आउट सोर्सिंग के साइड इफेक्ट : स्वास्थ्य विभाग के सपोर्टिंग स्टाफ से हकमारी, समान काम के बदले मिल रहा कम वेतन

स्वास्थ्य विभाग भी कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है। ऐसे में सरकार द्वारा आउटसोर्स कंपनियों के जरिए कर्मचारियों से काम लिया जा रहा है। इन आउटसोर्स कर्मियों को सपोर्टिंग स्टाफ कहा जाता है।

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Sanjay Sharma
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आउट सोर्सिंग
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  • समान काम के बदले जिलों में वेतन भुगतान में हो रही मनमानी कटौती

  • आउटसोर्स स्टाफ को न वीकली ऑफ मिल रहा न बीमार होने पर छुट्टी  

  • पीएफ जमा न कराने के मामले में कंपनियों की सीबीआई जांच की मांग  

सरकारी सिस्टम पर अब आउटसोर्स कंपनियों इतनी हावी हो गई हैं कि उन्हें न तो नियमों की परवाह है, न कार्रवाई का डर। निरंकुश हो चुकी इन कंपनियों के शोषण का शिकार प्रदेश के आउटसोर्स स्वास्थ्यकर्मी हो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग में सपोर्टिंग स्टॉफ के रूप में काम करने वाले इन कर्मचारियों से बंधुआ मजदूरों की तरह काम कराया जा रहा है। उन्हें एक जैसे काम के बदले जिलों में अलग-अलग वेतन दिया जा रहा है।

कई जिलों में तो एक से ज्यादा कंपनियों के कर्मचारियों के वेतन में भी समानता नहीं है। जबकि कुशल और अकुशल कर्मचारियों के लिए वेतन का कलेक्टर रेट तय है। इन कर्मचारियों से तय घंटों से कहीं ज्यादा काम कराया जा रहा है। उन्हें साप्ताहिक अवकाश और बीमार होने पर भी छुट्टी नहीं दी जा रही। ऐसे कर्मचारी आउटसोर्स कंपनियों की मनमानी की शिकायत लगातार कर रहे हैं, लेकिन विभाग भी उन्हें न्याय नहीं दिला रहा। वहीं अब तक सरकार ने भी स्वास्थ्य विभाग के सपोर्टिंग स्टाफ की सुध नहीं ली है। 

चिकित्सा तंत्र के सपोर्टिंग स्टाफ को ही नहीं सपोर्ट 

प्रदेश में दूसरे विभागों की तरह ही स्वास्थ्य विभाग भी कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है। ऐसे में सरकार द्वारा आउटसोर्स कंपनियों के जरिए कर्मचारियों से काम लिया जा रहा है।

इन आउटसोर्स कर्मियों को सपोर्टिंग स्टाफ कहा जाता है। ये कर्मचारी वार्ड बॉय से लेकर तकनीकी काम- काज में भी स्वास्थ्यकर्मियों का सहारा बनते हैं। लेकिन सपोर्टिंग स्टाफ को न तो स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का सपोर्ट मिल रहा है और न सरकार का। यानी नियमित कर्मचारियों की कमी को पूरा करने वाले इन आउटसोर्स कर्मियों को उनसे चौथाई वेतन भी नहीं मिल रहा। इसकी कई बार शिकायत भी हो चुकी है।

बंधुआ मजदूरों की तरह काम करा रही कंपनियां 

स्वास्थ्य विभाग की ईकाइयों में सपोर्टिंग स्टाफ उपलब्ध कराने सरकार लगातार आउटसोर्स कंपनियों से अनुबंध करती आ रही है। ये कंपनियां कर्मचारियों को कलेक्टर रेट पर वेतन और दूसरी सुविधाएं देने का भरोसा दिलाकर काम लेती हैं।

वहीं जमीनी हकीकत ये है कि आउटसोर्स कर्मियों को कलेक्टर रेट से चार से छह हजार रुपया तक कम वेतन मिलता है। वहीं उन्हें सप्ताह के सातों दिन ड्यूटी पर पहुंचने होता है और बीमार होने पर छुट्टी लेने की स्थिति में वेतन में कटौती भी की जाती है। यह स्थिति बंधुआ मजदूरों जैसी है, जिनके विरोध करने पर काम से निकाल दिया जाता है। 

शोषण का शिकार 10 हजार आउटसोर्सकर्मी 

प्रदेश के जिला अस्पताल से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और मेडिकल कॉलेजों में कर्मचारियों की कमी पूरा करने अलग- अलग आउटसोर्स कंपनियां अनुबंधित हैं। इन कंपनियों के जरिए प्रदेश भर में चिकित्सा इकाइयों में 10 हजार से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं।

इन आउटसोर्स कंपनियों का वेतन कलेक्टर रेट के आधार पर निर्धारित है। साल 2023 में श्रम विभाग के आदेश पर अकुशल कर्मियों के लिए 9125 रुपए, अर्द्धकुशल कर्मियों को 9982 रुपए, कुशल कर्मियों को 11360 और प्रशिक्षित या उच्च कुशल आउटसोर्स कर्मियों के लिए 12660 रुपए मासिक वेतन देना तय किया गया था। लेकिन कलेक्टर रेट के मुताबिक आउटसोर्स कंपनियां न तो मासिक वेतन दे रहीं न ही दूसरी जरूरी सुविधाएं।

वहीं हाल ही श्रम विभाग ने न्यूनतम वेतन की दर में भी इजाफा किया है। इसके चलते अब अकुशल श्रेणी के आउटसोर्स कर्मियों को कलेक्टर रेट 371 दैनिक के अनुसार महीने में 9650 रुपए, अर्द्धकुशल श्रेणी के लिए 404 दैनिक के आधार पर 10507 रुपए प्रतिमाह, कुशल श्रेणी के लिए 457 दैनिक के अनुसार 11885 रुपए और उच्च कुशल श्रेणी के कर्मियों को 507 प्रतिदिन की दर से महीने में 13185 रुपए वेतन देना होगा। लेकिन जब विभाग पहले ही कलेक्टर रेट से वेतन नहीं दिला पाईं तो नई दर से वेतन कैसे दिलाएगा इसको लेकर कर्मचारियों में असमंजस है।  

पीएफ- वेतन में कटौती की सीबीआई जांच की मांग 

शोषण के खिलाफ पिछले दिनों एनएचएम यानी नेशनल हेल्थ मिशन के आउटसोर्स कर्मियों ने मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव से भी शिकायत की है। निर्धारित से कम वेतन और काम करने वाले अधिकांश कंपनियों को पीएफ का लाभ नहीं देने में बड़ा भ्रष्टाचार होने का मामला भी उछला है।

स्वास्थ्य विभाग में काम कर रहे आउटसोर्स कर्मियों को वेतन भुगतान और पीएफ कटौती की जानकारी भी जिला से लेकर प्रदेश स्तर तक छिपाई जा रही है। इसके चलते आउटसोर्स- संविदाकर्मी संघ इस गड़बड़झाले पर पर्दा डालने में कंपनियों से विभाग के अफसरों की मिलीभगत होने का आरोप लगाकर सीएम से सीबीआई जांच की मांग कर चुका है।

प्रदेश में आउटसोर्स सपोर्टिंग स्टाफ के वेतन में विसंगति

  • शिवपुरी 8287 रुपए
  • दमोह 7100 से 5500 रुपए
  • सीधी 5500 रुपए
  • भोपाल 11164 रुपए
  • अनूपपुर 11164 रुपए
  • शहडोल 7300 रुपए
  • मंडला 10682 रुपए
  • बालाघाट 7125 रुपए
  • सतना 6000 रुपए
  • आगर मालवा 5500 रुपए
  • छतरपुर 5500 रुपए
  • सागर 5500 रुपए
  • गुना 9557 रुपए
  • कटनी 6000 रुपए
  • ग्वालियर 7500 से 11164
  • उमरिया 9320 से 11165
  • पन्ना 6200 रुपए
  • भिंड 5500 रुपए
  • खंडवा 7707 रुपए
  • जबलपुर 8000 रुपए
  • डिंडोरी 5500 रुपए
  • छिंदवाड़ा 9200 रुपए
  • हरदा 8000 रुपए
  • खरगोन 7000 रुपए
  • सिवनी 5500 रुपए
  • दतिया 6800 रुपए
  • राजगढ़ 8682 रुपए
  • उज्जैन 5500 रुपए
  • नीमच 8000 रुपए
  • बड़वानी 8150 रुपए
  • टीकमगढ़ 8000 रुपए

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