हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने 15 साल की लड़की की एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ हुई शादी को अमान्य ( शून्य ) घोषित ( Marriage Declared Invalid ) कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि एक नाबालिग लड़की की शादी ( Minor Girl Marriage ) एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से करना मानसिक और शारीरिक रूप से क्रूर होगा, क्योंकि वह शादी के बाद के दायित्वों के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार नहीं हो सकती। यह फैसला हिंदू विवाह अधिनियम ( Hindu Marriage Act ) के अनुसार आया है, जिसमें लड़की के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र 18 साल और लड़के के लिए 21 साल निर्धारित की गई है।
शादी को शन्य करने की याचिका
जस्टिस एसए धर्माधिकारी और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की, जिसमें एक बच्ची की 2008-2009 में एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से शादी हुई थी। लड़की ने शादी के एक साल बाद ही जिला एवं सत्र न्यायालय में शादी को शून्य ( अमान्य ) घोषित करने के लिए याचिका दायर की थी। याचिका में उसने बताया कि उसकी शादी धोखे से हुई थी और उसके पति की एक आंख खराब है। उसने बताया कि पति से अलग होने के बाद वह अपने मां-बाप के साथ रहती थी।
जिला न्यायालय से याचिका खारिच
जिला न्यायालय ने लड़की की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम में शादी को शून्य करने का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि, तब बाल विवाह निषेध अधिनियम ( Prohibition of Child Marriage Act ) लागू हो गया था, लेकिन जिला न्यायालय ने उसका ध्यान नहीं रखा। जिला न्यायालय से याचिका खारिज होने के बाद लड़की ने 2014 में उच्च न्यायालय में प्रथम अपील दायर की। उच्च न्यायालय ने जिला न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया और लड़की की शादी को शून्य घोषित कर दिया।
जिला कोर्ट का फैसला निरस्त
इस मामले में लगभग 10 साल तक अपील की सुनवाई चली, जिसके बाद हाई कोर्ट ( High Court Decision ) ने याचिका स्वीकार करते हुए जिला कोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया। हाई कोर्ट ने माना कि जब एक नाबालिग लड़की की शादी एक वयस्क पुरुष से होती है, तो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (एचएमए) की धारा 13 के तहत उनकी शादी को शून्य घोषित ( Annulment of Marriage ) किया जा सकता है, भले ही धारा 11 या 12 के तहत कोई विशेष प्रावधान न हो। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत एक नाबालिग लड़की की शादी एक वयस्क से होने के आधार पर तलाक का दावा किया जा सकता है, जो इसके दायरे में आता है।
यह मामला क्रूरता का है - हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि यह मामला क्रूरता का है, क्योंकि एक नाबालिग लड़की की शादी एक वयस्क पुरुष से करना मानसिक और शारीरिक रूप से क्रूर होगा, क्योंकि वह शादी के दायित्वों को पूरा करने के लिए तैयार नहीं थी। इसलिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत वह पति से तलाक का दावा कर सकती थी। अधिवक्ता मनोज बिनीवाले का मानना है कि हाई कोर्ट का यह आदेश निचली अदालतों के लिए एक नजीर साबित होगा, क्योंकि ट्रायल कोर्ट में इस तरह के कई मामले लंबित हैं। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के दो आदेशों का भी हवाला दिया है।
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