संजय गुप्ता, INDORE. पुलिस जो करे सो कम ही है। अब ताजा मामला इंदौर के बहुचर्चित हनीट्रैप ( honey trap case ) केस से जुड़ा है। हनीट्रैप केस से ही जुड़े मानव तस्करी के मामले में सभी तीन आरोपियों को सेशन कोर्ट ने बरी कर दिया है। श्वेता विजय जैन, आरती दयाल और अभिषेक सिंह पर पीड़िता को कई नामी लोगों के पास भेजकर यौन शोषण का आरोप था। सुनवाई के बीच कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच कर रही एसआईटी ठोस सबूतों से आरोप सिद्ध नहीं कर सकी। कोर्ट ने एसआईटी के उस आवेदन को भी खारिज कर दिया, जिसमें आठ रसूखदारों को आरोपी बनाने का जिक्र किया गया था।
'द सूत्र' की इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट है:
कौन है वो आईएएस?
मानव तस्करी के केस में तीन आरोपी इसलिए छूट गए, क्योंकि पुलिस ठोस सबूत पेश नहीं कर सकी। दूसरा, पीड़िता अपने बयानों से पलट गई। अब यह भी खुलासा हुआ है कि पीड़िता के पिता को इस प्रकरण में कुछ पता ही नहीं था। पुलिस ने एफआईआर को लेकर उनके हस्ताक्षर करा लिए थे। इस पूरे मामले में एक आईएएस (IAS) अधिकारी का नाम सामने आया था, लेकिन पुलिस ने इसे हर दस्तावेज से छिपा लिया। केवल आईएएस शब्द लिखा गया।
फार्म हाउस से लेकर कार तक में बनाए शारीरिक संबंध
पुलिस ने लिखा है कि मानव तस्करी केस की पीड़िता के साथ कई रसूखदार लोगों ने फार्म हाउस, घरों और कार तक में शारीरिक संबंध बनाए। इनमें मनोज त्रिवेदी, अरूण सहलोद, अरुण निगम, हरीश खरे, राजेश गुप्ता, मनीष अग्रवाल जैसे नामी लोग शामिल थे। पुलिस ने चार्ज सीट में एक आईएएस का भी जिक्र किया है, लेकिन कहीं भी उसके नाम का खुलासा नहीं किया गया है।
बड़ा सवाल: पीड़िता बयानों से पलटी या पुलिस की स्क्रिप्ट?
अब जब कोर्ट में बयान हुए तो पीड़िता ने कहा कि उसे आरती दयाल, श्वेता विजय जैन और अभिषेक सिंह ने किसी के साथ, कभी भी शारीरिक संबंध बनाने के लिए नहीं भेजा गया और ना ही दबाव डाला। अब सवाल उठता है कि यहां पीड़िता अपने बयानों से पलट गई या पुलिस ने ही पूरी स्क्रिप्ट लिखी थी?
साइन कर दो बेटी बच जाएगी...
पीड़िता के पिता ने कहा कि पुलिस उनके घर आई थी, तब बताया था कि दस्तावेज और बयानों पर साइन कर दो। ऐसा करने से आपकी बेटी दो दिन में छूट जाएगी। मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता है। पीडिता की मां ने भी इस तरह की घटना से इनकार किया है। पीड़िता के साथ ही पिता और मां के बयानों के बाद पुलिस की भूमिका और संदिग्ध हो गई है। कोर्ट ने भी पाया कि पुलिस के दबाव में रिपोर्ट हुई है और इसी आधार पर यह आरोपी छूट गए।
नहीं दे सके कोई सबूत
कोर्ट ने कहा कि मानव तस्करी के केस में इंदौर के पलासिया थाने में 2019 में केस दर्ज हुआ। जीरो पर कायमी पर पुलिस ने डायरी भोपाल भेज दी। इसके बाद सीआईडी भोपाल में कायमी हुई। केस में जांच अधिकारी शशिकांत चौरसिया और मनोज शर्मा के बयान भी लिए गए। इनकी ओर से पेश दस्तावेज और सबूतों की प्रासंगिकता नहीं बनती है।
पुलिस की कहानी में झोल समझिए...
1. ब्यूरोक्रेट्स-नेताओं के नाम और वीडियो आने के बाद भी उन्हें एसआईटी ने रिकॉर्ड पर नहीं लिया। करीब 8 आईएएस-आईपीएस, और दूसरे बड़े अफसरों पर आरोप थे।
2. एसआईटी ने 22 फरवरी 2022 को दो मोबाइल को एफएसएल जांच के लिए भेजा था। फुटेज मिले तो सीडी देखने की अनुमति मांगी थी। मई 2023 में सेशन कोर्ट इसे खारिज कर दिया था। इसका आठ विचाराधीन आरोपियों को फायदा मिला।
3. आरोपियों के वॉइस सैंपल को लेकर एसआईटी ने कोर्ट में सीडी चलाई थी, लेकिन वो चली ही नहीं। इसमें भी आरोपियों को संदेह का लाभ मिला।
केस में अब आगे क्या
बताया जा रहा है कि तीनों आरोपियों के सेशन कोर्ट से बरी हो जाने के बाद राज्य सरकार इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करेगी।
पूरा मामला भी समझ लीजिए
हनीट्रैप मामले में 24 सितंबर 2019 को भोपाल में मानव तस्करी का केस दर्ज हुआ था। पीड़िता खुद भी हनी ट्रैप केस में आरोपी है। कोर्ट में गवाही के दौरान उसने आरोपियों पर यौन शोषण का आरोप लगाया, पर हनीट्रैप में जमानत हुई तो कहा- पुलिस के दबाव में बयान दिया था