ने जबलपुर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि दिल्ली में आयोजित किसान रैली में भाग लेने के लिए निकले कार्यकर्ताओं को जबरन हिरासत में लिया गया और उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया गया। याचिकाकर्ताओं ने इस अवैध कार्रवाई के लिए प्रत्येक को 2 लाख रुपये मुआवजा दिए जाने की मांग की है। इस मामले पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
दिल्ली में आयोजित किसान रैली से जुड़ा है मामला
बरगी विस्थापित संघ के अध्यक्ष राजकुमार सिन्हा और उनके साथी कार्यकर्ता रामरतन यादव, अमरदीप सिंह, अमित पाण्डेय और संजय सेन 13 फरवरी 2024 को दिल्ली में आयोजित एक किसान रैली में भाग लेने के लिए जबलपुर से रवाना हो रहे थे। याचिका में कहा गया है कि जबलपुर पुलिस ने विभिन्न थाना क्षेत्रों में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। पुलिस का आरोप था कि ये लोग किसान रैली में शामिल होने के लिए अन्य नागरिकों को उकसाकर सार्वजनिक शांति भंग कर रहे थे। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उनकी गिरफ्तारी कानूनन गलत थी और उन्हें जानबूझकर दो दिनों तक हिरासत में रखा गया। इससे न केवल उनकी स्वतंत्रता का हनन हुआ, बल्कि मानसिक प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी।
पुलिस और सरकार पर लगे गंभीर आरोप
याचिका में आरोप लगाया गया है कि गिरफ्तारी के दौरान पुलिस ने कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया और यह पूरी कार्रवाई जानबूझकर और राजनीतिक दबाव में की गई। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह कदम उन्हें आंदोलन में भाग लेने से रोकने और उनकी आवाज दबाने के लिए उठाया गया। याचिका में यह भी कहा गया है कि पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए कार्यकर्ताओं के खिलाफ किसी तरह की ठोस शिकायत या साक्ष्य मौजूद नहीं थे। इसके बावजूद, उन्हें दो दिनों तक हिरासत में रखा गया और उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन किया गया। याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट से मांग की है कि इस मामले की विस्तृत जांच की जाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। इसके अलावा, याचिका में दो लाख रुपए प्रति याचिकाकर्ता मुआवजा दिए जाने की मांग की गई है ताकि उनको हुई मानसिक पीड़ा की भरपाई हो सके।
गृह सचिव-डीजीपी सहित अन्य को नोटिस जारी
याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में गृह सचिव, मध्य प्रदेश पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), जबलपुर के पुलिस अधीक्षक (एसपी), गोरखपुर और रांझी के एसडीओ तथा तिलवारा, गोराबाजार, गढ़ा और गोरखपुर थानों के प्रभारियों को पक्षकार बनाया है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एमएस भट्टी की एकलपीठ ने राज्य सरकार और अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी किया है। अदालत ने चार सप्ताह के भीतर इस मामले में विस्तृत जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
याचिका में लगाए स्वतंत्रता के हनन के आरोप
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अरविंद कुमार श्रीवास्तव ने कोर्ट में तर्क दिया कि इस गिरफ्तारी ने संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन किया है। अनुच्छेद 19 प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है और अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सुनिश्चित करता है। श्रीवास्तव ने कहा कि पुलिस ने बिना ठोस कारण के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेकर न केवल उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया, बल्कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित भी किया। अदालत से उन्होंने मांग की है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच कराई जाए और याचिकाकर्ताओं को मुआवजा दिया जाए।
लंबे समय से विस्थापितों की लड़ाई लड़ रहा है संघ
बरगी विस्थापित संघ लंबे समय से उन किसानों और मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ रहा है, जिन्हें बरगी बांध के निर्माण के दौरान विस्थापित किया गया था। संघ के अध्यक्ष राजकुमार सिन्हा ने कहा कि किसान रैली में उनकी भागीदारी का उद्देश्य उन समस्याओं को उजागर करना था, जिनसे बांध विस्थापित आज भी जूझ रहे हैं। उन्होंने कहा कि गिरफ्तारी का उद्देश्य किसानों की आवाज दबाना था। यह केवल व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि उन हजारों विस्थापितों की आवाज है, जिनके अधिकारों को बार-बार अनदेखा किया गया है। इस मामले में अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी, जब राज्य सरकार और अन्य पक्षकार अपना जवाब प्रस्तुत करेंगे। हाईकोर्ट का फैसला इस मामले में पुलिस की कार्रवाई और किसानों के अधिकारों के लिए एक नजीर साबित हो सकता है।
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